टी.वी. पर एक विज्ञापन आता है जिसमें एक सैनिक जब बस में चढता है तो बस में बैठे सारे यात्री उसको सैल्यूट करते हैं। शायद सबने देखा होगा यह विज्ञापन । बेहद ही भावुक । ऐसा होना भी चाहिए हमें । हमेशा अपनी सेना के जवानों के लिये गर्वित और आभारी भी ।वो हमारे देश का गौरव हैं. वे हैं तभी हम हैं। हम सब गर्व करते हैं उन पर। लेकिन जो हमारी सुरक्षा के लिए अपने घर परिवार से इतनी दूर, अपनी ड्यूटी पर है। चाहे वो कश्मीर में हों या छत्तीसगढ़, उनकी जान, उनकी इज्जत का क्या?? दोनों ही स्थिति में हमारी सरकार की तरफ से, चाहे मौजूदा सरकार हो या कोई पहले की, सिर्फ निंदा से ज्यादा कुछ भी क्यों नहीं? आये दिन हम सब सेना के जवानों के शहीद होने की खबरें सुनते हैं, धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में । कभी तो वो शहीद होते हैं बाहर से घुसे आतंकवादियों की वजह से और कभी हमारे ही देश में पनपे नक्सलियों से। और उसके बाद हमारे राजनेताओं की तरफ से की जाने वाली कार्रवाई होती है सिर्फ कड़ी निंदा,उन आतंकवादियों या नक्सलियों की।

हमारी सरकार बलूचिस्तान और भूटान की समस्या तो हल करना चाहेगी पर जो हमारे खुद के मौजूदा हालात हैं, उनके लिए वो खुद के हाथ में सत्ता आते ही असमर्थ हो जाती है. इतने बड़े और शक्तिशाली देश के प्रधानमंत्री होके भी उनसे हल नहीं निकलता या यूँ कहिए वो हल निकालना ही नहीं चाहते हैं, बस समस्या को टालना चाहते हैं। इस समस्या का मुख्य कारण है हमारी सरकार की नाकामी, उनकी ये टालने की प्रवृत्ति । इसलिए, ना ही वो कश्मीर में बैठे लोगों को देश के लोकतंत्र पर भरोसा दिला पाये और ना ही छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित जगह के लोगों को। जिससे वहाँ के रहने वाले आम लोगों को हमारे लोकतंत्र पर कोई भरोसा ही नहीं है। उनको ये भरोसा दिलाने की जरूरत है कि सरकार उनके विकास के लिए काम कर रही है, नाकि उनके विनाश के लिए। आप उनसे विकास के नाम पर जमीन लेने की बात तो करते हैं पर उसके बदले उनको क्या मिलेगा? सरकार उनके विकास की बात करती है, पर उनको साथ लिये बिना। हम आदिवासियों की जमीन प्रयोग करना चाहते हैं, उनके सारे मालिकाना हक खत्म कर के, जबकि उन आदिवासियों के हिसाब से वो उनकी धरोहर हैं और साथ ही साथ उनका आर्थिक आधार भी। तो जब तक सरकार उनको साथ ले कर उनका विकास नहीं करती तब तक नक्सलवाद से निबटना बहुत मुश्किल है।

तो, बजाय बाकी चीजों के पहले मोदी इन समस्याओं को सुलझाये, वर्ना धीरे—धीरे सबका भरोसा उठ जायेगा सरकार से।