विष्णुपुराण में एक रोचक कथा मिलती है. जब असुर धर्मबल से प्रबल हुए तो देवता बहुत परेशान हुए. वे भागे भागे विष्णु के पास गये और कहा कुछ करो प्रभु. असुरों को भ्रष्ट करने का कुछ उपाय करो. विष्णु ने तब अपने शरीर से एक पुरुष को उत्पन्न किया जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके सिद्धांत चार्वाक से बहुत मिलते जुलते हैं. हो सकता है वे ही चार्वाक हो. वैसे, चार्वाक अनिश्वरवादी दार्शनिक थे जिनका सबसे प्रसिद्ध वाक्य है- ‘जब तक जीयो, सुख से जीयो, उधार ले घी पीयो.’

अब असुरों ने उनके दार्शनिक सिद्धांतों को कितना ग्रहण किया यह तो पता नहीं, लेकिन तथाकथित सुरों के समाज ने इस सद्धिांत को खूब आत्मसात किया. ताजा संदर्भ यह है कि सामान्यतः आदिवासी समाज तो कभी कर्ज नहीं लेता और कभी महाजनों के चंगूल में फंस गया तो अपना सर्वस्व लुटा लेता है, लेकिन गैर आदिवासी समाज यह काम बखूबी करता है. कभी कभी तो आशंका होती है कि कही विकास की चमक सार्वजनिक संपत्ति की लूट ही से तो पैदा नहीं होती? बात सिर्फ माल्या जैसे बड़े उद्योगपतियों की नहीं जो हजारों करोड़ की बैंक राशि लेकर फरार हैं, बल्कि देश भर के लघु उद्यमियों ने भी जमकर सरकारी सबसीडी, औद्योगिक बैंकों से लिये कर्ज डकार गये. उदाहरण के लिए बियाडा, बोकारो, क्षेत्र के अधिकतर उद्यमियों ने लघु उद्योग के नाम पर भूखंड और कर्ज लिये. फिर उद्योग के नाम पर एक ठठरी खड़ी की, और कर्ज के पैसे से पहले शानदार घर बनाया, गाड़ी खरीदी और उद्योग के नाम पर ट्रेडिंग की. और जब बैंक वालों को सुध आई तो पता चला कि उन्होंने जो पता दिया था बिहार के किसी गांव शहर का, वहां कोई मिलता ही नहीं. मामला सिर्फ बियाडा का नहीं, तमाम औद्योगिक क्षेत्रों का यही हाल है.

अब कृषि क्षेत्र में भी कर्ज माफी का एक नया खुलासा धीरे-धीरे हो रहा है. ज्यादा ब्योरे में गये बगैर एक बात तो स्पष्ट है कि कर्जमाफी का लाभ न आदिवासी को होता है और न दलितों को. क्योंकि, आदिवासी कर्ज लेने के आदी नहीं. और दलितों के पास खेत हैं कहां जो वे खेती के लिए कर्ज लें. तो खेती के नाम पर कर्ज भी समाज के बड़े किसान, जो सामान्यतः उंची जाति के होते हैं, लेते हैं और कर्ज की माफी होती हैं तो लाभ उन्हें ही मिलता है.

एक गंभीर तथ्य यह भी है कि खेती के नाम पर कर्ज भी सबसे अधिक विकसित राज्य लेते हैं. पिछले वित्तीय वर्ष में देश के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 8.08 लाख करोड़ का कृषि कर्ज दिया गया. इसमें से 36 फीसदी से भी अधिक कर्ज सिर्फ छह ऐसे राज्यों ने लिया जिन्हें देश के सबसे विकसित राज्य का दर्जा मिला हुआ है. ये राज्य हैं

तमिलनाडु 199397. 97 करोड़

महाराष्ट्र 76103.06 करोड़

आंध्र प्रदेश 68806.76 करोड़

उत्तर प्रदेश 60179.52 करोड़

पंजाब 57608.54 करोड़

कर्नाटक 55624.29 करोड़

यानी, जो तथाकथित विकसित राज्य हैं, वे ही सबसे बड़े कर्जदार भी. कहां जा सकता है कि जो खेती के काम में आगे हैं, वहां उत्पादन भी ज्यादा होता है. इसलिए कर्ज भी वहां के किसान ज्यादा उठाते हैं. लेकिन यदि किसान संकट के नाम पर यह कर्ज जब माफ होता है तो फायदा भी उन्हीं कर्जदारों का होता है और यह सिलसिला चल पड़ा है. पहली बार कर्ज माफी की घोषणा 1989 में जनता दल सरकार ने की थी 10 हजार करोड़ की कर्ज माफी कर के. 2008 में 60000 करोड़ की कर्ज माफी की जा चुकी है. पहले कहा गया कि सिर्फ छोटे किसानों की कर्ज माफी होगी, बाद में बड़े किसानों की भी कर्ज माफी हुई और राशि बढ कर 71000 करोड़ हो गई. अभी अभी उत्तरप्रदेश सरकार ने 36359 करोड़ का किसान कर्ज माफ करने की घोषणा की. कुछ दिन पूर्व मद्रास हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि सूखा क्षेत्र के किसानों का कर्ज माफ कर दे जो लगभग 1980 करोड़ का है. 6 अप्रैल को महाराष्ट्र सरकार ने इस बात के संकेत दिये कि यूपी माडल की तरह उनके राज्य के किसानों की कर्जमाफी पर वे विचार कर रहे हैं. पंजाब की कांग्रेस सरकार भी अपने राज्य के किसानों का 69000 करोड़ का कर्ज माफ करने पर विचार कर रही है. कर्नाटक, छत्तीसगढ, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अगले वर्ष चुनाव होने हैं और सभी राज्यों के किसान कर्जमाफी की उम्मीद कर रहे हैं.

यहां यह बात स्पष्ट कर लें कि दलित के पास तो जमीन है ही नहीं, इसलिए वह तो कर्ज ले नहीं सकता और आदिवासी स्वाबलंबी जीवन जीने का आदी है, इसलिए वह कर्ज लेता नहीं. इसलिए कर्ज सामान्यतः अगड़ी जाति या फिर दवंग पिछड़ी जाति के किसानों को ही मिलता है जिनके नाम जमीन होती है. उस पर खटने वाले बटाईदारों या दिहाड़ी पर खटने वाले मजदूरों को नहीं.

यह याद दिलाने की जरूरत शायद नहीं कि बैंकों में जमा पैसा या सरकारी खजाने में जमा पैसा आम जनता का ही पैसा होता है, लेकिन कर्ज माफी के नाम पर सरकार अमीर किसानों का हित साधन करती है, गरीब को उससे कोई लाभ नहीं.

इसलिए यदि कर्ज माफी ही करनी है तो पहले यह तय कीजिये कि किसान है कौन?