आज देश में या कहिए देश की सत्ताधारी पार्टी को एक मुद्दा मिल गया है-मुस्लिम समाज में होने वाले तीन तलाक. हम देश वासियों को पहले यह समझना होगा कि तीन तलाक क्या सच में देश का सबसे जरूरी मुद्दा है? क्या सच में हम इसे सुलझा कर देश में सभी मुद्दे या मुस्लिम समाज में स्त्रियों के हालात ठीक कर लेंगे? तीन तलाक को यूनिफार्म सिविल कोड में शामिल कर लेने के बाद तलाक बंद हो जाएँगे? या तलाक के बाद स्त्री को उसका सही अधिकार कोर्ट दिला पाएगी? या एक कोर्ट के बाद दूसरे कोर्ट के चक्कर लगाने में आधा जीवन निकल जाएगा?

या यह मुद्दा केवल देशवासियों को देश के अन्य बड़े मुद्दे से भटकाने के लिए है?

जहाँ एक तरफ देश में महँगाई आसमान छू रही है, अपना पैसा अपने पर कर्ज बन गया है. जैसे आज ही एसबीआई ने नए नियम, जो की 1 जून से लागू होंग, की घोषणा की है. एटीएम से पहले ही ट्रांजैक्शन करने पर 25 रुपये का शुल्क बैंक को चुकाना होगा. जहाँ हम 500 रुपया से अकाउंट खुलवा कर कर 500 बैलेन्स रख सकते थे, आज वहाँ 3000 (शहरी क्षेत्र में) रखने होंगे. रोज आम जनता पर नए नियम लागू कर दिए जा रहे हैं और कहीं से कोई आक्रोश या कोई प्रतिकार नहीं.

गरीब मजदूर, फेरी लगाने वाले को और मजबूर कर दिया जा रहा है. शहरी क्षेत्र में अतिक्रमण हटाओ अभियान चला कर. पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं. बस सरकारी अधिकारी आए और तोड़ते चले गए रोजमर्रा के दुकान, हाट लगाने वालों के ठेले गुमटी को. जिनसे वोट ले कर उनकी गरीबी दूर करने का मुद्दा बना कर सरकार सत्ता में आती है, सबसे पहले उनको ही समाज से खदेड़ देती है.

इतना होने के बाद भी हमें अपना हक नहीं समझ आता है. तो धार्मिक व जातिवादी सवालों को सरकार किनारे से समाज में देश में रह रहे लोगों के बीच में डाल रही है और ऐसे बेकार के मुद्दे बनाने के बाद वो अपना काम बड़ी आसानी से करती जा रही है. लोगों को धर्म कर्म के झमेले में आपस में लड़ा कर सरकार देश में महँगाई बढ़ा रही है और देश की परिसंपत्ति को कुछ नामचीन लोगों को बेच रही है.

ठीक है, मुस्लिम समाज में तीन तलाक का मुद्दा है. पर इसे सरकार को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए और देश में और भी जरूरी मुद्दे हैं जिन पर खुल कर बात हो. विचार हो. उस पर सरकार फैसला ले.

मुद्दा कश्मीर घाटी का है. वहाँ रह रहे लोगों का है. उनको अमन चैन की जिन्दगी कैसे दी जाए? मुद्दा देश के मारे जा रहे सैनिकों का है? मुद्दा आदिवासियों का है. उनकी जमीन का है. उनके जंगल का है. उनके पहाड़ों का है जो रातों रात खदान के नाम कर दिए जा रहे हैं. मुद्दा नक्सल के नाम पर गरीब मजदूर आदिवासियों के मारे जाने का है.

मुद्दा देश में मुस्लिमों का है. क्यूँ पाकिस्तान के नाम पर देश के मुस्लिमों को गद्दार बना दिया जा रहा है? क्यूँ जब किसी दूसरे धर्म का

व्यक्ति आईएसआई के लिए जासूसी करता पकड़ा जाता है तो उसे आतंकी नहीं कहा जाता, पर केवल आरोप की बुनियाद पर पकड़ा गया मुस्लिम आतंकी हो जाता है?

मुद्दा शिक्षा का है. शिक्षा का स्तर कैसे ठीक हो? छोटे शहर और गाँव में लड़की -बच्चियों को ऊँची शिक्षा कैसे प्राप्त हो? मुद्दा स्वास्थ्य का होना चाहिए. मुद्दा सुरक्षा का होना चाहिए, मुद्दा शिक्षा का होना चाहिए, मुद्दा आम जनता को बिजली पानी मिलने का होना चाहिए. मुद्दा रोजगार का होना चाहिए. मुद्दा मजदूर को उसकी सही मजदूरी मिले, वो भी तय समय पर मिले, होना चाहिए.

मुद्दा मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे झूठे भ्रम को रोकने का होना चाहिए.

मुद्दा अगर तलाक का ही है तो मुद्दा सरकार को यह बनाना चाहिए, तलाक होते ही क्यूँ हैं? तलाक होने का कारण क्या है? इसके जवाब के लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं. इसका जवाब है कि तलाक होते है दहेज के कारण. दहेज प्रथा रोके सरकार. तलाक होते हैं नशे और जुआ की लत के कारण. सरकार लगाए शराब और जुआ पर रोक. पकड़े नसेड़ी और जुआड़ियों को. तलाक के और भी दूसरे कारण हो सकते हैं, पर ज्यादातर तलाक दहेज के ही कारण होते हैं.

पर हमें तो दूसरों पर हँसने वाला मुद्दा चाहिए. तो वह सरकार हमें मुफ्त में दे रही है और हम सुबह चाय के साथ और रात के खाने के साथ अखबार और टीवी देख कर अपना मन बहला रहे हैं.