गुजराती प्रधानमंत्री के चहेते गुजराती उद्द्योगपति गौतम अडानी और भारत का सबसे बड़ा (10480 mw) पावर प्लांट का गोड्डा, झारखण्ड के कोयले से बिजली बनाने का पावर प्लांट प्रस्तावित है. यह प्लांट 13906 करोड़ रु का है.

जबसे अडानी के पावर प्लांट की घोषणा हुई है, तब से लेकर आज तक लोग पुराने विस्थापितों के दर्द को देखते हुए आतंकित और आंदोलित हैं. आये दिन लोग वहां धरना, प्रदर्शन, रैलियां आदि कर रहे हैं. सभा, सेमिनार हो रहे हैं.

एक ओर सरकार हिंसक प्रतिरोध करने वाले का आत्मसमर्पण करा रही है और जलसे कर सरकारी दामाद जैसा उनका स्वागत कर रही है, वही हाल ही में पोड़ैयाहाट के विधयाक को अडानी के विरुद्ध अहिंसात्मक रूप से अनशन करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है. इससे सरकार की मंशा पर शक उत्पन्न होना वाजिब है.

इस परियोजना के लिए भारत और बांग्ला देश के बीच 2010 में एग्रीमेंट हुआ था. 1600 mw की क्षमता वाले इस परियोजना के लिए 14 गांवों के लगभग 1800 एकड़ जमीन की जरूरत है. इस परियोजना के लगने से 14 गांवों के लगभग 15 हजार लोगों के विस्थापित होने की संभावना है.

अब आपको बताते है इसके लिए क्या क्या जरूरत है. 14 गांवों के लगभग 1800 एकड़ जमीन. 15 हजार लोगों की व्यवस्थित जीवन से कुर्बानी. 19 हजार 200 टन कोयला प्रतिदिन. चिर नदी से प्रतिदिन 10 करोड़ लीटर पानी लिया जाएगा. 51 हजार 200 टन ऑक्सीजन की आवयश्कता प्रतिदिन.

अडानी का यह पावर प्लांट प्रदूषण के मामले में भी अव्वल होगा. रोजाना 48 हजार टन कार्बन डाईऑक्साइड, 11 सौ टन सल्फर डायऑक्साइड एवं नाइट्रोजन, 22 हजार 500 टन राख निकलेगा एवं 10 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की वृद्धि होगी


A generic square placeholder image with rounded corners in a figure.


अब जरा पावर प्लांट से होने वाले लाभ की चर्चा भी कर लेते हैं. वे जनता से क्या लेकर क्या देने का वादा कर रहे हैं. और क्या चुपके से हड़पने की कोशिश कर रहे हैं.

पूर्व में उत्पादन होने वाली पूरी बिजली बांग्लादेश को दिये जाने की बात थी. लेकिन जनप्रतिरोध के माध्यम से यह मांग उठने लगी कि मिट्टी झारखंड की, पानी झारखंड का, हवा झारखंड का, कोयला झारखण्ड का, तो फिर बिजली बंग्लादेश को क्यों दिया जाएगा? तक जाकर अडानी पावर प्लांट ने झारखंड सरकार को 25 प्रतिशत बिजली देने का वादा किया है. यानी 400 मेगावाट बिजली कंपनी झारखंड को देगी.

यदि यह 1600 मेगावाट, यानी 3 करोड़ 84 लाख यूनिट बिजली उत्पादन क्षमता वाले इस पावर प्लांट से 25 प्रतिशत बिजली झारखंड सरकार को दे भी देती है, फिर भी वह 3 करोड़ बिजली बांग्लादेश को बेचेगी. भारत में जिस दर यानी 2 रुपए प्रति यूनिट भी यदि बेचती है तो कंपनी को 6 करोड़ रुपया अडानी के एकाउंट में जाता है. जबकि प्राप्त जानकारी के अनुसार अडानी बांग्लादेश को बिजली 8-9 रु प्रति यूनिट बेचिगी. तो आप 6 करोड़ में 8-9 गुना कर दीजिए. और अडानी के मुनाफे का अंदाज लगा लीजये.

अब आते है अडानी के नौकरी के वादे पर. अडानी का कहना है कि वे 10 हजार स्थानीय लोगों को नौकरी देने का वादा किया है. यदि हम बड़कागांव, हजारीबाग में NTPC के कारखाने में जरा नजर दें तो सब साफ साफ पता चलता है. NTPC की क्षमता 2000 मेगावाट की है और वहां सिर्फ 700 लोगों को नौकरी मिला है. तो अब कोई भी समझदार व्यक्ति समझ सकता है कि जब 2000 mw का पावर प्लांट में मात्र 700 लोगों को नौकरी मिला है, तो फिर 1600 mw का पावर प्लांट 10000 लोगों को कैसे नौकरी देगा? अडानी अपना बुनियाद ही झूठ से खड़ा कर रहा है तो फिर उसकी मंजिल कैसी होगी?

हाल ही में शांतिपूर्ण अनशन कर रहे विधायक प्रदीप यादव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इससे पहले मैं गोड्डा के के मोतिया में इलाके में गया था. वह इलाका भी अडानी के पावर प्लांट से विस्थापित क्षेत्र में आता है. पूर्व के विस्थापितों की दशा को देखते हुए और पर्यावरण के प्रति खतरे को देखते हुए ग्रामीणों ने वहां किसान सम्मेलन का आयोजन किया था. सम्मेलन अभी स्टार्ट ही हुआ था कि कुछ लोग हाथों में तख्तियां ले लेकर आये और हो हंगामा करते हुए बैनर फाड़ दिये, माइक बंद कर दिया. हो हंगामा स्टार्ट हो गया. बाहर से आये हुए साथियों के साथ बदसलूकी किया गया. हंगामा करने वालों में ज्यादातर लोग नशे में धुत थे. हालांकि बाद में सभा हुई. और जो लोग अडानी के पक्ष में आये थे, वे भी अडानी का गड़बड़झाला समझ गये.

यह किस्सा बताने का तत्पर्य यह था कि अडानी ने अपने पैसे के बल पर प्रशासन, नेता एवं ग्रामीणों को अपने झांसे में ले लिया है. जबकि ज्यादातर जनता अडानी के पावर प्लांट के पक्ष में नहीं है.

प्रशासन ने प्रतिरोध को देखते हुए जन सुनवाई करने का प्रस्ताव लिया. अब प्रशासन को यह पता था कि यदि जनसुनवाई ठीक से होती है तो निर्णय अडानी के खिलाफ ही जायेगा. इसलिए प्रशासन ने एक ही दिन एक ही समय पर एक ही परियोजना के लिए दो जगह जन सुनवाई का आयोजन किया. और प्रशासन की और से निर्देश दिया गया कि प्रस्तावित परियोजना के क्षेत्र से बाहर के लोग इसमे शामिल नहीं हो सकते. बहुत सारे लोगों को अनेक प्रकार का बहाना बनाके जनसुनवाई के अंदर में जाने नहीं दिया गया. निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन अखबार में न्यूज़ छपता है कि जनसुनवाई में अडानी के पक्ष में लोगों ने मत दिया. जबकि यह सरासर गलत था. विरोध करने वाले लोगों को पहले से चिन्हित करके बाहर ही रखा गया. जबरन घुसने की कोशिश करने पर पुलिस ने उनपर लाठी भांजी.

अब सवाल यह उठता है कि जन विरोधी, जीवन विरोधी और प्रकृति विरोधी कंपनियों को सरकार मंजूरी कैसे दे देती है, जबकि नियम यह होना चाहिए कि कोई भी कंपनी यदि पहले आती है तो उससे पहले यह पूछा जाना चाहिए कि आपके पास पर्यवरण नीति क्या है. आप जिस इलाके में अपना प्लांट लगाना चाहते है वहां के पानी और ऑक्सीजन के संतुलन का क्या प्लान है?

और विस्थापितों की मांग में नौकरी नहीं होना चाहिये, विस्थापितों की मांग होनी चाहिए कि हमे नौकरी नहीं कंपनी में हिस्सेदारी चाहिए, क्योंकि यदि नौकरी मिल जाता है तो सिर्फ एक जन और एक पीढ़ी को ही नौकरी मिलेगा, जबकि जमीन पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहता है.

अब सवाल भारत सरकार के आंकड़े पर यदि ध्यान दें तो सरकार के पास वर्तमान में 5 हजार मेगावाट बिजली अतिरिक्त है, तो फिर लीगों को विस्थापित करके, पर्यावरण का दोहन करके बिजली बनाने की क्या जरूरत है. जबकि बिजली के और भी बहुत सारा सोर्स है जिसे हमें यूज करना चाहिए.