GST के पहले भारतीय अर्थव्यवस्था में टैक्स निराकार ब्रम्ह से कम पेंचिदा नहीं था, अब यह पेंचीदगी बहुत हद तक कम हुई है…अब यह आकार रुप में राम कृष्ण नानक और यीशु की तरह स्पष्ट है. लेकिन व्यापारियों पर महीने में तीन और सालभर में कुल 37 रिटर्न भरने की जो विपदा आई है, इसने बाजार को एकदम अस्थिर करके छोड़ रखा है, व्यापारी वर्ग जो सरकारी एजेन्सी के चौखट पर जाने से कतराता था, अब उसे सैकड़ों बार इन दफ्तरों के चक्कर लगाने होगें, बाबुओं को सलाम और सलामी सबकुछ अर्पित करनी पड़ेगी.

NDA के मंत्रियों पर और सत्ता के ऊपरी पायदान पर भ्रष्टाचार की कोई मेजर ख़बर न आने से एक इत्मीनान तो ज़रूर है कि भ्रष्टाचार कम हुआ है, लेकिन व्यापारी उसी तरह इस बात को लेकर भी इत्मीनान हैं कि टैक्स सम्बन्धित तमाम काम स्थानीय लेबल पर सलाम और सलामी के बिना चलने वाला नहीँ है, चाहे मोदी जी कितना कूछ आनं-लाईन करालें… और इसीलिये एक प्रबल सम्भावना है कि बाजार और स्थानीय सरकारी एजेंसीयों के बीच साठ गाँठ हो हीं जायेगी और gst कर प्रणाली की मूल भावना की डिलिवरि बाजार तक नहीं पहुंचेगी. इसी ऊहा पोह की स्थिति में एक तो व्यापार में माल की आवक कम हो गई है और gst के बिल्स नहीं के बराबर बन रहे हैं. हम कह सकते हैं— एक अवरुद्ध बाजार, ये ठीक नहीं है…

अब अगर इस बात की खाल निकाली जाये तो लगता है कि एक तरफ़ बाजार का बड़ा भाग टैक्स से बचा हुआ था और दूसरे की नया gst एक आसान कर प्रणाली नहीं है जिसे बाजार गले लगा ले. बाबूगिरि का खौफ ज़रा भी समाप्त नहीं हुआ है. सरकार, व्यापारी और GST के पहले भारतीय अर्थव्यवस्था में टैक्स निराकार ब्रम्ह से कम पेंचिदा नहीं था, अब यह पेंचीदगी बहूत हद तक कम हुई है…अब यह आकार रुप में राम कृष्ण नानक और यीशु की तरह स्पष्ट है. लेकिन व्यापारियों पर महीने में तीन और सालभर में कुल 37 रिटर्न भरने की जो विपदा आई है, इसने बाजार को एकदम अस्थिर करके छोड़ रखा है, व्यापारी वर्ग जो सरकारी एजेन्सी के चौखट पर जाने से कतराता था अब उसे सैकड़ो बार इन दफ्तरों के चक्कर लगाने होगें, बाबुओं को सलाम और सलामी सबकुछ अर्पित करनी पड़ेगी.

NDA के मंत्रीयों पर और सत्ता के ऊपरी पायदान पर भ्रष्टाचार की कोई मेजर ख़बर न आने से एक इत्मीनान तो ज़रूर है की भ्रष्टाचार कम हुआ है लेकिन व्यापारी उसी तरह इस बात को लेकर भी इत्मीनान है की टैक्स सम्बन्धित तमाम काम स्थानीय लेबल पर सलाम और सलामी के बिना चलने वाला नहीँ है चाहे मोदी जी कितना कूछ आनं-लiईन करालें… और इसीलिये एक प्रबल सम्भावना है की बाजार और स्थानीय सरकारी एजेंसीयों के बीच साठ गाँठ हो हीं जायेगी और gst कर प्रणाली की मूल भावना की डिलिवरि बाजार तक नहीं पहुंचेगी. इसी ऊहा पोह की स्थिति में एक तो व्यापार में माल की आवक कम हो गई है और gst के बील्स नहीं के बराबर बन रहे हैं- हम कह सकते हैं एक अवरुद्ध बाजार, ये ठीक नहीं है…

अब अगर इस बात की खाल निकाली जाये तो लगता है की एक तरफ़ बाजार का बड़ा भाग टैक्स से बचा हुआ था और दूसरे की नया gst एक आसान कर प्रणाली नहीं है जिसे बाजार गले लगा ले, बाबुगीरी का खौफ ज़रा भी समाप्त नहीं हुआ है. सरकार,व्यापारी और बाबूगिरि, इन तीन चीजों में दो कब और किस तरह एक तरफ़ हों जाए कहा नहीं जा सकता.

तो असल में अभी जो वर्तमान स्थिति है उसमे बाजार एकदम थमां हुआ है. यह मंहगाई के ट्रेंड में सब किसी को शामिल कर लेने के लिये माक़ूल स्थिति बना रहा है.

अब जबकि अंतराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों की रेटिंग की हमारी अर्थव्यवस्था को सख्त ज़रूरत है जिससे अपने देश में विदेशी निवेश आये , ये एजेंसियां भी मंहगाई बढ़ने की बात को ज़रा घुमाकर स्वीकार की है. जैसे अमरीका की मुडिज जापान की इकरा और नोमूरा भी मानती है कि छोटी कम्पनियों से बड़ी कम्पनियों की ओर स्थानांतरित होता व्यापार एक बड़ा परिवर्तन है जो मंहगाई के लिये मुफीद है.