आदर्श शादी का मतलब होता है कि दो दिलों का मेल. दो लोग एक दूसरे को अच्छे से जान लें.लेकिन अभी जो तथाकथित मुख्यधारा के लोगों का सामाजिक विवाह होता है, उसमे सबसे पहले यह तय होता है लड़की वाले कितना तक दे सकते हैं? उसके बात ही मध्यस्ता करनें वाले बात को आगे बढ़ाते हैं.

जबकि, दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनी जुर्म है, फिर भी यह कुप्रथा धड़ल्ले से चली आ रही है. जितना ज्यादा पड़ा लिखा लड़का होता है, मार्केट में उसका रेट उतना ही ज्यादा होता है.और यदि गलती से लड़का नौकरी करता है, तब तो उसका डिमांड सावन में टमाटर के जैसा बढ़ जाता है. यानि मुर्गा से ज्यादा टमाटर का रेट हो जाता है.

और एक खास बात उन लोगों के लिए जो यह कहते है कि अशिक्षा की वजह से गरीबी है, अंधविश्वास बढता है. तो, आप लोग हमें यह बता दे कि दहेज कौन लोग ज्यादा लेता है— शिक्षित लोग या अशिक्षित लोग?

जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि दहेज जैसी कुप्रथा को रोकने के लिए सरकार ने दहेज उन्मूलन कानून बनाया है. लेकिन लोग है कि मानते ही नहीं. कानून अपनी जगह है. लोग अपनी जगह हैं. कानून का रखवाला ही दहेज वाली शादियों में बड़े चाव से हड्डी तोड़ के आते है.

पश्चिम बंगाल सरकार ने दहेज उन्मूलन कानून और बाल विवाह रोधक कानून धरातल पर लाने के लिए,दहेज प्रथा/वाल विवाह को रोकने के लिए सख्ती बरती. अधिका​रियों को अपने दायित्व का निर्वाहन करने के लिए चेताया. साथ ही साथ अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को झाड़ा-पोंछा और वाल विवाह को रोकने की हिदायत दी. इसका असर जमीन पर दिखने लगा. प्रशासन के साथ साथ पार्टी के कार्यकर्ता भी एक्टिव हो गये. कई जगह तो दूल्हे को शादी के मंडप उठा ले गये. इसका असर तो यह हुआ कि लोगों में हडकंप मच गया.

लेकिन यह सिर्फ वाल विवाह के क्षेत्र में ही कारगर साबित हुआ. दहेज रोकने में नहीं. क्यूंकि लोग दहेज का लेनदेन छिप कर करते हैं.वाल विवाह तो छुप-छुप करना जरा मुश्किल लग रहा था. बाल विवाह वाले तंत्र कुछ दिनों तक हैरान परेशां रहने लगे. मरने का या फिर पैर हाथ कांपने का एक भी मामला सामने नहीं आया जैसा कि बिहार में शराब बंदी के आया था. जैसे वहां के लोगों को शराब बंदी में भी बड़े आराम से शराब पीने का माहौल बनाने में थोडा समय लगा, ठीक वैसे ही बंगाल के लोगों को भी बाल विवाह करने के रास्ता निकालने में थोडा समय जरुर लगा. लेकिन लोगों ने रास्ता निकाल लिया.

जैसे शराब बंदी में भी जो लोग शराब पीते है, उनसे बात करने से पता चलता है कि शराब बंदी में उन्हें आराम हुआ है. पहले शराब लाने के लिए दारु की दुकान में जाना पड़ता था. अब शराब की होम डिलेवरी हो जाती है. हाँ, थोडा महंगा जरूत होता है, लेकिन आराम तो है. ठीक इसी तरह से पश्चिम बंगाल में भी लोगों ने बाल विवाह करने का एक नयाब तरीका निकाला है. शादी का दिन, तरीका सब ठीक किया जाता है. कार्ड भी बंटता है. रिश्तेदार आते है. बाराती आते हैं. नागिन डांस होता है. दारू पीते है. उलटी करते है. पटाखे भी फूटते है. लेकिन मजे कि बात यह है कि शादी नहीं होती है. बरात सुबह सुबह ससुराल की तरफ से मिला हुआ गिफ्ट लिए हुए वपास चली जाती है.

अब उस दिन भीड़ के सामने शादी नहीं हुआ, इसका यह मतलब नहीं है कि शादी नहीं होता है. होता है. लेकिन उस दिन सबके सामने नहीं. अकेले में शादी होती है. अपने चुनिंदा लोगों की उपस्थिति में माला अदला बदली होती है. सिंदूर दान होता है.

तो, इस तरह से पश्चिम बंगाल में बाल विवाह रोकथाम के बाबजूद भी धड़ल्ले से हो रहा है बाल विवाह. हमारे देश में एक से बढकर एक कानून है. लेकिन हमलोग उसे मानने को तैयार नहीं हैं. हमारा कानून हमलोगों से 200 साल आगे है. या तो फिर हमलोग हमारे कानून से 500 पीछे हैं. कुछ लोग कहते है कि कानून कुछ भी बने उसका तोड़ होता ही है. अच्छी बात है. हमलोग जुगाडू है. लेकिन लेकिन ऐसे जुगाड़ का क्या फायदा जिससे हमारा ही सर्वनाश हो जाए. जुगाड़ उसमे लगाया जान चाहिए जिसमे मानव श्रम को कम किया जा सके. लेकिन ऐसा जुगाड़ का क्या फायदा जिससे मानव की विकास प्रक्रिया ही रुक जाए.