भारत में महिला सुरक्षा को लेकर एक सर्वेंक्षण हुआ जिसको महिला बाल कल्याण मंत्रालय ने प्रकाशित किया. इस सर्वेक्षण के अनुसार महिला सुरक्षा की दृष्टि से सबसे सुरक्षित राज्य गोवा है. उसके बाद केरल और मिजोरम का स्थान है. महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्यों में सबसे निचले पायदान, तीसवें स्थान पर बिहार है, 29 वें सथान पर उत्तर प्रदेश, 28 वें स्थान पर दिल्ली तथा 27 वें सथान पर झारखंड आता है. इस सर्वेंक्षण में महिला की सुरक्षा को केवल हिंसा से ही नहीं आंक कर तीन अन्य मुद्दों को भी ध्यान में रखा गया है. शिक्षा, स्वास्थ, गरीबी और महिला हिंसा के विरुद्ध प्राप्त सुरक्षा. ये चार आधार बने इस सर्वेक्षण के. स्त्री की शिक्षा, स्वास्थ, गरीबी तथा उसके हिंसा के अनुपातों के द्वारा राज्यों का स्थान निश्चित किया गया है. इन सारे मुद्दों के कुल अनुपात को जीरो से एक अंक के एक स्केल पर नापा गया. जो राज्य इस स्केल के नंबर एक के जितना समीप रहा, उसका स्थान क्रमशः निश्चित होता गया. जैसे, गोवा औरतों की सुरक्षा के मामले में अव्वल रहा, शिक्षा में पांचवे स्थान पर, स्वास्थ में छठे स्थान पर और गरीबी में आठवें स्थान पर. इस तरह वह स्त्री सुरक्षा के लिहाज से अव्वल रहा.

यह मान कर चला जाता है कि स्त्री को हिंसा से सुरक्षा देना ही महिला सुरक्षा होती है. लेकिन सर्वेक्षण में माना गया कि स्त्री सुरक्षा के लिये उसे शिक्षित होना, स्वस्थ होना और आर्थिक रूप से स्वाबलंबी होना भी जरूरी है. गोवा, केरल तथा मिजोरम इन चारों मानकों पर बहुत हद तक पूरा उतरते हैं, इसलिए उन्हें महिलाओं की दृश्टि से सुरक्षित राज्य कहा गया. इसके नीचे के राज्य इन मानकों में से कुछ में ठीक हैं तो कुछ में बहुत ही पीछे हैं. जैसे सिक्किम चैथे स्थान पर तथा पंजाब आठवें स्थान पर है, लेकिन ये राज्य स्त्री सुरक्षा की दृष्टि से पिछड़े माने गये, क्योंकि स्वास्थ और शिक्षा में अच्छे होने के बावजूद गरीबी की वजह से उनका रहन सहन का स्तर नीचे रहा जो उनको असुरक्षित बनाता है. आंध्र प्रदेश बारहवें स्थान पर है. शिक्षा, स्वास्थ, तथा अच्छे रहन सहन के बावजूद वहां की महिलाओं को शारीरिक हिंसा तथा गाली गलौच सहना पड़ता है, इसलिए महिलायें वहां असुरक्षित हैं.

अब निचले स्थान पर रहे चार राज्य- बिहार,उत्तर प्रदेश,दिल्ली और झारखंड की बात. बिहार तथा उत्तर प्रदेश प्रारंभ से ही सामंतवादी व्यवस्था वाले प्रदेश रहे हैं. पुरुष स्त्री का संरक्षक रहा है. स्त्री हमेशा पर्दे में रही. वह पुरुष के लिए महज एक उपभोग की वस्तु या सेविका रही. आर्थिक रूप से पुरुष पर निर्भर और सारे आर्थिक मामलों से बेदखल. उन राज्यों में स्त्री शिक्षा, स्वास्थ तथा रहन-सहन का क्या स्तर रहा होगा, यह उस सामाजिक व्यवस्था से ही स्पष्ट होता है. यहां स्त्री सबसे ज्यादा असुरक्षित है.

दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन स्त्री सुरक्षा की दृष्टि से बेहद असुरक्षित राज्य है. और उसकी वजह संभवत: यह कि यह एक पूर्णत: एक उपभोगतावादी समाज है.यहां के लिए पैसा ही सब कुछ है. अनाप शनाप तरीके से पैदा हई संस्कृत ने इसे औरतों के लिए खतरनाक समाज में बदल दिया है.

झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है. आदिवासी स्त्री पुरुषों में वह अंतर दिखाई नहीं देता, जो गैर आदिवासी समाज में होता है. यहां स्त्रियों में न पर्दा है, न वे पुरुषों के पूर्णतः अधीन हैं. दोनों बराबरी से काम करते हैं और समाज के सारे आधिकारों को बराबरी से उपभोग करते हैं. झारखंड को स्त्री सुरक्षा को लेकर जो स्थान मिला है, उसका मुख्य कारण है कि यह बिहार से अलग हुआ एक राज्य है. यहां बउ़े-बड़े उद्योग, खदान व कारखाने हैं. इनमें काम करने वाले बहुसंख्यक लोग बिहार या दूसरे राज्यों से आये हुये लोग हैं. स्त्री को लेकर इनके दृष्टिकोण और आदिवासी स्त्री दृष्टिकोण में बहुत अंतर है. आदिवासी जनसंख्या का अनुपात भी घटते घटते 26 फीसदी रह गया है. इसलिए झारखंड आदिवासी संस्कृति का पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं कर पाता है. यहां एक मिश्रित सामाजिक व्यवस्था है. स्त्री सुरक्षा को लेकर जब आकड़े आये तो यह 27 वें स्थान पर पहुंच गया.

कुल मिला कर भारत की स्थिति हाल के कुछ वर्षों में लिंगानुपात और स्त्री सुरक्षा की दृष्टि से बद से बदत्तर होता जा रहा है. विश्व स्तर पर जारी एक सूची के अनुसार 144 देशों में भारत का स्थान लिंगानुपात की दृष्टि से 108 वें पर पहुंच गया है. आश्चर्य यह कि गरीब देश कहलाने वाला बांग्लादेश लिंगानुपात की दृश्टि से भारत से कही बहुत उपर 47वें स्थान पर है. विडंबना यह कि हमारे भारतीय समाज का दावा यह रहा है कि भारत में हमेशा नारियों की पूजा होती रही है.