बहुत हुआ लोकतंत्र-फोकतंत्र का नाटक. बहुत हुआ समाजवाद और सेकुलरिजम का दिखावा, बहुलता और गंगा-जमुनी संस्कृति की चोंचलेबाजी. और बहुत हुआ बोलने की आजादी और स्वतंत्र न्यायपालिका का महिमामंडन. इस पाखण्ड को जारी रखने के बजाय अब इस बात को डंके की चोट पर कहने का वक्त आ गया है कि भारत एक ‘हिंदू देश’ है; और अब यथाशीघ्र इसे विधिवत ‘हिदू राष्ट्र’ घोषित कर दिया जाना चाहिए. तभी हमारा यह महान देश समृद्ध, खुशहाल और शक्तिशाली बन सकेगा. लेकिन इसके लिए और भी बहुत कुछ करना पड़ेगा. यह काम तो आजादी के तत्काल बाद हो जाना चाहिए था. इसी उद्देश्य से यहाँ देशवासियों, संसद और खास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारार्थ कुछ प्रस्ताव प्रस्तुत हैं :

  • सबसे पहले अगले बीस वर्षों के लिए कम से कम संसदीय चुनाव पर पाबंदी लगा दी जाये. ’14 में मिले जनादेश का संकेत भी यही है कि देश नरेंद्र मोदी पर भरोसा करता है और मानता है कि उनके नेतृत्व में ही देश का विकास संभव है. इसलिए उन्हें अपने तरीके से अपनी योजनाओं को लागू करने का पूरा अवसर मिलना चाहिए. ऐसे में फिलहाल देश पर हर पांच साल बाद चुनाव करना खर्चीला और गैरजरूरी उपक्रम होगा.

  • माननीय नरेंद्र मोदी को उनके जीवनपर्यंत देश का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया जाये. बीस साल तक होनेवाले चुनावों में सिर्फ सांसदों का चुनाव हो, जिनमें से श्री मोदी नये मंत्रियों का चयन कर सकें.

  • देश व हिंदू विरोधी छद्म सेकुलर नेताओं द्वारा निर्मित मौजूदा संविधान को रद्द कर नये संविधान के निर्माण के लिए नयी संविधान सभा का गठन किया जाये. जब तक नया संविधान नहीं बन जाता है, वर्तमान संविधान को स्थगित रखा जाये. इस बीच केंद्र सरकार ‘राष्ट्रवादियों’ की एक सलाहकार समिति गठित करे. तब तक एक अंतरिम संविधान के आधार पर काम किया जा सकता है.

  • निर्वाचित सरकार के फैसलों का नाहक विरोध करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की जरूरत है. इसके लिए यह प्रावधान करना जरूरी है कि सरकार बनने के तीन साल बाद तक सरकार के खिलाफ किसी तरह के प्रदर्शन की अनुमति नहीं होगी. इसके साथ ही, सरकारी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें परेशान करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना भी आवश्यक है. राजस्थान सरकार ने इस दिशा में एक साहसिक पहल की है. इस तरह के प्रावधान पूरे देश में मजबूती से लागू करने की जरूरत है.

  • सरकार और उसके किसी फैसले के विरुद्ध किसी याचिका पर अदालत सुनवाई न करे, ऐसा प्रावधान भी जरूरी है, ताकि सरकार के फैसलों पर अमल में अनावश्यक विलम्ब न हो.

(सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फैसलों और मीडिया में बेवजह सरकार को कठघरे में खड़े करने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए तो न्यायपालिका और प्रेस की स्वतंत्रता पर भी नये सिरे से विचार करना आवश्यक हो गया है. ‘निजता का अधिकार’ क्या मौलिक अधिकार हो सकता है? उसे इतना विस्तार दिया जा सकता है कि समलैंगिक जैसे अप्राकृतिक और विकृत संबंध को वैध मान लिया जाये? और लोकतंत्र में क्या न्यायपालिका को यह अधिकार दिया जा सकता है कि वह निर्वाचित सरकार के फैसलों को जब-तब असंवैधानिक घोषित कर दे, उन पर रोक लगा दे? सरकार से जवाब-तलब करे? फिर सरकार जनता के हित में कोई काम कैसे कर सकती है?)

  • कभी इंदिरा गाँधी ने ‘कमिटेड ज्युडीसियरी’ और ‘कमिटेड ब्यूरोक्रेसी’ की बात की थी. उसी तर्ज पर न्यायपालिका और उच्च स्तरीय प्रशासन तंत्र में राष्ट्रहित के प्रति प्रतिबद्ध लोग ही शामिल हो सकें, यह सुनिश्चित किया जाये. इसके लिए इन सेवाओं में चयनित व्यक्तियों की वैचारिक दिशा व उनके रुझान का पता लगाने की कोई पद्धति विकसित की जाये. उनके प्रशिक्षण में स्थापित राष्ट्र-प्रेमियों का सदुपयोग हो.

  • निजी न्यूज़ चैनलों को बंद किया जाये; और सिर्फ दूरदर्शन (और आकाशवाणी) को ही समाचारों के प्रसारण का अधिकार हो, ताकि जनता को भ्रामक ख़बरों और अफवाहों के बजाय सही सूचना मिल सके.

  • अखबारों और पत्रिकाओं पर निगरानी का उचित प्रबंध किया जाये, ताकि देश के अंदर सक्रिय देशविरोधी, खास कर वामपंथी व सेकुलर तत्वों को बोलने-लिखने की आजादी के बहाने जनता को सरकार के खिलाफ भड़काने-उकसाने से रोका जा सके.

  • सोशल मीडिया पर नियंत्रण और निगरानी की व्यवस्था हो, ताकि अभिव्यक्ति की अजादी के नाम पर कोई देश विरोधी संदेश/अफवाह फ़ैलाने का काम न कर सके. ऐसा करनेवालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो.

  • तिरंगे के स्थान पर भगवा झंडे को देश का राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया जाये.

  • अगले पाँच वर्षों तक उच्च शिक्षा के सारे संस्थान बंद कर दिये जाएँ और उनमें पढ़ रहे विद्यार्थियों को राष्ट्र निर्माण के काम में लगाया जाये.

  • स्कूलों-कालेजों में इतिहास पढ़ाना तत्काल प्रभाव से बंद किया जाये, जब तक राष्ट्रवादी नजरिये से इतिहास लेखन का कार्य संपन्न नहीं हो जाये. पुस्तकालयों से इतिहास की पुस्तकें हटा ली जाएँ.

  • सरकारी कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों में भारतीय संस्कृति के अनुरूप वातावरण बनाये रखने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी हो.

उम्मीद है, सरकार-संसद इन सुझावों पर गंभीरता से विचार कर यथाशीघ्र निर्णय करेगी.

कुछ और आवश्यक सुझाव बाद में…