मोदी सरकार ने अपने नीति आयोग के दिशा-निर्देश में 70 साल के ‘पुराना भारत’ को ‘नया भारत’ में रूपान्तरण करने के लिए जो सपने बुने हैं, उनका देश की जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं है। हाल के कुछ महीनों में कई सरकारी एवं गैर

सरकारी संस्थाओं और अन्तर्राष्टीय ऐजेन्सियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के संकट के विभिन्न आयामों को उजागर किया है. गिरता विकास दर मोदी सरकार ने देशी-विदेशी आर्थिक विशेषज्ञों की शंकाओं को खारिज करते हुए यह दावा किया था कि नोटबंदी का

देश के आर्थिक विकास दर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा नोटबंदी के बाद पिछले 6 तिमाहियों के जो आंकड़ें पेश किए गए हैं उसमें विकास दर को लगातार घटती हुई दिखाई गई है. 2016-17 के

पहली तिमाही, अप्रैल-जून, में यह घटकर 5.7 प्रतिशत रह गई है, जो इसके पहले की तिमाही, जनवरी-मार्च, में 6.1 प्रतिशत थी. यह पिछले तीन साल के विकास दर का न्यूनतम स्तर है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 6 तिमाहियों,जनवरी 2016 से जून 2017 तक, के दौरान विकास दर में कुल मिलाकर 2.2 प्रतिशत की कमी हुई है, यानी 2.2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

अन्तर्राष्टीय संस्थाओं ने भी भारत के घटते विकास दर को देखते हुए अपने पहले के अनुमानों को दुरूस्त किया है. विश्व बैंक ने 2017-18 में भारत के विकास दर को 7.6 प्रतिशत तक होने का अनुमान लगाया था, जिसे हाल में घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है. आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन ने चालू वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था, जिसे घटाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया है. संयुक्त राष्टं संघ की संस्था अंकटाड के अनुसार भी भारत का 2017-18 का विकास दर 6.7 प्रतिशत रहेगी. मोदी सरकार द्वारा 11 अगस्त, 2017 को जारी किए गए अर्द्धवार्षिक सर्वेक्षण में भी यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इस साल देश की जीडीपी की वृद्धि दर सरकारी अनुमान, 6.75 से 7.5 प्रतिशत तक, से कम होगी. अभी भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी इकोफ्लैश रिपोर्ट जारी की है, जिसके मुताबिक दूसरी तिमाही की विकास दर 6 प्रतिशत से नीचे रहेगी और तीसरी एवं चैथी तिमाही का 6.5 प्रतिशत से कम.

भारत के आर्थिक विकास के मुख्यतः 4 चालक होते हैं- सरकारी खर्च, निर्यात, निजी निवेश एवं निजी उपभोग. पिछले वर्ष की तुलना में इस साल इन चारों के विकास दर का प्रतिशत कम रहा है. ऊपर से मोदी सरकार ने जुलाई 2017 के अंत तक अपने इस साल के राजस्व घाटे के कुल लक्ष्य, 5.46 लाख करोड़ रुपये, का 92.4 प्रतिशत तक खर्च कर दिया है. इसका मतलब साफ है कि अब मार्च 2018 तक सरकार के पास खर्च करने के लिए काफी कम रकमें होंगी.

जहां तक निर्यात की बात है, यूपीए सरकार के 10 सालों के कार्यकाल में इसका औसत वार्षिक विकास दर 17.3 प्रतिशत का रही है, जो मोदी के 3 साल के कार्यकाल में काफी कम हो गई है. 2014-15 एवं 2015-16 में निर्यात की विकास दर तो काफी निराशाजनक रही है, लेकिन 2016-17 में इसमें 12.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. मोदी सरकार ने निर्यात की दर को बढ़ाने के लिए ही ‘मेक इन इंडिया’ का अभियान शुरू किया है, जिसे वर्तमान वैश्विक मंदी के माहौल में सफल बनाना काफी मुश्किल है. इसी तरह निजी निवेश में भी मोदी राज मे कमी आई है. पिछले 3 सालों, 2014-15, 2015-16 एवं 2016-17, के दौरान कुल स्थायी पूंजी निर्माण, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में क्रमशः 31.34, 30.92 एवं 29.55 रहा है, जबकि 2011-12 में 34.31 प्रतिशत था. निजी पूंजी निवेश की विकास दर भी अक्तूबर 2016 से लगातार नकारात्मक रही है. बैंक आॅफ अमेरिका मेरिल लिंच की एक रिपोर्ट में भी यह कहा गया है कि भारत में निवेश में गिरावट जारी है और वह घटकर जीडीपी का 27.5 प्रतिशत तक आ गया है. ज्ञात हो कि रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया ने निवेश को बढ़ाने के उद्देश्य से हाल के महीनों में बैंक दर में दो बार कटौती की है जो आज घटकर 6 प्रतिशत हो गया है. लेकिन इसके बावजूद निवेश दर में वृद्धि नहीं हो रही है. इसके साथ-साथ निजी उपभोग दर में भी लगातार कमी हो रही है और अप्रैल-जुलाई 2017 में इसमें 6.7 प्रतिशत की कमी पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में, आई है.

भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह कह रहे हैं कि विकास दर में कुछ तकनीकि वजहों से गिरावट आई है, लेकिन एसबीआई की रिपोर्ट इसके लिए वास्तविक वजहों को जिम्मेवार मानता है. इतने सारे संकेतकों से यह साबित होता है कि मोदी सरकार के तीन साला ‘एक्शन प्लान’ के तहत देश की आर्थिक विकास दर में अपेक्षित सुधार लाना संभव नहीं है.