नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान यह वादा किया था कि सत्ता में आने पर उनकी सरकार हर साल 1 करोड़ लोगों को रोजगार मुहै ̧या करायेगी. लेकिन मोदी सरकार के 3 साल के दौरान रोजगार के जो आंकड़े प्रकाशित हुए हैं, उससे इस वादे की पोल खुल जाती है. हमारे देश की आबादी आज की तारीख में करीब 134 करोड़ हो गई है और इनमें से करीब 90 करोड़ लोग सक्षम कार्यबल में शामिल हैं. हर साल करीब 1.25 लाख कार्यसक्षम लोग तैयार होते हैं, जिनमें से केवल चार-सवा चार लाख लोगों को काम मिल पाता है. मोदी ने सत्ता में आने के बाद दावा किया कि इतने बड़े कार्यबल को उनकी सरकार ‘स्किल इंडिया के तहत निपुण बनायेगी और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को सफल करेगी. लेकिन उनकी ‘प्रधानमंत्री रोजगार सम्वर्द्धन योजना’ के तहत 2014-15 में केवल 3,57,502 बेरोजगारों को काम पर लगाया जा सका. 2015-16 के 8 महीनों में केवल 1,87,000 लोगों को रोजगार मिल सका.

अब हम बहुप्रचारित ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ की उपलब्धियों पर गौर करें. जुलाई 2017 के प्रथम सप्ताह के आंकड़े के अनुसार इस योजना के तहत पूरे देश में कुल 30.67 लाख युवाओं को ‘प्रशिक्षित’ किया गया या किया जा रहा है. लेकिन इनमें से केवल 2.9 लाख को ही ‘प्लेसमेंट आॅफर’ दिया गया है. इस योजना को 2 अक्तूबर, 2016 को शुरू किया गया और यह 9 माह की इसकी कुल उपलब्धि है. यही हालत ‘मनरेगा’ का है, जिसके तहत साल में 100 दिन का काम देने का प्रावधान किया गया है. पिछले 5 सालों के आंकड़ें बताते हैं कि इसके तहत हर साल औसतन 46 दिन ही काम दिया गया. अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज एवं रीतिका खेड़ा द्वार किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मनरेगा का बजट अनुपात लगातार घटता गया है. 2009-10 के बजट में इसके बजट का अनुपात कुल जीडीपी का 0-6 प्रतिशत था जो 2016-17 में घटकर 0.3 प्रतिशत हो गया है. 2017-18 के बजट में मनरेगा के मद में 48,000 करोड़ रू.आवंटित किया गया है, जिसका 75 प्रतिशत हिस्सा अब तक खर्च हो चुका है. आंध्र प्रदेश, नागालैंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में तो इसके बजट का बैलेंश निगेटिव हो गया है. अभी मोदी सरकार युवाओं को ‘स्किल’ बनाने और औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र को स्वचालित यंत्रों से सुसज्जित करने पर जोर दे रही है. एक अमेरिकी रिसर्च ऐजेन्सि का अनुमान है कि स्वचालित यंत्रों के प्रयोग को बढ़ावा देने से 2022 तक भारत के करीब 70 लाख ‘कम निपुण’ युवाओं को रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा. खासकर, आईटी एवं बीपीओ क्षेत्रों पर इसका काफी नकारात्मक असर पड़ेगा. यह है मोदी सरकार के ‘हर हाथ को काम देने’ के नारे की वास्तविकता!

निष्कर्ष के तौर पर उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था का संकट और गहरा होगा. इस संकट का हल निकालने के लिए 18-19 सितम्बर, 2017 को वित्त मंत्री अरूण जेटली के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई है. इस बैठक में विकास दर, पूंजी निर्माण की दर और उपभोक्ताओं के खर्चों में कमी आने तथा थोक एवं खुदरा महंगाई दरों व चालू खातों के घाटे और व्यापार घाटे में वृद्धि होने पर चिंता जाहिर की गई है. साथ ही, इसमें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए एक ‘विशेष आर्थिक पैकेज’ की भी घोषणा करने का निर्णय लिया गया है. हमें पता है कि सरकारी चिंताएं एंव घोषणाओं का असली निहितार्थ क्या होता है. केन्द्र सरकार आर्थिक विकास के जो भी कदम उठायेगी, उससे बड़े-बड़े पूंजीपतियों को फायदा और आम मिहिनतकश जनता को नुकसान होगा. हमारे देश में पूंजीवादी विकास माॅडल अपनाये जाने के चलते करोड़पतियों एवं अरबपतियों की संख्या दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही है. वल्र्ड वेल्थ रिपोर्ट, फरवरी 2017 के अनुसार हमारे देश में 95 अरबपति एवं 2,64,000 करोड़पति हैं. आॅक्सफेम के मुताबिक हमारे देश के 58 प्रतिशत सम्पत्ति पर 1 प्रतिशत अमीरों का अधिपत्य है. केवल 57 अरबपतियों के पास जितनी सम्पत्ति है, वह भारत की 70 प्रतिशत आबादी की कुल सम्पत्ति के बराबर है. दूसरी ओर भूखमरे देशों की श्रेणी में भारत का स्थान 2017 में 97 वां हो गया है जो 2014 में 55 वां था. यह ध्रुव सत्य है कि ‘नया भारत’ का निर्माण नरेन्द्र मोदी जैसे साम्राज्यवाद एवं शासक वर्गों के दलाल प्रतिनिधि नहीं कर सकते हैं. उनके नेतृत्व में संचालित सरकार साम्राज्यवादी ताकतों, बड़े पूंजीपतियों एवं सामंती ताकतों की सेवा तो कर सकती है, लेकिन आम मिहनतकश जनता के हितों में काम करना उनके चरित्र के खिलाफ है. ‘नया भारत’ वास्तव में एक साम्राज्यवाद, पूंजीवाद एवं सामंतवाद विरोधी लोक जनवादी एवं समाजवादी भारत होगा. इस नया भारत के निर्माण का कार्यभार देश की तमाम जनवादी एवं क्रान्तिकारी ताकतों को अपने कंधों पर लेनी होगी.