आज देश की स्थिती वाकई दयनीय है और ये बात कोई नई नही, बल्कि देश का हर नागरिक इस सच्चाई से दोचार है. देश को भ्रष्टाचार नामक दीमक ने इस तरहाँ खोखला कर दिया कि आज देश की पहचान सिर्फ अस्तित्व के रुप में की जा सकती है, उसकी मजबूती के रुप में नही! मेरी मान्यता है कि उस लकड़ी की कोई कीमत नही जो सिर्फ बाहरी सुन्दरता का गुणगान करती है, बल्कि कीमत उस लकड़ी की होती है जो भीतरी मजबूती का भी व्याख्यान करे!

दीमक एक ऐसी बला है जो किसी भी सुन्दर ढांचे का अस्तित्व मिटा कर खाक कर देती है।आज देश भ्रष्टाचार नामक दीमक की चपेट में है और देश में बहारी सुन्दरता की प्रस्तुति को ही विकास समझा जा रहा है, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि सुन्दर वस्त्र बीमार तन को शोभा दे सकते हैं सेहत नहीं!

देश में उच्च पदो पर आसीन गद्दार सेवक स्वार्थ की हाण्डी पका रहे हैं. व्यवस्था से लेकर अर्थव्यवस्था तक चौपट होने की कगार पर है, लेकिन साहब को कोई सुध ही नही. अरे साहब, यह देश के भविष्य का सवाल है कोई “आँख मिचौली” का खेल नही!

ना जाने जनता को किस खेल में लगाने की कोशिश की जा रही है. जनता को विकास चाहिए आपके विनाशकारी मुद्दे नही!

यदि सरकारें जातिवाद, धर्मवाद जैसे मुद्दों को विकास समझती हैं, तो ये मूर्खता का सबसे बड़ा सबूत है! आज की राजनीति की मुख्य बुनियाद धार्मिक मुद्दों पर टिकी है जो समाज हित में हानिकारक है. यदि देश में कोई धार्मिक विवाद होता है तो उसका मुख्य कारण है राजनीति! किसी भी मुद्दे पर राजनीतिक दलो का हस्तक्षेप ऐसा होता जा रहा है जैसे सब्जी में नमक. अरे भाई किसी भी मामले के निवारण के लिये देश में न्यायालय मौजूद है आपके हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नही.

आज देश में दलाली का माँझा भी बड़ी ही तेजी से बिक रहा है जिसकी मार देश के उस वर्ग-विशेष को झेलनी पड़ती है जिनको दो रोटी खाने के लिये भी सोचना पड़ता है.

सरकारें उन तमाम योजनाओं का खण्डन करती नज़र आ रहीं हैं जो कि गरीब मजदूर किसानो का सहारा थीं।

उन योजनाओं को प्राथमिकता दी जा रही हैं जिनका रिसाव दलाली के माँझे से कटकर नेताओं के व्यक्तिगत खातों की ओर हो रहा है.यदि सरकार जनता के हित में कुछ करना चाहती हैं तो रोज़मर्रा काम आने वाली चीजों के दाम में कटौती क्यों नही कर देती? बिजली तो समाज के हर परिवार की ज़रूरत है. सरकार इस पर दाम क्यों नही घटा देती? पानी को फ्री क्यों नही कर देती ?

पैट्रोल पर GST क्यों लागु नही कर देती ?

मैं तो कहता हूँ सरकार को यदि जनता के हित के कार्य करने ही हैं तो गैस, बिजली, पानी, ड़ीजल, पेट्रोल आदी के दाम कम कर दें, लेकिन ऐसा करने की जहमत सरकार क्यों उठाए भला?

ये सभी चीज़ें हैं जो सीधे जनता को फायदा पहुँचा सकती हैं लेकिन एक बात यह भी है कि यदि जनता को सीधे इन सभी चीजों का लाभ मिलता है तो राजस्व को घाटा दिखा दिया जाता है. और माननीयों की निधि से कोई विकास कार्य होता है तो लगभग 50% दलाली माननीयों के खातो की ओर रुख कर लेती हैं। यदि किसी गाँव-शहर् में सड़क का निर्माण होता है तो सड़कें चन्द महीनो में ज़रजर अवस्था की ओर हो जाती है. इसका मुख्य कारण है दलाली!

माननीय उन ठेकेदारों को ठेका देते हैं ज़िनसे दलाली की रकम ज़्यादा और एडवांस मिलती है. सरकारी मानक चाहे जो भी हो लेकिन ठेकेदारों को कार्य करने के लिए अपना मानक चुनना पड़ता है जिस मानक के आधार पर लागत लगती है. इतने में खस्ता हाल सड़क ही बन पाती है।

अब विचार करने योग्य बात यह है कि विकास को जो पैसा आता है, उसमे 50% के मालिक माननीय और 50% में विकास कार्यों का चक्का धुमाया जाता है. यानी विकास के आधे पैसे में महोदय का हिस्सा और आधे में समस्त आबादी!

आज देश एक ढ़ाँचे के रुप में है और देश को उस वक्त से पहले दीमक से बचाने की आवश्यकता है कि देश को दीमक खाक कर दे।