शहर भोपाल बहुत खूबसूरत है, उतने खूबसूरत यहां के बुज़ुर्गो थे जिन के नाम पर भोपाल के विभन्न चौराहे बने, ताकि उन बुजुर्गों के नाम के साथ उन के काम भी याद किये जाते रहे. सैकड़ो चौराहे हैं यू तो भोपाल के सीने पर, सब का अपना महत्व है. जिनका नाम नगर निगम बाकायदा उन बुज़ुर्गो के नाम से रखा है. उदहारण के लिए खान शाकिर अली खान चौराहा, जिसका बोर्ड पहले लगा था. फ़िलहाल लंबे समय से गयाब है. मौलाना तराज़ी मशरीकी रोड चौराहा बोर्ड भी गयाब. इनके किये काम भी गयाब. उल्लेखनीय है कि इन जैसे कई नाम जिन के चौराहे ओर मार्ग शहर में है. जिन को ये सम्मान उन के दुनियां से जाने के बाद मिला. लेकिन नगर निगम तो महान है. इसने बलात्कार के आरोपी आसाराम के नाम पर चौराहे का नामकरण किया हुआ है. शायद ये पहला व्यक्ति ही होगा जो जीते जी चौराहा बन गया. बोर्ड भी इस तरह लगाया है, जो हर सैलानी को अपनी ओर आकर्षित करता है. ये कैसी आंखे हैं,नगर निगम की किस नज़र से देखती है शहर के उन बाशिंदों को जिन्होंने अपना खून पसीना दे कर आज भोपाल को भोपाल बना दिया. डॉ शंकर दयाल शर्मा से लेकर शाहिद नूर तक हाजरो लोग इस शहर ने हिंदुस्तान को दिए, उनकी सब कुर्बानियों को मुँह चिढ़ाता वो चौराहे पर लगा बोर्ड जिस पर लिखा है— आसाराम चौराहा. वही संस्कृति के रक्षक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पूरे प्रदेश में पद्मावत फिल्म को तब तक लगने नहीं दिया, जब तक की वह आश्वस्त नही हो गए कि कही किसी की भवनायें आहत तो नही हो रही. इस के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़े. रानी पद्मावती को भारत की राष्ट्रमाता कहने वाले महिलाओं की फिक्र करने वाले मुख्यमंत्री को राजधानी के एयरपोर्ट के पास सिंधिया रोड़ पर लगा वो बोर्ड भी देख लेना चाहिए जो कही ना कहीं उन महिलाओं की भावना ज़रूर आहत कर रहा है, जिनके आरोपों की वजह से आसाराम आज जेल की सलाखों के पीछे है. बावजूद इसके नगर निगम ने ना तो चौराहे का नाम बदला है, ना ही उस चौराहे से अपना वह बोर्ड हटाया है. इस बारे में बड़े बड़े पत्रकारों ने अपनी कलम से कुछ नही लिखा, ना किसी समाज सेवी ने इस का विरोध किया. महिला संगठनों ने भी अपनी जबान पर ताला लगा रखा है.सब खमोश हैं. किसी ने नहीं पूछा कि एक आरोपी के नाम पर चौराहा, बस स्टॉप क्यो?