‘लड़ो पढ़ाई करने को और पढ़ो समाज बदलने को’ का नारा देने वाला जेएनयू एक बार फिर से चर्चा में है. इस बार छात्रों के साथ - साथ शिक्षक भी कदम से कदम मिला के चल रहे हैं.

जेएनयू छात्र आंदोलन से उभरे छात्र नेता बीरेंद्र कुमार का कहना है कि छात्र आंदोलन अब किसी पार्टी या व्यक्ति से नियंत्रित नहीं हो रहा है. अब इंडिविजुअल लोग आंदोलन को अपने हिसाब से आगे बढ़ा रहे हैं. यूनिवर्सिटी स्ट्राइक भी उसी का नतीजा है. वे आगे बताते है यूनिवर्सिटी स्ट्राइक की सफलता के पीछे भी यही कारण है.

हमने जितने भी छात्रों से बात किया सोसल मीडिया से जो जानकारियां मिली, उस हिसाब से आंदोलित छात्रों की निम्न मांगे हैं :

● यहाँ पढाई कर रहे शोधार्थियों के लिए हाजिरी की अनिवार्यता

● जीएस कैश को ख़त्म करना

● सेंटर के चेयरपर्सन को अचानक से हटा दिया जाना

● हॉस्टल फी और फाइन को कई गुना ज्यादा करना

● यौन उत्पीडन के आरोपी पर कोई करवाई नहीं करना और चुप्पी साधे रहना

● SC/ST/OBC आरक्षण नियमो का पालन नहीं करना

● विरोध प्रदर्शन और लोकतान्त्रिक अधिकार को सीमित करना

● प्रवेश प्रक्रिया में 100 प्रतिशत साक्षात्कार को तवज्जो देना

● प्रवेश प्रक्रिया के नियमों में भारी उलटफेर करना

एक छात्र ने आरोप लगाया कि तत्कालीन VC भगवा चादर ओढ़े सीधे तौर पर RSS के एजेंडें को लागू करके छात्रों के अधिकारों को खत्म करने पर तुले हैं.

राइटविंग से जुड़े एक छात्र ने कहाँ कि जेएनयू कोई डिग्री बाटने का केंद्र नहीं है. इसलिए कंपल्सरी अटेंडेंट जैसा बेतुका फरमान का विरोध करना ही चाहिए.

छात्र समुदायों के सारी मांगो को देखते हुए यही लगता है कि वीसी अपने मनमानी पर उतर आये हैं. आंदोलन करने वाले छात्रों और शिक्षकों के साथ बर्बरतापूर्वक व्यवहार कर रहे हैं. छात्रों और शिक्षकों की मांगों को दरकिनार करते हुए वेतुका तर्क दे रहे हैं.

जरूरत है निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर आवाज बुलंद करने की.