बेशक ‘14 के बाद से भाजपा की चुनाव मशीनरी को, अपवादों को छोड़, लगातार सफलता मिलती दिख रही है. मगर गौर से देखें तो बीते चार वर्षों के दौरान भी उसे अमूमन उन्हीं राज्यों में सफलता मिली है, जो मोदी के उभार के पहले से भाजपा का प्रभाव क्षेत्र रहा है. उनमें से भी पंजाब और गोवा में मोदी लहर की भद्द ही पिटी. खुद मोदी के गृह राज्य गुजरात में भाजपा बमुश्किल इज्जत बचा पायी. पूर्व के एक बड़े राज्य असम में अवश्य उसका विस्तार हुआ है. बंगाल में भी उसका प्रभाव बढ़ा है. त्रिपुरा के नये गढ़ को फतह करना बेशक उसकी उपलब्धि है. मगर पूर्वोत्तर के अन्य छोटे राज्यों में उसका विस्तार महज जुगाड़, ‘प्रबंधन’ और दलबदल का ही नतीजा है.

फिर भी मोदी मुरीद आश्वस्त हैं कि मोदी का जलवा बरकरार है, तो कोई क्या कर सकता है!

वैसे नरेंद्र मोदी को मिले ‘प्रचंड जनादेश’ और अब भी बरकरार ‘मोदी लहर’ के सन्दर्भ में इन तथ्यों पर भी गौर करना चाहिए-

सिक्किम, मिजोरम और तमिलनाडु विधानसभा में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है.

आंध्रप्रदेश की 294 सीटों में भाजपा की मात्र 9; केरल :140 में मात्र एक; पंजाब : 117 में मात्र तीन; बंगाल : 294 में से मात्र तीन; तेलंगाना : 119 में मात्र पांच; दिल्ली : 70 में मात्र तीन; ओड़ीसा : 147 में मात्र 10; नागालैंड : 60 में मात्र 12.

जिन राज्यों में भाजपा सत्ता में साझीदार है, उनमें से मेघालय में 60 में इसके मात्र दो विधायक, बिहार : 243 में 53, जम्मू-कश्मीर : 87 में 25; और गोवा : 40 में से मात्र 13.

देश के सभी राज्यों के कुल 4139 विधायकों में भाजपा के विधायकों की संख्या मात्र 1516 है. इनमें से भी इसके 950 विधायक केवल छह राज्यों- गुजरात, महाराष्ट्, उप्र, मप्र, राजस्थान और कर्नाटक- से हैं. फिर भी दावा है कि देश में मोदी का जादू चल रहा है! अभी संपन्न हुए कर्नाटक विस चुनाव में भाजपा को भले ही 104 सीटें मिल गयीं, पर उसे कांग्रेस से कम वोट मिले हैं! फिर भी दावा यह कि ‘मोदी मैजिक’ बरकरार है. एक अखबार की हेडिंग थी : मोदी वेव स्पीप्स कर्नाटका!

असल में ‘मोदी का जादू’ यह है, जो मीडिया के और हिंदू समाज के (खास कर, उत्तर भारतीय सवर्ण समुदाय) बड़े हिस्से पर चला हुआ है!