भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया तो यह मीडिया में एक बहुचर्चित विषय बन गया. संघ हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए अपना कैडर तैयार करता है. कुछ चुने हुए व्यक्तियों को इस तरह का मानसिक तथा शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे उन विचारों में परिपक्व होकर पूरे भारत में उन्हें फैला सकें. प्रशिक्षण के अंत में होने वाले दीक्षांत समारोह में किसी विशेष व्यक्ति को बुला कर एक विशाल कार्यक्रम करने की अपनी परंपरा का हवाला देते हुए प्रमुख संघ संचालक का कहना था कि इस कार्यक्रम में वे किसी भी प्रमुख व्यक्ति को बुला सकते हैं, भले ही वे उनके विचारों में विश्वास नहीं करते हो..

इस बार प्रणव मुखर्जी को बुलाया गया जो पूर्व राष्ट्रपति होने के साथ-साथ कांग्रेस के एक प्रमुख नेता भी हैं. लगभग पचास वषों से लोकसभा के सदस्य के रूप में उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों का भार संभाला. इस तरह वे एक अनुभवी राजनीतिक चिंतक भी हैं. संघ के निमंत्रण स्वीकार करने से उनकी आलोचना शुरु हो गई. कांग्रेस के विभिन्न नेताओं ने इसे इस रूप में लिया जैसे वे संघ के समर्थक या हितैषी बन गये हों. उनकी बेटी शर्मिष्ठा ने ट्विटर के द्वारा अपने पिता को सावधान किया कि संघ पर उनके विचारों का प्रभाव तो कुछ नहीं पड़ेगा, वे लुप्त हो जायेंगे, लेकिन उनके साथ लिये गये फोटो का संघ अपने हित में प्रयोग करेगा.

अनुभवी प्रणव मुखर्जी इन सारी प्रतिक्रियाओं पर चुप रहे. इन तीखे प्रहारों से विचलित हो कर उन्होंने अपने कार्यक्रम को रद्द नहीं किया. तय समय में वे नागपुर के मुख्य कार्यालय पहुंच गये. वहां आगंतुओं के खाते में उन्होंने यह लिखा कि संघ के संस्थापक हेगड़ेवाल भारत के सपूत हैं और उनका नमन कर अपना हस्ताक्षर किया. बाद में संघ के प्रर्थाना के समय खड़े होकर उनको सम्मान भी दिया. उन्होंने अपने अतिथीय भाषण में राष्ट्र, राष्ट्रवाद तथा देशप्रेम को केंद्र बना कर भाषण दिया. उनके अनुसार भारत के महान प्रजातंत्र में जिस संविधान को शासन का आधार माना गया, वह हमें धर्मनिरपेक्षक, अहिंसक और समतावादी बनाता है. सहिष्णुता ही हमारा मूल मंत्र है और विभिन्नता में एकता के हम समर्थक हैं. अपने लंबे भाषण में उन्होंने प्राचीन इतिहास से लेकर आजादी की लड़ाई तक के इतिहास को दोहराया. प्राचीन इतिहास का विषद वर्णन तो किया लेकिन मध्यकालीन इतिहास, जो मुगलों का शासन काल था तथा आधुनिक इतिहास जो अंग्रेजों का शासन काल था, को संक्षेप में निपटा दिया. हालांकि हमारे इतिहास में ये दोनों काल बहुत ही महत्वपूर्ण रहे हैं. भारतीय संस्कृति, कला, वास्तुकला, संगीत आदि का विकास मुगल काल में ही हुआ जिस पर हम आज भी गर्व करते हैं. इसी तरह अंग्रेजी शासन काल में शिक्षा का जिस तरह प्रचार प्रसार हुआ जो आगे चल कर हमें आजादी का महत्व समझाया, रास्ता दिखाया, इन बातों को न कह कर प्रणव मुखर्जी ने अपनी अज्ञानता को तो नहीं ही दिखाया होगा, इसके विषद वर्णन से होनेवाली आलोचनाओं से वे बचना चाहते थे. लेकिन वर्तमान सरकार के इस विचार धारा को इससे पुष्टी मिलती है कि मुसलमानों ने हमें केवल बिरयानी और अंग्रेंजों ने केक खाना और बनाना सिखाया.

प्रणव मुखर्जी ने संघ के गढ़ में अपने वक्तव्य के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, पटेल तथा अन्य कांग्रेसी समर्थक नेताओं का नाम लेकर अपनी राजनीतिक सूझबूझ, निर्भीकता और निष्पक्षता का परिचय दिया. मुखर्जी के इस भाषण से कांग्रेस की सारी आशंकाये ंतो दूर हुई होंगी, साथ ही दलगत राजनीति से उपर उठ कर निर्भीकता से सच्चाई को प्रकट करने का पाठ भी उन्हें मिल गया होगा.राजनीतिक दल केवल निहित स्वार्थों और संकीर्ण मानसिकता को लेकर नहीं चल सकते हैं. नेहरु काल के बाद से ही कांग्रेस के पतन का प्रमुख कारण यही अहंकार तथा संकीर्णता रही है. आज भी जब उन्हें पता चल गया कि विरोधी एकता ही देश को पतन से बचा सकता है, तो भी वे गंभीर नहीं हुए. खैर, मुखर्जी के भाषण के निहितार्थ या गहनता को समझे तो शायद कांग्रेस का उद्धार हो. प्रणव मुखर्जी के संघ कार्यालय की यात्रा में खोट निकालने वाले यह भी कहते हैं कि पहले उनका वहां जाना और वहां जा कर हेगडेवार को भारत का सपूत कहना गलत है. किसी भी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बना कोई व्यक्ति वहां तलवार पकड़ कर लड़ने नहीं जाता है. हेगडेवार को भारत का सपूत कहने मात्र से वे दोषी नहीं बन जाते हैं. उन्हें अपनी बात कहनेकी आजादी देनी होगी.

अब रहा संघ या बीजेपी, प्रणव मुखर्जी की इस यात्रा का कहां तक फायदा उठाती है. सत्ता में आने के बाद से ही बीजेपी सरकार धर्म, जाति आदि को लेकर जिस तरह की मारकाट मचा रही है और कार्य में शून्य है, इससे उसकी लोकप्रियता में कमी तो जरूर आई है, 2019 में लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं. इसके मद्देनजर बीजेपी को अपनी छवि सुधारने की जरूरत पड़ गई है. जनता तक अपनी पहुंच दिखानी है. इसलिए उसने अपने मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के लिए यह योजना बनाई कि वे सब अपने क्षेत्रों में जाकर जनसंपर्क करें. जाति सौहार्द, धार्मिक सौहार्द का दिखावा ही सही करंे. इसी कार्यक्रम के तहत बीजेपी के अध्यक्ष अमितशाह, रतन टाटा, लता मंगेशकर तथा माधुरी दीक्षित जैसी हस्तियों से मिलने जा रहे हैं. संघ के कार्यक्रम में प्रणव मुखर्जी को बुलाना भी इसी योजना की एक कड़ी हो सकती है. प्रणव मुखर्जी ने इस आमंत्रण को स्वीकार कर कुछ गलत नहीं किया. इससे वे संघ के समर्थक नहीं बन सकते हैं. लेकिन उन्होंने इतिहास में डंडी जरूर मारी है और हो सकता है संघ को इसका राजनीतिक फायदा हो जाये.