नई दिल्ली, 16 सितंबर 1947

'’बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक शिविर में गया था. उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे. स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहां मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देख कर अत्यन्त प्रभावित हुआ था. तब से संघ काफी बढ़ गया है. मैं तो हमेशा से यह मानता आया हूं कि जो भी संस्था सेवा और आत्म त्याग के आदर्श से प्रेरित है, उसकी ताकत बढ़ती ही है. लेकिन सच्चे रूप में उपयोगी होने के लिए त्यागभाव के साथ ध्येय की पवित्रता और सच्चे ज्ञान का संयोजन आवश्यक है. ऐसा त्याग, जिसमें इन दो चीजों का अभाव हो, समाज के लिए अनर्थकारी सिद्ध हुआ है.

शुरू में जो प्रार्थना गाई गई उसमें भारत माता, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म की प्रशस्ति है. मैं यह दावा करता हूं कि मैं सनातनी हिन्दू हूं. मैं ‘सनातन‘ का मूल अर्थ लेता हूं. हिन्दू शब्द का सही सही मूल क्या है, यह कोई नहीं जानता। यह नाम हमें दूसरों ने दिया और हमने उसे अपने स्वभाव के अनुसार अपना लिया. हिन्दू धर्म ने दुनिया के सभी धर्मों की अच्छी बातें अपना ली हैं और इसलिए इस अर्थ में यह कोई वजर्नशील धर्म नहीं है. अतः इसका इस्लाम धर्म या उसके अनुयायियों के साथ ऐसा कोई झगड़ा नहीं हो सकता, जैसाकि आज दुर्भाग्यवश हो रहा है. जब से हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता का जहर फैला, तब से इसका पतन आरम्भ हुआ.

एक चीज निश्चित है, और मैं यह बात जोर से कहता आया हूं, यानी यदि अस्पृश्यता बनी रही तो हिन्दू धर्म मिट जायेगा. उसी तरह अगर हिन्दू यह समझें कि हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के सिवाय अन्य किसी के लिए कोई जगह नहीं है और यदि गैर हिन्दू, खासकर मुसलमान, यहां रहना चाहते हैं तो उन्हें हिन्दुओं का गुलाम बन कर रहना होगा, तो वे हिन्दू धर्म का नाश करेंगे. और इसी तरह यदि पाकिस्तान यह माने कि वहां सिर्फ मुसलमानों के ही लिए जगह है और गैर-मुसलमानों को वहां गुलाम बनकर रहना होगा तो इससे हिन्दुस्तान में इस्लाम का नामोनिशान मिट जायेगा. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है कि भारत के दो टुकड़े हो चुके हैं. अगर एक हिस्सा पागल बनकर शर्मनाक कार्य करे तो दूसरा भी वैसा ही करे? बुराई का जवाब बुराई से देने में कोई लाभ नहीं है. धर्म ने हमें बुराई के बदले भलाई करना ही सिखाया है.

कुछ दिन पहले ही आपके गुरुजी से मेरी मुलाकात हुई थी. मैंने उन्हें बताया था कि कलकत्ता और दिल्ली में संघ के बारे में क्या क्या शिकायतें मेरे पास आई थीं. गुरुजी ने मुझे आश्वासन दिया कि यद्यपि संघ के प्रत्येक सदस्य के उचित आचरण की जिम्मेदारी नहीं ले सकते, फिर भी संघ की नीति हिन्दुओं और हिन्दू धर्म की सेवा करना मात्र है और वह भी किसी दूसरे को नुकसान पहुंचा कर नहीं. संघ आक्रमण में विश्वास नहीं रखता। अहिंसा में उसका विश्वास नहीं है. वह आत्म रक्षा का कौशल सिखाता है. प्रतिशोध लेना उसने कभी नहीं सिखाया.’

गांधी ने आगे कहा- ‘संघ एक सुसंगठित, अनुशासित संस्था है. उसकी शक्ति भारत के हित में या उसके खिलाफ प्रयोग की जा सकती है. संघ के खिलाफ जो आरोप लगाये जाते हैं, उनमें कोई सच्चाई है या नहीं, यह मैं नहीं जानता. यह संघ का काम है कि वह अपने सुसंगत कामों से इन आरोपों को झूठा साबित कर दे.

आज हिन्दुस्तान की नाव बड़े तूफान में से गुजर रही है. जो नेता हुकूमत की बागडोर लेकर बैठे हैं, वे भारत के सर्वश्रेष्ठ नेता हैं. कुछ लोग उनसे असंतुष्ट हैं. मैं उनसे कहूंगा कि वे यदि इनसे अच्छे व्यक्ति ला सकते हैं तो लायें. तब मैं आज के नेताओं से सिफारिश करूंगा कि वे हुकूमत की बागडोर उन्हें सौंप दें. आखिर सरदार तो बूढ़े हो गये हैं. जवाहरलालजी उम्र के लिहाज से तो बूढ़े नहीं हैं, लेकिन काम के बोझ से बूढ़े से दिखने लगे हैं. वे यथाशक्ति जनता की सेवा कर रहे हैं. लेकिन वे काम तो अपनी समझ के मुताबिक ही कर सकते हैं. दोनों देश के माने हुए सेवक हैं. उन्हें अपनी सेवा करने का अवसर दीजिए. कानून को अपने हाथ में लेकर आप उनके प्रयत्नों में बाधा न डालें.

अगर अधिकांश हिन्दू किसी खास दिशा में जाना चाहें चाहे वह दिशा गलत ही क्यों न हो, तो उन्हें वैसा करने से कोई रोक नहीं सकता. लेकिन किसी आदमी को फिर वह अकेला ही क्यों न हो, उनके खिलाफ अपनी आवाज उठाने और उन्हें चेतावनी देने का अधिकार है. वही मैं आज कर रहा हूं. मुझसे कहा जाता है कि आप मुसलमानों के दोस्त हैं और हिन्दुओं और सिखों के दुश्मन. यह सत्य है कि मैं मुसलमानों का दोस्त हूं, जैसा कि मैं पारसियों और अन्य लोगों का हूं. ऐसा तो मैं बारह वर्ष की उम्र से ही हूं. लेकिन जो मुझे हिन्दुओं और सिखों का दुश्मन कहते हैं, वे मुझे पहचानते नहीं. मैं किसी का भी दुश्मन नहीं हो सकता, हिन्दुओं और सिखों का तो बिल्कुल ही नहीं.

अगर पाकिस्तान बुराई ही करता रहा तो आखिर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में लड़ाई होनी ही है. अगर मेरी चले तो न तो मैं फौज रखूं और न पुलिस. मगर ये सब हवाई बातें हैं. मैं शासन नहीं चलाता. पाकिस्तान वाले हिन्दुओं और सिखों को क्यों नहीं मानते कि यहीं रहो, अपना घर न छोड़ो. वे उन्हें हर तरह की सुरक्षा क्यों नहीं देते. इसी तरह क्यों न आज भारतीय संघ एक एक मुसलमान की सुरक्षा सुनिश्चित करे? दोनों आज पागल जैसे हो गये हैं. इसका परिणाम तो बरबादी और तबाही ही होगी.’’