झारखंड में आदिवासियों की जमीन हड़पने पर अमादा भाजपा की सरकार ने इस बार बिरसा की भूमि को बदनाम करने की असफल साजिश की है और उसमें मीडिया उसकी पार्टनर बनी है. खूंटी ‘अबुआ दिशोम, अबुआ राज’ का नारा बुलंद करने वाले और अपने समय की सबसे शक्तिशाली साम्राज्यवादी ब्रिटिश ताकत से लोहा लेने वाले बिरसा की जन्म भूमि और कर्म भूमि रही है और कोई आश्चर्य नहीं कि रघुवर सरकार अपनी विनाशकारी विकास नीति का सबसे कड़ा प्रतिरोध पत्थरगड़ी आंदोलन के रूप में आज वहीं झेंल रही है. पहले तो भाजपा सरकार ने पत्थरगड़ी आंदोलन को संविधान विरोधी साबित करने की कोशिश की, लेकिन उसमें असफल रहने के बाद एक नया षडयंत्र यह रचा जिससे इस आंदोलन और आंदोलनकारियों की छवि पूरे देश में बदनाम हो.

पिछले चार दिनों से भाषायी अखबार और देश के सभी चैनल इस सुर्खी को दिखाते रहे कि खूंटी में पांच महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और इसके पीछे पत्थरगड़ी आंदोलनकारियों का हाथ है. कहानी यह बताया और दिखाया जा रहा है कि ह्यूमेन ट्रैफिक्रिग के खिलाफ वातावरण बनाने के लिए कोई एनजीओ नुक्कड़ नाटक टीम के साथ खूंटी गई. वहां एक मिशन स्कूल में जब नुक्कड नाटक चल रहा था, तभी कुछ लोग दो मोटर साईकल पर आये और टीम के सदस्यों को उन्हीं के वाहन में बैठा कर कही ले गये. उन्होंने टीम के सदस्यों से मारपीट की और महिलाओं से बलात्कार किया. फिर वे उन सबको उसी स्कूल में छोड़ गये.

यह घटना पिछले मंगलवार की है. लेकिन चर्चा में बुधवार को पुलिस के डीआईजी के मार्फत सामने आयी. बताया यह गया कि मंगलवार को नुक्कड़ नाटक टीम की महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया. उन्हें अगवा करने वाली टीम ने कहा कि आप लोग इस स्वायत्त क्षेत्र में कैसे बिना हमारी अनुमति घुसे. उन्होंने चेतावनी दी कि दुबारा ऐसा नहीं करें.

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि हमने घटना की शिकार महिलाओं और उसके साथ गये पुरुषों की शिनाख्त कर ली है. वे सभी बालिग हैं. एक एफआईआर दर्ज कर लिया गया है और एक मेडिकल बोर्ड का भी गठन कर दिया गया है. यह जानकारी पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा गुरुवार की शाम दी गई. और शुक्रवार की सुबह रांची के सभी अखवार की सुर्खी बनी- बंदूक की नोक पर खूंटी में पांच औरतों के साथ बलात्कार.

यह अधिकतर प्रबुद्ध लोग मानते हैं कि बलात्कार आदिवासी संस्कृति की नहीं, गैर-आदिवासी संस्कृति का हिस्सा है. बावजूद इसके इस तरह की घटनाएं अब आदिवासी बहुल इलाकों के लिए भी अपवाद नहीं रह गया. फिर भी इस मामले में आशंका के अनेकानेक कारण हैं.

  • इस घटना की जानकारी का स्रोत क्या है? बताया गया है कि भुक्तभोगी महिलाओं ने किसी एक समाजकर्मी को यह जानकारी दी कि उनके साथ बलात्कार हुआ. उस समाजकर्मी ने किसी और को बताया और फिर उसने पुलिस को घटना का ब्योरा दिया. वैसे, एक अन्य अखबार ने बलात्कार की वीभत्स कहानी दो पत्रकारों की जुबानी छापी और दावा किया कि उन्हें यह जानकारी भुक्तभोगी महिलाओं ने दी.

अब सवाल उठता है कि ह्यूमेन ट्रैफिकिंग के खिलाफ प्रचार कार्य में जुड़ी महिलायें क्या खुद यह समझ नहीं रखती कि यदि महिलाओं का उत्पीड़न हो तो उसे तुरंत पुलिस को सूचना देनी चाहिये? कुछ लोग कहेंगे कि कि वे लोक-लाज के भय से ऐसा नहीं कर सकीं. विरोधाभास यह कि उन्होंने दो पत्रकारों को पूरे बिस्तार से घटना का ब्योरा दिया.

  • पुलिस ने पहले दिन यह जानकारी दी कि ‘हमने सर्वाइवरों और उनके साथ गये पुरुषों की शिनाख्त कर ली है.’ जाहिर है कि इसका अर्थ यह हुआ कि उस समय तक वह भुक्तभोगियों को ही पहचान ने में लगी हुई थी. फिर उसने यह कैसे मान लिया कि इसमें पत्थरगड़ी आंदोलनकारियों का हाथ है या हो सकता है.

  • मेडिकल जांच यदि हुई तो वह अब तक सामने आई क्यों नहीं?

  • शुक्रवार को टाईम्स आॅफ इंडिया के दो पत्रकार खूंटी गये. भुक्तभोगी महिलाओं के बारे में दरियाफ्त किया. पुलिस ने बताया कि जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन्हें हुटार के एक अनाथालय में रखा गया है. लेकिन दोनों पत्रकार हुटार के उस अनाथालय में गये तो वहां उन्हें वे महिलाएं नहीं मिली. उन्होंने अनाथालय की संचालिका से बात की तो बताया गया कि न वहां कोई पुलिस टीम पिछले दो दिनों में आई हैं न उक्त महिलाएं.

इसका अर्थ हुआ कि न तो उन महिलाओं का पता है, न उनका किसी तरह का आधिकारिक बयान ही पुलिस के पास है. लेकिन कथित बलात्कार के आरोप में जांच और गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी है. इस पूरे प्रकरण में वे उस भूमि को भी बदनाम कर गये जहां अंग्रेजी साम्राज्यवाद से लोहा लेने वाले आदिवासियों के अप्रतिम जननायक बिरसा ने जन्म लिया था और जो खुद्दार मुंडा आदिवासियों की भूमि है.

हम उम्मीद करें कि पुलिस जल्द ही अपना जांच कार्य पूरा करेगी और कहानी के गुम कड़ियों को खोज निकालेगी.