पिछले दो दिनों से मिशनरीज आॅफ चैरिटीज की एक सिस्टर का वीडियो सोशल मीडिया पर घूम रहा है. इस वीडियो को ही एनडीटीवी सहित कई न्यूज चैनलों ने दिखाया और इसे बच्चों को बेचे जाने वाले प्रकरण में एक बड़ा मोड़/खुलासा बताया. हालांकि इस वीडियों से ही इस बात के संकेत मिलते हैं कि झारखंड सरकार स्थानीय प्रशासन और पुलिस का इस्तेमाल कर ईसाई मिशनरियों को बदनाम करने का घृणित खेल खेल रही है. इस साजिश को समझने के लिए किसी खुफिया यंत्र की जरूरत नहीं, न बहुत ज्यादा भागदौड़ करने की ही जरूरत है, बस इस वीडियो को ही थोड़ी मानवीय संवेदना के साथ देखने और समझने की जरूरत है.

सबसे पहला सवाल तो यह उठता है कि यह वीडियो सोशल मीडिया तक आया कैसे? इस वीडियो को बनाया किसने? देखने से तो यही लगता है कि सिस्टिर से कोई अधिकारी कड़ाई से पूछ ताछ कर रहा है और सिस्टर घुटे स्वर में बच्चा बेचने का अपराध स्वीकार कर रही हैं. अब सिस्टर तो इस प्रकरण के उद्घाटन के बाद से ही पुलिस की गिरफ्त में हैं. जाहिर है, यह पूछताछ पुलिस कस्टडी में ही की जा रही है. तो क्या पुलिस ने ही यह वीडियो बनाया और सोसल मीडिया पर लीक किया? यदि पुलिस ने बनाया तो उसे कोर्ट में पेश किया जाना है या सोशल मीडिया पर? इसका अर्थ तो यह हुआ कि बिना कोर्ट द्वारा अपराध की पुष्टि हुए हुए सिस्टर और मिशनरीज आॅफ चैरेटीज को दुनिया भर में बदनाम करने का काम झारखंड की भाजपा सरकार कर रही है?

वैस, हमारे कुछ बुद्धिमान मित्र कहेंगे कि अब वीडियो जिस तरह से भी सामने आया हो, उसमें सिस्टर अपराध स्वीकार करती दिखती तो हैं. उन्हें यह यह बताने की जरूरत नहीं कि पुलिस थानों में किसी को भी दो चार थप्पड़ लगा कर कुछ भी कबूलवाया जा सकता है. बावजूद इसके अभी हम यह नहीं कहेंगे कि बच्चा बेचे जाने का आरोप गलत ही है. पुलिस प्रशासन को किसी भी सूत्र से यदि इस तरह की शिकायत मिली है तो इसकी जांच होनी चाहिये. लेकिन इस बात की भी जांच होनी चाहिये कि यह वीडियो कैसे बनी, किसने बनाई और सोशल मीडिया पर कैसे जारी हुई?

उल्लेखनीय है कि सोशल मीडिया पर इस वीडियो के आने के पहले विशप मास्केरेनहैस एक प्रेस कंफ्रेंस कर इन आरोपों को गलत कह चुके हैं और न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठा चुके हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि गिरफ्तार सिस्टर के वकील को एक स्प्ताह तक अपने मुवक्क्लि से मिलने नहीं दिया गया. और उसके बाद जब वे सिस्टर से मिल पाये तो सिस्टर ने जानकारी दी कि उनसे जबरदस्ती दबाव देकर ‘कनफेशनल स्टेटमेंट’ लिया गया.

यहां यह बताना प्रासांगिक होगा कि खूंटी के कथित बलात्कार कांड में भी ईसाई मिशन द्वारा चलाये गये स्कूल के प्राचार्य और ननों को बदनाम करने की साजिश हुई है. पूरे प्रकरण को राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखने की भी जरूरत है. देश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से अल्पसंख्यकों और दलितों पर लगातार आक्रमण हो रहे हैं. दलितों पर हो रहे अत्याचार की खबरें छपती रहती है. गोरक्षा के नाम पर ‘माॅब लिचिंग’ में मुस्लिम समुदाय के लोग मारे जा रहे हैं. विडंबना यह कि इन पर शर्म खाने की जगह भाजपा के नेता हत्यारों का माला पहना कर स्वागत करते हैं. केंद्र सरकार के मंत्री दंगाईयों से जाकर मिलते हैं.

दरअसल, यह वोट की राजनीति के लिए किये जा रहे उपक्रम हैं. यदि नहीं, तो सरकार को तत्काल झारखंड में हुई हाल की घटनाओं की उच्चस्तरीय जांच करनी चाहिये. जांच का काम स्थानीय पुलिस प्रशासन नहीं कर सकती. उनकी भूमिका संदेह के घेरे में है. बाबूलाल मरांडी सहित विपक्षी दलों के नेताओं ने इन मामलों की सीबीआई जांच की मांग की है.

क्या सरकार इन मामलों की निष्पक्ष और उच्च स्तरीय जांच करायेगी?