इक्कीसवें विधि आयोग के कार्यावधि (२०१५ से २०१८) समाप्ति की पूर्व संध्या पर इसके अध्यक्ष बी. एस चौहान (रिटायर्ड जज) ने देशद्रोह कानून १२४ ए पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि देशद्रोह जैसे कठोर कानून का प्रयोग केवल उस समय हो सकता है जब किसी के क्रियाकलाप से देश की जनता का जीवन प्रभावित होता हो, अस्त व्यस्त होता हो या

फिर हिंसा या गैरकानूनी साधनो के द्वारा सरकार को गिराने की कोशिश होती है. उन्होंने यह भी कहा की किसी व्यक्ति पर देशद्रोह का आरोप, उसके ऐसे विचारों की अभिव्यक्ति के कारण नही लग सकता है जो सरकार की नीतियों के विरुद्ध हो.

आयोग के अनुसार देशद्रोह कानून पर देश में एक स्वस्ठ बहस होनी चाहिये. यह बहस देश की कानून बनाने वाले सांसद, कानूनविद्, सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं, शिक्षाविद्, विद्यार्थी तथा सबसे पहले आम जनता के बीच यह बहस होनी चहिये जिसके सकारात्मक परिणाम निकलें और कानून मे जनता के अनुकूल परिवर्तन लाया जा सके.

बोलने या विचाराभिव्यक्ति के अधिकार की वकालत करते हुए आयोग ने कहा की प्रजातंत्र में एक ही किताब से गीत गाना देशभक्ति का सूचक नही है. लोगों को यह आजादी है कि वे अपने तरीके से अपने देशप्रेम को व्यक्त कर सकें. लोग स्वस्थ, रचनात्मक बहस के द्वारा सरकार की नीतियों की खामियों को उजागर कर सकते हैं. उनके विचारों से कई लोग सहमत न हो या वे विचार कठोर भी हो सकते हैं. लेकिन उनके इन विचारों को आधार बना कर किसी व्यक्ति पर देशद्रोह का आरोप नही लगाया जा सकता है.

कभी—कभी कोई गैरजिम्मेदाराना या निराशाजन्य विचार भी व्यक्त कर देते है जो सरकार की वर्तमान नीतियों के विरुद्ध हो सकते हैं. जैसे औरतों के ऊपर लगातार होने वाली हिंसा या बलात्कार से क्षुब्ध होकर कोई

यह कह दे की यह देश महिलाओं की सुरक्षा नही कर सकता है, तो यह देशद्रोह नही हो सकता. इसी तरह कोई शारीरिक रंग को लेकर कोई जाति-सूचक विचार व्यक्त करे तो यह देश का अपमान नही होगा और इसके आधार पर देशद्रोह कानून का इस्तेमाल निश्चित नही किया जा सकता. बोलने की आजादी हमे अपने इतिहास की आलोचना करने या उसका बचाव करने की पूरी आजादी देता है. राष्ट्रीय एकता को कायम रखना राष्ट्र तथा व्यक्ति दोनो का कर्तव्य है. लेकिन राष्ट्रीय एकता को औजार बना कर किसी के विचार अभिव्यक्ति की आजादी को न सीमित किया जा सकता है, न छीना जा सकता है.

भारत जैसे विशाल प्रजातांत्रिक देश को जीवंत रखना है तो आवश्यक है की देश में विरोध तथा आलोचना का स्वर हमेशा मुखर रहे. ये दोनो तत्व प्रजातंत्र को जीवित रखने तथा आगे बढाने के लिये अत्यंत आवश्यक है. इसीलिये बोलने की आजादी पर लगने वाले प्रतिबंधों को बहुत ध्यानपूर्वक समझ कर हटाना होगा. बोलने की आजादी एक मौलिक अधिकार है, इसे देशद्रोह के कानून का आधार नही बनाया जा सकता. जरूरत पडे तो देशद्रोह के कानून में वांछित बदलाव लाने में कोई आपत्ति नही होनी चहिये.

विधि आयोग के विचार ऐसे समय मे आये है जब झारखंड के २० बुद्धिजीवियों पर फेसबुक पर अपने विचार व्यक्त करने पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया. इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न शहरों से प्रख्यात मनावाधिकार कार्यकर्ताओं को इसीलिये गिरफ्तार किया गया कि वे दलितो-आदिवासियों और पीडितों की आवाज को बुलंद करते रहे. विधि आयोग

सरकार द्वारा ही बनायी गयी एक ऐसी संस्था है जो सरकार के कनूनी पेचीदगियों को हल करती है, उन्हें कानूनी सलाह देती है, संविधान की व्याख्या कर उचित मार्गदर्शन का भी काम करती है. विचाराभिव्यक्ति तथा देशद्रोह कानून के संबंध में आयोग ने जो भी सुझाव पेश किये हैं, यदि वर्तमान सरकार उनपर ध्यान दे तो जनता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के साथ साथ लोकतंत्र की भी रक्षा होगी.