अमूमन कोई भी अविष्कार मानव हित या रक्षा के लिए ही होता हैं, लेकिन वह इंसान ही है जिसने हर बात का दुरूपयोग करने में महारत हासिल कर ली है. इंसान चीज़ों का सदुपयोग भी करता है और दुरूपयोग भी. इसके पीछे शायद कारण उसके बहुआयामी प्रवृति का होना है. इंसान रचता है, तो इंसान विध्वंस भी करता है.

इंटरनेट का अविष्कार एक क्रांति की तरह है जिसका अनगिनत अद्भुत उपयोग है, लेकिन साथ-साथ इसके दुरूपयोग से भी आज के समय मे इंकार नहीं किया जा सकता. एक तरफ इंटरनेट ने इंसान की दिनचर्या से जुड़े कई महत्वपूर कार्यों को आसान बना दिया, तो दूसरी तरफ इसके ख़तरनाक परिणामों से भी इंकार नहीं किया जा सकता.

आज इंटरनेट पर दुनियां भर की अनगिनत सामग्रियां हर पल अपलोड और शेयर हो रहें. फिर फेसबुक, वाट्सअप, ट्वीटर, ब्लॉग जैसे प्लेटफार्म भी हैं जिनकी वजह से एक ही पल में सूचनाएं वाइरल हो जा रहीं हैं. अब यह सूचनाएं सही है या ग़लत, यह बात जब तक पता चल पाता है, तबतक यह विमर्श में आ चुका होता है. यहां झूठ को सच और सच को झूठ आसानी से बनाया जा सकता है और उतनी ही आसानी से प्रचारित एवं प्रसारित भी किया जा सकता हैं. यहां अमूमन बहुत ही कम ही लोग होते हैं जो प्रचारित-प्रसारित की जा रही सूचनाओं की सत्यता की पड़ताल करें और फिर यह पड़ताल करना भी हर किसी के हाथ में है नहीं. इंटरनेट पर किसी के पास कोई कंट्रोल नहीं है, इसलिए इसका चरित्र रचनात्मक के साथ अत्यधिक ख़तरनाक भी है. आज इंटरनेट की वजह से जहां एक तरफ बहुत शानदार बातें हुई हैं, वहीं दूसरी तरफ इस माध्यम का दुरुपयोग करके नफ़रत, हिंसा और झूठ फैलाने का काम भी बड़ी ही सहजता से किया गया है. इस खेल में व्यक्ति के साथ ही सर्वोच्य व्यवस्था तक शामिल है. कई दलों ने तो अपना आईटी सेल तक बना लिया है, जहां से वो बल्क में झूठ, नफ़रत और हिंसा को निरंतर फैला रहे हैं और अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए कोई भी हथकंडा इस्तेमाल करने से परहेज़ नहीं कर रहे हैं. आज फेसबुक, वाट्सअप, ट्वीटर आदि पर झूठे फोटो, इतिहास, लेख, स्टेटस, टिपण्णी का ऐसा प्रचंड बाढ़ है कि एक साधारण व्यक्ति के लिए यह तय कर पाना लगभग असंभव है कि क्या सच है और क्या झूठ? यह निश्चित ही एक ख़तरनाक अवस्था है.

शायद ऐसी ही अवस्था को देखते हुए इंटरनेट के जनक टिम बर्नर्स ली ने कहा है कि “मैंने एक दानव पैदा कर दिया. मेरी धारणा थी कि सूचनाओं का जितना व्यापक प्रसार होगा, दुनिया में समानता और न्याय का प्रसार होगा. लेकिन आज इस पूरे तंत्र का प्रयोग जिस प्रकार झूठे और संगठित प्रचार से मनुष्यों के मस्तिष्क पर एकाधिकार कायम करने के लिये हो रहा है, मैं हतप्रभ और निराश हूं.”

वहीं, नेट आज एक बीमारी के रूप में भी सामने आ रहा है. आज हर जगह स्मार्टफोन, लेपटॉप, कम्प्यूटर, टैब आदि में घुसे लोग पाए जा सकते हैं. इन यंत्रों से निकलनेवाली किरणों से आंखों और दिमाग पर तो असर पड़ता है ही, साथ ही हम इस दुनियां में जीते हुए भी दरअसल नहीं जीते हैं, बल्कि हम मानसिक रूप से हर वक्त एक आभासी दुनियां में जीते रहते हैं और हम लाइक कमेंट के मजनू बन जाते हैं. हम किसी नशे की तरह इनके ग़ुलाम हो जाते हैं. हमें लगता है कि हम इसका इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि हम इसके आदी हो चुके होते हैं और जिसके बिना हम बेचैन जैसा कुछ महसूस करने लगते हैं. हम इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए दरअसल समाज से कटते जाते हैं और हम सारी समस्याओं का हल भी यही पर खोजने लगते हैं.

इंसानी जिंदगी यथार्थ की धरातल पर जिया जाता है. किसी आभासी दुनियां में तो बिल्कुल ही नहीं. इसलिए इसका सही, सार्थक, संयमित और सच्चाई के साथ ही इस्तेमाल करना चाहिए, नहीं तो हम गूगल पर पैदा होंगे, वाट्सअप पर जवान होगें और ट्वीटर पर दम तोड़कर किसी ब्लॉग पर दफन हो जायेगें.