आदिवासी समाज के शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ अगनित लोगों ने संघर्ष किया और अपनी शहादत दी. कुछ को लोग जानते हैं, कुछ को कम जानते हैं और कुछ गुमनामी के अंधेरों में खो गये. ऐसा ही एक नाम हैं सोबरन मांझी. जो गुमनामी में गुम हो जाने वाले हैं, यदि भाजपा की यह सरकार कुछ दिन और रह गई. सोबरन मांझी दिसोम गुरु शिबू सोरेन के पिता तो हैं ही, महाजनी शोषण के खिलाफ जिस आंदोलन को मुकाम तक शिबू सोरेन ने पहुंचाया था, उस महाजनी शोषण के खिलाफ जंग की शुरुआत उत्तरी छोटानागपुर क्षेत्र में उन्होंने ही की थी. उनका जन्म कब हुआ, इसे ठीक-ठीक बताना मुश्किल है, लेकिन उनकी जघन्य हत्या महाजनों ने करवायी थी 27 नवंबर 1957 को, जिसका गवाह है गोला प्रखंड के नेमरा गांव के करीब हेडबरगा गांव के सामने आकाश छूते खड़े चंडू पहाड़ के तराई में बने एक चबूतरे पर दर्ज ये शब्द - ‘ झारखंड क्रांति स्थल, सांसद शिबू सोरेन के पिता स्व. सोबरन मांझी की स्मृति में निर्मित. शहीदी तिथि - 27 नवंबर, 1957.

सोबरन मांझी गोला प्रखंड के नेमरा गांव के रहने वाले थे. अपने इलाके के गिने-चुने पढ़े लिखे युवाओं में से एक और पेशे से शिक्षक जिनकी राजनीति में भी थोड़ी बहुत दखल थी. शांत, सौम्य लेकिन किसी तरह का अन्याय न सहने वाले. महाजनों- सूदखोरों से उनकी नहीं पटती थी. उस दौर में शोषण काएक आम तरीका यह था कि महाजन जरूरत पड़ने पर सूद पर धान देते और फसल कटने पर डेवढ़ा वसूलते. न चुकाने पर तरत-तरह के तरीकों से खेत अपने नाम करवा लेते और जिससे जमीन लेते, उसी से उस जमीन पर बेगार खटवाते. उन्होंने ही उस इलाके में महुआ के शराब का प्रचलन भी शुरु किया और नशाखोरी आदिवासी समाज की तबाही का माध्यम बन गया.

सोबरन आदिवासियों को समझाते, उनमें नशाखोरी खत्म करने का जतन करते. एक बार उन्होंने एक महाजन को सरे आम पीटा भी था और इसलिए वे महाजनों की आंख की किरकिरी बन गये. महाजन न उन्हें बरगला सकते थे, न उन्हें खरीद सकते थे, इसलिए अंततोगत्वा उनकी हत्या करने का षडयंत्र किया और सफल हुए. एक अहले सुबह अंधेरे जब वे अपने गांव के करीब के रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने निकले, तो घात लगाकर जंगल में उनकी हत्या कर दी गई. उन दिनों शिबू गोला के एक स्कूल में पढ़ते थे और वहीं हाॅस्टल में अपने भाई राजाराम के साथ रहते थे. सोबरन उनके लिए ही चावल, चूड़ा आदि पहुंचाने जा रहे थे. हत्यारों को जानकारी मिल चुकी थी और उन्होंने घात लगा कर जंगल में मार डाला.

उनकी पत्नी सोनामणि जीवट महिला थी. उन्होंने बहुत दिनों तक अपराधियों को सजा दिलाने के लिए कोर्ट के चक्कर काटे और अपने बच्चों को अपने बलबूते पाला. कोर्ट की तारीखों पर वे बहुधा अपने बड़े हो रहे बच्चों को लेकर जाया करती थी. लेकिन अंत में एक दिन इस एलान के साथ कि अपने पिता के हत्यारों के साथ उनके बच्चे ही इंसाफ करेंगे, वह लौट आई. और उसकी उद्घोषणा इस रूप मे ंसच हुई कि बड़े होकर शिबू सोरेन ने महाजनी शोषण के खिलाफ वह ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी जिसे हम ‘धनकटनी आंदोलन’ के रूप में जानते हैं. उस आंदोलन में बाद में बिनोद बिहारी महतो और कामरेड एके राय भी शामिल हुए और महाजनी शोषण के साथ साथ कोयलांचल में माफियागिरी के खिलाफ भी निर्णायक लड़ाई लड़ी गई. उसी संघर्ष के कोख से झारखंड मुक्ति मोर्चा का जन्म हुआ जो अलग झारखंड राज्य के संघर्ष का वाहक बना.

लेकिन हमे यह नहीं भूलना चाहिए कि महाजनी शोषण के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत सोबरन मांझी ने शुरु की थी. आईये, उनकी शहीदी तिथि पर हम उनका नमन करें.