18 फरवरी को पटना के ऐतिहासिक मैदान में विभिन्न किसान संगठनों के आह्वान पर मजदूरों और किसानों का बड़ा जुटान होने जा रहा है.सभी जानते हैं कि मजदूरों-कारीगरों के श्रम से भवन-अपार्टमेंट बनते हैं पर उन्हें ही रहने को घर नहीं है.एक अनुमान के अनुसार बिहार में 30 लाख परिवारों के पास वासभूमि नहीं है.आवास की वैकल्पिक व्यवस्था किये बिना गाँव और शहर में सड़क के किनारे, तटबन्ध और सरकारी जमीन पर बनी गरीबों की झोपड़ी उजाड़ कर लोकतन्त्र और मानवता का क्रूर मजाक उड़ाया जा रहा है.

इसीलिए 18 फ़रवरी के जन जुटान की पहली मांग है- बिहार सरकार गाँव और शहर के प्रत्येक वास भूमिहीन परिवार के लिए ऐसा कानून बनाये जिससे सभी जरूरतमन्द घराडी की जमीन के हकदार बन सकें.

नदियों के कटाव से विस्थापन के कारण वास भूमिहीन परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है. 2008 की कुसहा त्रासदी के बाद 2 लाख 36 हजार 632 बरबाद घरों के बदले सरकार ने लगभग 60 हजार घरों के निर्माण के बाद अपने हाथ खींच लिए. नदियों के कटाव से विस्थापित परिवारों को एक समय सीमा के अंतर्गत वासभूमि एवम् घर देकर पुनर्वासित करना हमारी मांगों में शामिल है.

पिछले 30-40 वर्षों से हजारों भूमिहीन भू-हदबंदी अधिनियम के तहत फाजिल घोषित भूमि का पर्चा लेकर दर-दर भटकने को मजबूर हैं. वर्ष 2011 के सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना के अनुसार बिहार में अनुसूचित जाति के 81 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं. भूमि सुधार कानून और उसके उद्देश्य को परास्त करने में भूधारी, नेता, वकील और अफसर जी जान से जूट हुए हैं.भू-हदबंदी के 260 मुकदमें पटना उच्च न्यायालय में लम्बित हैं. जिलों की राजस्व अदालतों में सैकड़ों सीलिंग केस पड़े हुए हैं. बिहार भूमि सुधार कोर कमिटी के सुझाव पर सरकार ने बिहार भूमि सुधार (अधिकतम सीमा निर्धारण एवम् अधिशेष भूमि अर्जन) अधिनियम 1961 की उपधारा 45 बी को समाप्त कर दिया, पर दो साल चार महीने बीत जाने के बाद भी मुक्त हुए मुकदमे से जुडी भूमि का वितरण नहीं हुआ.

बिहार में वनाधिकार कानून भी लागू नहीं हो रहा है. वनभूमि के पट्टे के लिए वर्षों से सैकड़ों आवेदन धूल फ़ाँक रहे हैं.पिछले दिनों पटना उच्च न्यायालय के आदेश से वनभूमि के दावेदारों को राहत मिली है.अब उनके आवेदन का आखिरी तौर पर निष्पादन होने तक उन्हें बेदखल नहीं किया जा सकता. भूमि सुधार और वनाधिकार कानून को लागू करना हमारी दूसरी प्रमुख माँग है.

किसान अपने खून-पसीने से अन्न पैदा करते हैं.पर किसान को न तो फसल का वाजिब दाम मिलता है और ना ही बटाईदार किसानों को बर्बाद हुई फसल का मुआवजा.कर्ज माफ़ी तो एक राहत है.किसानों की समस्या का स्थायी हल तो खेती को लाभकारी बनाना है. गन्ना किसानों की हालत और भी ख़राब है. पैमाइश, पुर्जी वितरण,गन्ने के प्रभेद को लेकर बखेड़ा,घटतौली और और गन्ने के मूल्य का समय पर भुगतान नहीं होने से गन्ना किसान परेशान हैं.

18 फ़रवरी के जन जुटान की तीसरी प्रमुख मांग स्वामीनाथन आयोग की खेती-किसानी के विकास से सम्बंधित सिफारिशें अविलम्ब लागू कराते हुए खेती को लाभकारी बनाने और गन्ना किसानों को चीनी मीलों की मनमानी से मुक्त कराने की है.

हम सभी जानते हैं कि एक पिछड़े, गरीब और असंगठित समाज में कमजोर वर्गों के पक्ष में बने कानून यूँ ही लागू नहीं हो जाते. संघर्ष और संवाद के रास्ते पर ही चलकर मेहनतकश मजदूर, कारीगर, किसान, बेघर-विस्थापित और बटाईदार किसान अपना हक हासिल किये हैं और करेंगे.

इन्हीं सवालों को लेकर 18 फ़रवरी, 2019 को गांधी मैदान, पटना में भूमि अधिकार जन जुटान का फैसला लिया गया है. इस जन जुटान में कुछ साथी पश्चिम चम्पारण के भीतिहरवा आश्रम और पटना के मसौढ़ी से पदयात्रा और बांका से साईकिल चलाकर शामिल होंगे.

हमारा यह संघर्ष लोकतन्त्र को मात्र वोट का उत्सव या एक हद तक चुनावी खेल से आगे ले जाते हुए भारतीय संविधान में दर्ज गरिमा के साथ जीने के अधिकार और बिना किसी भेदभाव (लिंग,जाति या सम्प्रदाय) के जीने के नैसर्गिक अधिकार को जमीन पर उतारने के लिए प्रतिबद्ध है.