सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता के बीजेपी युवा मोर्चा की नेता प्रियंका शर्मा को जेल से मुक्त किया है. प्रियंका का अपराध था कि उसने बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के विरूपित चित्र को फेसबुक पर डाला था. उस चित्र में उसने प्रियंका चोपड़ा के विदेशी पोशाक पहने चित्र में ममता बनर्जी के चेहरे को जोड़ कर फेसबुक पर डाला. इस चित्र के नीचे लिखा था- ममता बनर्जी इन मैटगेला इवेंट. यह चित्र बहुत तेजी से वायरल हुआ और बाद में प्रियंका शर्मा ने इसे फेसबुक से हटा भी दिया.

निश्चित तौर पर इस चित्र को देख कर कई लोगों ने मजा लिया होगा, क्योंकि यह ममताबनर्जी के हमेशा के पोशाक और सादगी के विपरीत चित्र था. स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ता के शिकायत पर कलकत्ता पुलिस ने प्रियंका शर्मा को गिरफ्तार का 14 दिन के न्यायिक हिरासत में भेज दिया. उस पर दो धाराएं लगी. एक धारा 500, जो किसी को अपमानित करने पर लगती हैं. दूसरा 66ं ए जो आईटी धारा कहलाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार को आदेश दिया कि प्रियंका शर्मा को तुरंत आजाद किया जाये. कोर्ट का कहना था कि अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई बहस नहीं हो सकती है, क्योंकि यह नागरिकों को संविधान प्रदत्त अधिकार है. कोर्ट का यह भी कहना था कि प्रियंका शर्मा एक साधारण नागरिक नहीं, एक राजनीतिक दल की नेता हैं और चुनाव के समय इस तरह के विवाद का निपटारा तुरंत जरूरी था. इस आदेश के साथ कोर्ट ने प्रियंका को जेल से निकलने के बाद ममता बनर्जी से माफी मांगने की सलाह दी. लेकिन यह छूटने की शर्त नहीं थी.

इस केश की तथा इस गिरफ्तारी की वैधता का निर्णय गृष्म अवकाश के बाद करने का आश्वासन कोर्ट ने दिया. इस केश की सुनवाई कर रही इंदिरा बनर्जी की बेंच ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की आजादी का यह अभिप्राय नहीं है कि इसके अपयोग से किसी दूसरे व्यक्ति के अधिकार पर चोट पहुंचे.

यहां पर यह स्मरण करना जरूरी है कि जिस अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने बहस के बाहर बताया, उसी से संबंधित कानून है 66 ए जो लोगों को सोशल मीडिया में अपने विचार अभिव्यक्ति पर दंडित कर सकता है. इसी कानून के तहत सबसे पहले 2015 में महाराष्ट्र की दो लड़कियों को जेल भेजा गया था, क्योंकि उन दोनों ने बाला साहब ठाकरे की मृत्यु पर महाराष्ट्र बंद के विरुद्ध अपने फेसबुक पर लिखा था.

जब यह बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो उसने लड़कियों को तो मुक्त किया ही, साथ ही 66 ए कानून को भी समाप्त घोषित कर दिया. फैसले के अनुसार ऐसा कोई कानून नहीं हो सकता है जो आदमी के बोलने या लिखने की आजादी को ही समाप्त कर दे. फिर भी इस मृत कानून को हमारे देश की पुलिस ने पकड़ रखा है. इसको आधार बना कर झारखंड तथा अन्य राज्यों में कई लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा तक लग चुका है.

एक स्वयंसेवी संस्था पीयूसीएल की जनहित याचिका पर इसी वर्ष जनवरी माह में सुनवाई के वक्त सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे इस मृत कानून के आधार पर अभी तक लोग जेलों में बंद हैं और उन पर मुकदमें चल रहे हैं. याचिका कर्ता के वकील संजय पारिक के अनुसार 1915 से लेकर जनवरी 2019 तक देश भर में 22 से भी अधिक मुकदमें इस कानून के आधार पर चल रहे हैं और लोग जेलों में बंद हैं. कई उच्च न्यायालयों में इस तरह के मुकदमों क्वैशिंग के लिए पड़े हुए है जिनकी सुनवाई नहीं हो रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सरकार को इस कानून तथा उससे संबंधित मुकदमों के संबध में अपनी जिम्मेदारी को स्पष्ट करने को कहा है, साथ ही उन पुलिस कर्मियों पर कार्रवाई करने को कहा है जिन्होंने इस रद्द कानून के तहत नागरिकों पर कार्रवाई की.

प्रियंका शर्मा के इस प्रकरण से यह तो स्पष्ट हो गया कि सुप्रीम कोर्ट के नोटिश के बावजूद केंद्र सरकार ने धारा 66 ए तथा उससे संबंधित किसी मुकदमें के संबंध में कोई निर्णय अब तक नहीं लिया है. न राज्य सरकारों को कोई दिशा निर्देश ही दिया है. इसीलिए इस धारा के तहत प्रियंका शर्मा की गिरफ्तारी हो गई. तत्काल तो सुप्रीम कोर्ट को पहले इस रद्दा धारा पर गिरफ्तारी करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए थी. लेकिन फिलहाल कोर्ट ने जमानत पर प्रियंका को छोड़ा है. देखना है, ग्रीष्म अवकाश के बाद कोर्ट इस मामले में क्या करती है.