जम्मू और कश्मीर के प्रति केंद्र शासन के आज के बर्ताव को अन्याय मानती है, अस्वीकार करती है. कश्मीरियों के मानव अधिकार, लोगों की स्वायत्तता का अधिकार और जनतंत्र वापस बहाल कराने,पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कराने के लिए लोकतांत्रिक संघर्ष चलाते रहने का जसवा संकल्प व्यक्त करती है. कश्मीर की भूमि और जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी जाहिर करती है और

जम्मू और कश्मीर में नागरिक वातावरण बनाने के पक्ष में शेष भारत की जनता के सहयोग और समर्थन के लिए हम आह्वान करते हैं.

जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी की चिंता यह है कि राज्य को दो भागों में विभाजित कर, जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर, लद्दाख को सीधे केंद्र के हाथों में लेकर, जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित (विधानसभा सहित) राज्य के दर्जे में लाकर, कश्मीर की स्वायत्तता को समाप्त कर दिया गया है.

यह सब केंद्र की ताकत का दुरुपयोग करते हुए और सूबे की जनता की भलाई का झूठा तर्क देकर किया गया है. रोजगार के अवसर, तोहफों का अंबार, भला करने के इरादे के लिए अधिकारों को कम करने का कोई कदम उचित नहीं हो सकता,स्वीकार नहीं किया जा सकता.

आज सामान्य नागरिक प्रशासन की जगह सेना के नियंत्रण में जनता को लेकर और संविधान के साथ क्रूर मजाक कर जम्मू कश्मीर में एकतंत्री शासन लाद दिया गया है. इसके सारे संपर्क संवाद को समाप्त कर दिया गया है. कश्मीर घाटी के लोग अगस्त के पहले सप्ताह से कर्फ्यू में रह रहे हैं. उनका आपस में फोन संपर्क, नेट संपर्क समाप्त कर दिया गया है.

कश्मीर भारत का अभिन्न (इंटीग्रल) अंग है , इस प्रभावी मान्यता से यह इजाजत नहीं मिल जाती कि कश्मीर की मौलिक स्वायत्तता या विशिष्ट स्थिति को नष्ट कर दिया जाय. इतना ही नहीं, राज्य का उसका सामान्य दर्जा भी समाप्त कर दिया जाय. इसलिए यह समझना मुश्किल नहीं कि अगस्त में संसद के दोनों सत्रों और सरकार ने कश्मीर पर जो गैर जनतांत्रिक अतिक्रमण किया है, इसके घातक दुष्परिणाम अपरिहार्य हैं.

सरकार स्वायत्तता समाप्त कर कश्मीर को मुख्यधारा में लाने का तर्क दे रही है. अपने में मुकम्मल इतिहास और भूगोल वाले जन प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे पर, यानी दोयम दर्जे पर धकेल रही है. यह समरूपता या एकरूपता का नारा भारत की रंग - बिरंगी विविधता को चुनौती है. इस तरह की असमानता पर आधारित राष्ट्रीय एकता हमारी सनातन विविधता पर हमला है.

कश्मीर भारत का तो है ही, कश्मीरी पंडितो का है, कश्मीरी मुसलमानों का है, सिया और सुन्नी मुसलमानों — दोनों का है, बौद्धों का है. सीमा के पास ( एल ओ सी ) के कारगिल, खैबर,उरी का है, लद्दाख का भी है, जम्मू के लोगों का भी है. कश्मीर बारामूला, सोपोर पत्तन, गंदरबल, श्रीनगर सबका है. कश्मीर के अल्पसंख्यकों का भी उतना ही जनतांत्रिक अधिकार है जितना बहुसंख्यक मुसलमानों का है.