गणतंत्र दिवस के राजकीय उत्सव में ब्राजिल के राष्ट्राध्यक्ष जेयर बोलसोनारो को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया. वे दो दिन की राजकीय यात्रा में सपरिवार दिल्ली पधारे. यह हर वर्ष की परंपरा रही है, इस उत्सव में किसी भी प्रमुख व्यक्ति को मुख्य अतिथि के रूमें बुलाया जाता है. लेकिन इस बार बोलसोनारों को बुलाने पर भारत के कई हलकों में अप्रसंन्नता प्रकट हुई. लोगों ने उनका विरोध किया. विरोध का कारण यह था कि राष्ट्र के मुख्य अतिथि के रूप में बोलसोनारो को बुला कर सरकार ने हमारे संविधान व समतावादी भारतीयों का अपमान किया है. बोलसोनारो एक स्त्री विरोधी और निरंकुश शासक माना जाता है. लोगों का कहना है कि वह जातिवादी और फासीवादी विचारों का समर्थक है. उसने 2014 में ब्राजिल की एक महिला राजनीतिज्ञ, जो विरोधी पार्टी की सदस्य थी, के बारे में ब्राजील की लोकसभा में अमर्यादित बयान दिया था. उसने कहा कि ‘मारियो द रोजारियो का वे बलात्कार भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वह इसके लायक भी नहीं. वह बहुत ही बदसूरत है.’ अखिल भारतीय महिला सांस्कृतिक संगठन के चैथे अधिवेशन में महिलाओं ने पोस्टरों और बैनरों पर बोलसेनारों के इस वक्तव्य को दिखाया और अपना विरोध प्रकट किया. महिलाओं ने बहुत ही दृढ स्वर में कहा कि सरकार ने बोलसोनारों जैसे घटिया और स्त्रीविरोधी व्यक्ति को गणतंत्र दिवस का मुख्य अतिथि बना कर भारतीय महिलाओं का अपमान किया है.

केंद्र शासित बीजेपी सरकार ने बोलसोनारों को मुख्य अतिथि बनाया तो निश्चित रूप से उनकी अपनी सोच या विचारधारा बोलसोनारों के विचारों से मेल रखती होगी या बोलसोनारो का स्त्री विरोधी होना उनके लिए महत्व नहीं रखता. उनकी अपनी विचारधारा भी कमोबेस स्त्री की आजादी या उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व का विरोधी रही है. हिंदूवादी विचारधारा के मूल पुरुष वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘सिक्स ग्लोरियस हिपोक्स आॅफ इंडियन हिस्ट्री’ में लिखा है कि स्त्री के बलात्कार को एक राजनीतिक अस्त्र के रूप में उपयोग किया जा सकता है. महारज शिवाजी से उन्हें यह शिकायत थी कि कल्याण के मुस्लिम शासक पर विजय प्राप्त करने के बाद शिवाजी ने उनकी बहु को पूरे सम्मान के साथ लौटा दिया था. बीजेपी की मातृ संस्था आरएसएस के प्रमुख भागवत जी भी समय-समय पर स्त्री से संबंधित अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं. उनके विचार से विवाह के बाद पुरुष स्त्री को रोटी और सुरक्षा देता है तो, इसके बदले स्त्री को उसकी सेवा करनी है, उसके बच्चों की मां बनना है. यदि कोई स्त्री अपने कर्तव्यों को नहीं निभाती है तो पुरुष को अधिकार है कि वह ऐसी स्त्री को छोड़ दे. इस तरह का अधिकार वह स्त्री को नहीं देते.

ये सारी बाते वर्तमान सरकार की स्त्री विरोधी दृष्टिकोण को बताती हैं. इसे इत्तफाक ही कहा जा सकता है कि ठीक इसी समय दिल्ली के शाहीनबाग सहित देश के अन्य प्रमुख शहरों में मुस्लिम महिलाएं सीएस, एनआसी तथा एनआरपी का विरोध कर रही हैं. वे हजारों की संख्या में शांतिमय तरीके से धरना दे रही हैं और सरकार से मांग कर रही हैं कि वह इन कानूनों को वापस ले. वे भी इस देश की सहज नागरिक हैं और किसी कानून के तहत उन्हें अपनी नागरिकता को साबित करने की जरूरत नहीं. चालीस दिन से अधिक हो जाने के बाद भी सरकार इन आंदोलनकारी महिलाओं की ओर ध्यान नहीं दे रही हैं और न उनसे किसी तरह का संवाद ही हो रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह दिया कि मुसिलम पुरुष अपनी स्त्रियों बच्चों को सड़क चैराहे पर बिठा कर खुद रजाई में सो रहे हैं. यह है स्त्री आंदोलन के प्रति उनका दृष्टिकोण. वे यह भूल जाते हैं कि संविधान से मिले अपने अधिकारों की लड़ाई महिलाएं अपने बलबूते ही लड़ सकती हैं. किसी के उकसाने की उन्हें जरूरत नहीं.

इस आंदोलन का सबसे सुंदर पक्ष यही है कि उनके इस विरोध के समर्थन में विभिन्न विवि के छात्र सड़कों पर आ गये हैं. स्त्री पुरुष की समानता तथा आजादी में विश्वास करने वाले अन्य धर्मों के स्त्री-पुरुष भी उनका सथ दे रहे हैं. बुद्धिजीवी इनके बारे में बोल रहे हैं, लिख रहे हैं. केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, इन सारी बातों को पचा नहीं पा रही हैं. इसलिए उन्हें अपने इस स्त्री विरोधी विचारों को एक ओर रख कर उनकी बात सुननी चाहिए, क्योंकि अब बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे खोखले नारे की जरूरत नहीं हैं.