2015 के चुनाव में एक ‘साध्वी’ ने कहा था कि दिल्ली में या तो ‘रामजादों’ की सरकार बनेगी या ‘हरामजादों’ की. मगर ऐसी गाली खाकर भी दिल्ली वालों ने ‘हरामजादों’ की सरकार बना दी थी. इस बार भी भाजपा के एक उम्मीदवार ने कहा है कि आठ फरवरी का चुनाव ‘भारत बनाम पकिस्तान’ होगा. ‘गोली मारो सालों को’ का नारा लगातार लग रहा है.

देश की राजधानी दिल्ली आगामी आठ फरवरी को एक बड़ा फैसला करने जा रही है. उसी दिन विधानसभा चुनावों के लिए मतदान होना है. बड़ा फैसला इसलिए कि इस बार का चुनाव सामान्य नहीं है. दिल्ली के मतदाता सिर्फ यह फैसला नहीं करेंगे कि वहां सरकार किसकी बनेगी, कि केजरीवाल दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं. यह चुनाव संभवतः देश की भावी दशा दिशा भी तय करेगा. इसलिए कि इससे यह भी तय होगा कि क्या सचमुच ‘मोदी मैजिक’ जैसा कुछ बचा है? इसलिए भी कि खुद मोदी जी और उनकी टीम ने इसे देशभक्ति बनाम देशद्रोह से जोड़ दिया है.

कायदे से दिल्ली विधानसभा का चुनाव एक बड़ी नगरपालिका के चुनाव जैसा है. दिल्ली में विधानसभा तो है, लेकिन वह पूर्ण राज्य नहीं है. दिल्ली सरकार के पास अपनी पुलिस नहीं है. अनेक मामलों में उसके अधिकार सीमित हैं. फिर भी यह चुनाव इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है? इसलिए कि अपनी नाक के नीचे, यानी केंद्र में सत्ता पर काबिज होने के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली में एकविरोधी दल की सरकार और एक ‘अदना-से’ अरविंद केजरीवाल का मुख्यमंत्री रहना भाजपा के लिए किरकिरी जैसी बात रही है. हाल में अनेक राज्यों में मिली पराजय के बाद किसी कीमत पर दिल्ली जीतना भाजपा नेतृत्व के लिए बड़ा लक्ष्य बन गया है. क्योंकि दिल्ली की पराजय ‘महाबली’ के प्रताप और भाजपा के ‘अश्वमेघ यज्ञ’ के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है.

कुछ दिन पहले, बीते कोई एक दशक से दिल्ली में रह रहे रांची के पत्रकार मित्र (सुबोध पांचाल) रांची आये थे. कुछ घंटे की मुलाकात हुई. जाहिर है, दिल्ली की राजनीति और चुनाव पर भी चर्चा हुई. उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोगों का चरित्र और मिजाज देश के अन्य हिस्सों के लोगों से भिन्न है. दिल्ली वाले आमूमन जाति-धर्म के आधार पर मतदान. नहीं करते. यह भी कि वे देश, यानी केंद्र के लिए जिस दल या नेता को पसंद करते हैं, जरूरी नहीं कि विधानसभा चुनाव में भी उसी दल के पक्ष में वोट करें. पहले भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में दिल्ली वाले अलग अलग दलों को चुनते रहे हैं. सुबोध जी के मुताबिक इस बार भी वे केजरीवाल के पांच साल के कामकाज के आधार पर ही ‘आप’ के पक्ष में या उसके खिलाफ वोट देंगे. यह भी कि हर लिहाज से केजरीवाल सरकार ने अच्छा काम किया है; और बहुतेरे भाजपा समर्थक भी इसे स्वीकार करते हैं. लेकिन उस बातचीत के बाद दिल्ली में बहुत कुछ ऐसा हुआ है कि उनके आकलन - कि दिल्ली के लोग काम के आधार पर वोट करते हैं और करेंगे- पर भरोसा करना कठिन लगने लगा है.

यह तो दिख ही रहा है कि भाजपा वहां अपनी पूरी ताकत झोंक रही है. लेकिन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित पूरी केंद्र सरकार, सैकड़ों सांसद और भाजपा शासित राज्यों के पूर्व व् वर्तमान मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की भीड़ जुटा देना भी शायद उन्हें नाकाफी लग रहा है. केजरीवाल पर महज बडबोला होने, झूठे वायदे करने और वादा न निभाने के आरोप लगाने; और अपनी ओर से दिल्ली को स्वर्ग बना देने के वायदे.से भी काम चलता नहीं दिख रहा है. यहां तक कि संसदीय चुनाव में विपक्षी दलों से यह पूछनेवाली भाजपा कि आपका नेता, यानी प्रधानमंत्री का चेहरा कौन है, दिल्ली में अपने भावी मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं कर सकी है. हालांकि केजरीवाल का यह कहना सही नहीं कि किसी राज्य का वोटर सीधे मुख्यमंत्री को चुनता है. वैसे यही तो सहूलियत के हिसाब से भाजपा भी कहती रही है. यह भी पहली बार है कि एक सत्तारूढ दल मतदाताओं से कह रहा है कि यदि हमारी सरकार ने काम किया है, तभी वोट दें, अन्यथा नहीं.

शायद इसीलिए भाजपा नेता एक बार फिर पाकिस्तान, मुसलमान, आतंकवाद, गद्दार आदि जपने लगे हैं. इस हद तक कि अमूमन भाजपा के प्रति नरमी बरतने वाले चुनाव आयोग को भी भाजपा के एक केन्द्रीय मंत्री और एक सांसद पर कुछ दिन चुनाव प्रचार से अलग रहने का फरमान जारी करना पड़ा है.

2015 के चुनाव में एक ‘साध्वी’ ने कहा था कि दिल्ली में या तो ‘रामजादों’ की सरकार बनेगी या ‘हरामजादों’ की. मगर ऐसी गाली खाकर भी दिल्ली वालों ने ‘हरामजादों’ की सरकार बना दी थी. इस बार भी भाजपा के एक उम्मीदवार ने कहा है कि आठ फरवरी का चुनाव ‘भारत बनाम पकिस्तान’ होगा. ‘गोली मारो सालों को’ का नारा लगातार लग रहा है. ‘गद्दार’ किन लोगों को कहा जा रहा है, यह बताने की जरूरत नहीं है. और इस उकसावे का नतीजा दिखने भी लगा है. बीते कुछ दिनों के अन्दर दो बार मुस्लिम बहुल शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर गोली चलने की घटना हो भी चुकी है. मतदान के पहले तक दिल्ली में कोई अनहोनी हो जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं.

‘इत्तेफाक’ से अभी दिल्ली सहित देश के अनेक हिस्सों में सीएए/एनआरसी के खिलाफ आंदोलन हो रहा है, लोग सड़कों कर निकल गये हैं. आम धारणा है, जो सही भी है, कि ये कानून मूलतः मुसलमानों के खिलाफ हैं, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के दूरगामी लक्ष्य के तहत लाये गये हैं. इसलिए मुसलिम आशंकित हैं, आंदोलित भी. इसी क्रम में दिल्ली का शाहीनबाग मुसलिम महिलाओं के बेमियादी शांतिपूर्ण सत्याग्रह का एक बड़ा केंद्र बन गया है. पूरे विश्व मीडिया में इसकी चर्चा हो रही है. भाजपा के नेतागण शाहीनबाग को ‘मिनी पाकिस्तान’ और देशद्रोहियों का अड्डा बता रहे हैं. कोई दिल्ली में सरकार बनने के एक घंटे के अन्दर शाहीनबाग को खाली करा देने का दावा कर रहा है, कोई दिल्ली की तमाम ‘अवैध’ मसजिदों को ध्वस्त करने की घोषणा कर रहा है. खुद गृहमंत्री, जिनके नियंत्रण में दिल्ली पुलिस है और ‘शाहीनबाग’ में सड़क जाम को ठीक करना जिनका दायित्व है, भी वोटरों से कह रहे हैं कि ‘बटन इतने गुस्से में दबाना कि करेंट शाहीनबाग को लगे.’ इस तरह दिल्ली चुनाव को हिंदू बनाम मुसलिम बनाने की हरचंद कोशिश हो रही है. दिल्ली और दिल्लीवालों के लिए यह कठिन परीक्षा का समय है.

देखना है कि दिल्ली इस एसिड टेस्ट में पास करती है या नहीं.