सिर्फ लूट खसोट के लिए मनोरम पहाड़ी को काट देना, मिटा देना या पूरे पहाड़ को किसी की व्यक्तिगत आमदनी के लिए बेच देने का काम भी कोई लोक कल्याणकारी सरकार करेगी, इस पर यकीन करना मुश्किल है. लेकिन यह काम झारखंड में पूर्ववर्ती एनडीए सरकार ने किया. उदाहरण है मुख्यमंत्री आवास से कुछ दूरी पर अवस्थित हथियागोंदा, कांके डैम, का पहाड़, जिसे मिटा कर कंकरीट का जंगल दिखाई दे रहा.

पहाड़ आदिवासी समाज-संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं. आदिवासी समाज पहाड़ों की पूजा करता है. क्योंकि पहाड़ों से ही नदी, झरने, बरसात का पानी जीवन सलिला बन कर उतरता है. लेकिन आधुनिक विकास दृष्टि की नजर में वे पत्थर-कंकरीट के ढ़ेर मात्र हैं और बेरहमी से उसका दोहन होता है. पहाड़ कट रहे हैं. तोड़ कर छोटे-छोटे चिप्स में बदल रहे हैं. सीमेंट के साथ मिल कर सड़कों पर बिछ रहे हैं. कंकरीट के जंगलों में तब्दील हो रहे हैं. आप आधुनिक जीवन शैली में पहाड़ों को बचा भी नहीं सकते. चुटुपालू घाटी खत्म हो गया. राजमहल की पहाड़ी श्रृंखला मिटने के कगार पर है.

लेकिन सिर्फ और सिर्फ लूट खसोट के लिए मनोरम पहाड़ी को काट देना, मिटा देना या पूरे पहाड़ को किसी की व्यक्तिगत आमदनी के लिए बेच देने का काम भी कोई लोक कल्याणकारी सरकार करेगी, इस पर यकीन करना मुश्किल है. यह काम झारखंड में पूर्ववर्ती एनडीए सरकार ने किया. महज लूट खसोट के लिए योजनाएं बनी. एक मनोरम पहाड़ का कुछ हिस्सा बिक गया, यानि लीज पर किसी को दे दिया गया, और पहाड़ के एक अन्य हिस्से को काट कर वहां यह कंकरीट का जंगल खड़ा किया गया. किसलिए, इसका माकूल जवाब किसी के पास नहीं. नीचे की तस्वीर में वही कंकरीट का जंगल आप देख रहे हैं.

हम जिक्र कर रहे हैं रांची शहर के राॅक गार्डेन और उससे उतरते पहाड़ी की. महज कुछ वर्ष पहले वह राॅक गार्डेन एक सार्वजनिक संपत्ति थी. कांके डैम का ही एक हिस्सा था. वहीं पर है सरना स्थल. डैम बना तो एक पतला रास्ता उसके बगल से गुजर कर सीएमपीडीआई के समक्ष निकल जाता था. और अभी जिसे राॅक गार्डेन कहते हैं, उस पहाड़ी तक हम नीचे की पहाड़ियों पर चढ़ कर पहुंच जाते थे. उपर आस पास के लोगों ने ही कुछ पेड़ पौधे लगाये थे. नगाड़ा बजाते एक विशाल आदिवासी युवक की मूर्ति.

लेकिन पूर्ववर्ती सरकार ने उस पहाड़ी को धनवाद के किसी सिंह बंधु को लीज पर दे दिया. वहां अब एक विशाल भवन है. विवाह, सम्मेलन आदि के लिए किराये पर दिया जाता है. एक दिन का किराया ही लाख रूपये या उससे भी अधिक है. राॅक गार्डेन पर वृक्ष आदि पहले से थे. वहां से नीचे डैम का दृश्य मनोरम लगता है. कुछ नये फूल पत्ते भी लगाये गये हैं. लेकिन यह सब देखने के लिए अब टिकट लगता है. यदि यह सब आमदनी राज्य के कोष में जाता तो शायद बहुत आपत्ति जनक भी नहीं, लेकिन यह सब अब एक निजी आमदनी का जरिया है. एक सार्वजनिक पहाड़ अब किसी व्यक्ति विशेष की मिल्कियत है.

और उसके ठीक नीचे की पहाड़ी को पूर्ववर्ती सरकार ने सिर्फ लूट-पाट के लिए एक निरर्थक योजना बना कर नष्ट कर दिया. उस पहाड़ी का इस्तेमाल आस पास की बस्तियों के लोग करते थे. बच्चे खेलते थे. ठंढ के दिनों में वहां खुली धूप का आनंद लेते थे. लेकिन सरकार ने अरबन हाट बनाने के नाम पर सब कुछ हड़प लिया. विद्युत विभाग की एक दो मंजिली इमारत को ढ़ाह दिया गया. पहाड़ी को बड़े-बड़े डोजरों और अर्थ मूवरों की मदद से तोड़ कर जमीनदोज कर दिया गया. शुरुआत में कहा गया कि वहां अरबन हाट बनेगा, लेकिन फिर सबकुछ अधूरा छोड़ कर ठेकेदार भाग गये. अंदाजा यही है कि यह उन योजनाओं में से एक है जिसे सिर्फ सरकारी खजाने की लूट के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने बनाया था.

इस पहाड़ी का इस क्षेत्र के आदिवासियों के लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी था. पूरे इलाके को हथियागोंदा के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस पहाड़ी पर ही एक हाथी के आकार का एक पत्थर आज भी मौजूद है जिसकी आदिवासी समाज पूजा अर्चना करता था. उस पूरी पहाड़ी को तो छीन लिया गया, लेकिन उस हाथी के आकार वाले पत्थर पर एक छतरी सरकार ने बना दी. कुछ लोगों का कहना है कि सरकार की योजना इस पहाड़ी को भी किसी निजी क्षेत्र को सौंप देने की तैयारी थी. तब यह पर्यटकों के आकर्षण का केद्र बनाया जाता.

क्या नई सरकार इस पूरे मामले की जांच पड़ताल करेगी?