अंग्रेज भारत को आजादी के साथ देशद्रोह के कानून को सौगात के रूप में दे गये. 1870 में यह कानून बना था. महात्मा गांधी तथा बाल गंगाधर तिलक को इस कानून के तहत देशद्रोह के अपराध में जेल भी भेजा गया था. आजादी के बाद सरकार ने भारतीय दंड संहिता में इसे धारा 124 ए के रूप में शामिल किया. इसके अनुसार सरकार की नीतियों के विरुद्ध बोलना, लिखना या विरोध का समर्थन करना देशद्रोह है. राष्ट्रीय चिन्ह का अपमान करना, संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास करना भी देशद्रोह है. अपराध साबित होने पर अधिकतम सजा आजीवन कारावास और न्यूनतम सजा तीन वर्ष की है.

आजाद भारत में भी कई लोगों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो चुके हैं. 2010 में प्राख्यात लेखिका अरूंधति राय के उपर द्रेशद्रोह का मामला दर्ज हुआ. उनका अपराध था कि वे हूरियत नेता सैयद अलि गिलानी के साथ एक सम्मेलन में कश्मीर को आजाद कराने की मांग की थी. पेशे से डाक्टर विनायक सेन, जो छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच काम करते थे, नक्सल समर्थक होने के आरोप में उन पर भी देशद्रोह का मुकदमा चला. 2012 में कार्टूनिष्ट असीम त्रिवेदी पर भी यह धारा लगी, क्योंकि उन पर कार्टूनों के द्वारा संविधान का मजाक उड़ाने का आरोप लगाया गया था. 2014 में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता पर देशद्रोह का मुकदमा चला था, क्योंकि उसने एक इंटरव्यू में कह दिया था कि प्रारंभ में हैदराबाद तथा जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं थे. भीमा कोरेगांव से जुड़े पांच बुद्धिजीवियों को देशद्रोह का अभियुक्त बनाया गया है. इन सब लोगों के साथ कई ऐसे आम लोग भी हैं जिन पर यह धारा लगी है. जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया सहित कई अन्य छात्रों पर राष्ट्र विरोधी नारे लगाने के आरोप में देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है. झारखंड के खूंटी जिला के हजारों ग्रामीणों पर पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े होने के नाम पर देशद्रोह का मुकदमा हुआ. उस आंदोलन का समर्थन सोशल मीडिया पर करने के आरोप में झारखंड के बीस बुद्धिजीवियों पर भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया. इस कड़ी में सबसे हास्यस्पद मामला बैंगलुरु की अमूल्या का है जिस पर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के नाम पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया.

अमूल्या के पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने से उस पर देशद्रोह का आरोप लगाना देशद्रोह कानून का दुरुपयोग है. ऐसा कहना है सुप्रीम कोर्ट के वरीय जज रह चुके सुदर्शन रेड्डी का. उनके अनुसार अमूल्या के विरुद्ध भादवि की कोई भी धारा नहीं लग सकती है. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि अमेरिका जिंदाबाद, डोनाल्ड ट्रंप जिंदाबाद कहने से देशद्रोह का मामला नहीं बनता है तो पाकिस्तान जिंदाबाद कहने से कैसे देशद्रोह हो जायेगा, क्योंकि भारत ने अभी तक पाकिस्तान को शत्रुदेश घोषित नहीं किया है, और न कूटनीतिक संबंध ही खत्म किये हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने 2017 में ही देशद्रोह के बढ़ते मुकदमों से चिंतित हो कर कहा था कि देशद्रोह के कानून का गलत प्रयोग हो रहा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले से ही देशद्रोह के कई मामलों को खारिज करते हुए कहा है कि जब तक किसी व्यक्ति के किसी भी काम से लोगों में अशांति न फैले, कानून व्यवस्था न बिगड़े या संविधान का उल्लंघन न हो, वह देशद्रोह नहीं होगा. देशद्रोह का अर्थ राष्ट्र का अहित करना होता है, न कि किसी राजनीतिक दल या किसी राजनेता का. इसके लिए उन्होंने एक उदाहरण भी दिया था कि 1995 में पंजाब के दो युवकों ने ‘खलिस्तान जिंदाबाद, राज करेगा खलिस्तान’ का नारा लगाया था. लेकिन कोर्ट ने देखा कि इसकी कोई प्रतिक्रिया लोगों में नहीं हुई, न कानून व्यवस्था ही बिगड़ी, इसलिए इसे देशद्रोह का मामला नहीं माना गया.

इधर इलेक्ट्रोनिक माध्यम, जैसे फेसबुक पर लिखने के कारण देशद्रोह के जो मामले दर्ज हुए, उसको तो सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया ही, साथी आईटी की धारा 64 ए को भी खारिज कर दिया. कोर्ट का यह भी कहना था कि देशद्रोह का कानून ही अपने आप में विवादास्पद है, क्योंकि यह संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार जैसे, बोलने का अधिकार, अभिव्यक्ति के अधिकार को सीमित कर देता है.

यदि सरकार को यह लगता है कि किसी के कुछ बोलने मात्र से या नारा लगाने मात्र से देश की कानून व्यवस्था बिगड़ जायेगी, तो उसने अपने उन नेताओं पर देशद्रोह का आरोप क्यों नहीं लगाया, उन्हें जेल क्यों नहीं भेजा जो दिल्ली के चुनाव प्रचार में मंच से नारे लगाते हैं कि ‘देश के गद्दारों को गोली मारो…’, ‘आठ फरवरी को हिंदुस्तान पाकिस्तान का मैच होगा’, ‘शाहीनबाग के लोग हमारे घरों में घुस कर बलात्कार करेंगे’. इन नारों का ही परिणाम था कि लड़के पिस्तौल लेकर जामिया के मार्च पर तथा शाहीनबाग के शांतिपूर्ण धरने में गोली चलाई जिसमें जामिया का एक छात्र घायल भी हो गया. 24 फरवरी से 26 फरवरी तक उत्तर पूर्वी दिल्ली के सड़कों पर बंदूक, तलवार, कटार , पत्थर लेकर दंगाईयों ने जो आतंक मचाया और लोगों के घरों-वाहनों को, दुकानों को जला कर जो क्षति पहुंचाई, उसके जिम्मेदार भी वे ही नेता हैं जिन्होंने अपने भड़काउ भाषणों से लोगों में सांप्रदायिकता की जहर फैलाई है. दंगों में लगभग 300 लोग घायल हुए, 42 लोग मर गये, इस कानूनी अव्यवस्था का जिम्मेदार कौन हैं? वे देशद्रोही नहीं हैं क्या? उन्हें सजा क्यों नहीं मिल रही है?