मद्रास के शिवगंगा राज की रानी वेलु नाचियार अंग्रेजों से लड़ते हुए पति को खोकर डिंडीगल में टीपू सुल्तान के दरबार में पहुंची. टीपू सुल्तान को राखी बांध कर शिवगंगा की हार की कहानी बतायी. टीपू सुल्तान ने वेलु को आश्वासन दिया कि शिवगंगा को अंग्रेजों से छुड़ा कर वे अपनी बहन वेलु को भेंट करेंगे. सलाहकारों के लाख मना करने के बावजूद भी टीपू सुल्तान अपनी सेना के साथ शिवगंगा जा पहुंचा और अंग्रेजों को मार भगाया.

सद्भावना, सहिष्णुता, सौहार्द, भाईचारा, आदि शब्द शब्दकोश के अलंकार नहीं हैं. उनका बहुत बड़ा महत्व प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होता है जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है. आज के संदर्भ में तो यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है कि धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर लोगों को विभाजित कर उनमें जहर भरने का प्रयास पूरा तंत्र कर रहा है. इन शब्दों का प्रयोग मात्र न हो, इनका व्यावहारिक उपयोग हो, यह जनता के साथ-साथ शासकों को भी समझना चाहिए. इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि कैसे इस सद्भावना को अपना कर शासक महान बने हैं.

मुगलों से हार कर दर-दर भटकते राणा प्रताप को स्वामी भक्त भामाशाह ने आर्थिक सहायता दी, तो राणा प्रताप फिर से एकबार विजय यात्रा के लिए निकल पड़े. अस्वस्थता के चलते वे खुद युद्ध में न जाकर अपने पुत्र अमर सिंह को सेनापति बना कर युद्धभूमि में भेजा. मुगलों का नेतृत्व बैरम खां के पुत्र सुप्रसिद्ध कवि अब्दुल रहीम खानखाना कर रहे थे. युद्ध में मुगलों को हार कर पीछे हटना पड़ा. मुगल सेना का हरम युद्ध भूमि के समीप ही डेरों में था. उसे राजपूती सेना ने घेर लिया. खबर मिलते ही राणा प्रताप अस्वस्थ अवस्था में ही युद्धभूमि की ओर चल दिये. राजपूती सेना के सेनापति अपने पुत्र अमर सिंह के इस काम से वे क्रोधित हुए. अपने पुत्र को उन्होंने मर जाने का श्राप दिया. वे खुद खानखाना की सबसे बड़ी बेगम के सामने पुत्र बन कर उपस्थित हुए, उनसे माफी मांगी, अपनी सेना की करनी पर शर्मिंदगी व्यक्त की. सारे बेगमों को अपने यहां ले जाकर स्वागत सतकार किया और बाद में उन्हें पालकियों में बिठा कर अपने गंतव्य की ओर बिदा किया. अकबर के सामने उपस्थित होकर बड़ी बेगम ने राणा प्रताप के सौहार्द का विवरण दिया तो अकबर ने भी अपने को धन्य माना कि उनको राणा प्रताप जैसे उंचे दर्जे का शत्रु मिला.

मुगलों से सतत युद्ध रत रहे शिवाजी ने उस समय अपनी सद्भावना का परिचय दिया जब उनके सेनापति माधव भमलेकर ने कुरान शरीफ को अपने हाथों में लेकर उसे जला कर मुगलों से अपना प्रतिशोध लेना चाहा. शिवाजी ने तुरंत उस पवित्र ग्रंथ को अपने हाथों में ले लिया. उसे चूम कर अपना आदर प्रकट किया और बाद में एक ईमाम को उसे सौंप दिया. मद्रास के शिवगंगा राज की रानी वेलु नाचियार अंग्रेजों से लड़ते हुए पति को खोकर डिंडीगल में टीपू सुल्तान के दरबार में पहुंची. टीपू सुल्तान को राखी बांध कर शिवगंगा की हार की कहानी बतायी. टीपू सुल्तान ने वेलु को आश्वासन दिया कि शिवगंगा को अंग्रेजों से छुड़ा कर वे अपनी बहन वेलु को भेंट करेंगे. सलाहकारों के लाख मना करने के बावजूद भी टीपू सुल्तान अपनी सेना के साथ शिवगंगा जा पहुंचा और अंग्रेजों को मार भगाया. वह चाहता था कि शिवगंगा की गद्दी पर उसकी बहन वेलु बैठे, लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी क्योंकि इसके पहले ही वेलु ने अपने पति के समाधि पर प्राण त्याग दिये. टीपू को इसका अफसोस जीवन भर रहा.

ये सारे उदाहरण मनुष्य की उदारता को बताते हैं जो उसकी सत्ता, अधिकार, स्वार्थ से उपर की चीज होती है. जो उसे संकुचित धार्मिक भावना से उपर उठ कर संस्कृति को विरासत के रूप में अपनाने को प्रेरित करती है.