महाजनी शोषण के खिलाफ तीव्र आंदोलन चलाने वाले शिबू सोरेन ने कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया. बावजूद इसके उन पर तरह- तरह के अजीबोगरीब आरोप लगा कर जेल भेजने की साजिश उनके राजनीतिक दुश्मन करते रहे हैं. पहली बार तो एमरजंसी में उन्होंने खुद आत्म समर्पण किया था, लेकिन अपने सचिव शशिनाथ झा के हत्या के आरोप में उन्हें बेवजह महीनों जेल में रहना पड़ा. बाद में उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोप मुक्त कर जेल से रिहा किया.

इसी तरह 2007 में ही उन्हें चिरुडीह कांड में लपेटने की कोशिश हुई. यह सही है कि महाजनी शोषण के खिलाफ संघर्ष के दौरान कुछ स्थानों पर टकराव भी हुए. दोनों पक्षों से या स्थिति को संभालने में पुलिंस फायरिंग के दौरान लोग मारे गये. चिरुडीह कांड में भी कई लोग मारे गये थे. लेकिन उसके लिए शिबू सोरेन कितने जिम्मेदार थे? आईये चिरुडीह कांड के मुख्य गवाह और पुलिस के बयान के आईने में उसे हम देखें. यह ब्योरा टुंडी वाली मेरी किताब में दर्ज है. साथ ही ‘ झारखंड के आदिवासियों का संक्षिप्त इतिहास’ में भी.

चिरुडीह कांड महाजनी शोषण के खिलाफ चल रहे आंदोलन के दौरान की ही एक प्रमुख घटना है चिरुडीह कांड. इस संघर्ष में कई आदिवासी मारे गये थे और लगभग एक दर्जन अल्पसंख्यक समुदाय के लोग, जो महाजनों के साथ थे. झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सन् 75 में घटित इस मामले को दुमका संसदीय उपचुनाव में चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की हार तथा मुख्यमंत्री पद गंवाने के बाद उठाया और उसे सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश की. उन्होंने उस घटना में घायल लखविंदर सोरेन के बयान को डाइंग डिकलरेशन कह कर प्रचारित किया और शिबू सोरेन के खिलाफ चल रहे मृतप्राय मुकदमें को फिर से जीवित कराया, हालांकि, लखविंदर सोरेन के जिस बयान को उन्होंने डाइंग डिक्लरेशन कहा, वह लखविंदर सोरेन का डाइंग डिक्लरेशन नहीं था. लखविंदर सोरेन की मौत उस घटना विशेष के वर्षों बाद हुई. यह घटना टुंडी प्रखंड से सटे जामताड़ा जिले के चिरुडीह गांव में 23 जनवरी 1975 को घटित हुई थी. चूंकि मामला अभी भी अदालत में है और राजनीतिक रंग ले चुका है, इसलिये हम यहां सिर्फ लखविंदर सोरेन के डाइंग डिक्लरेशन कह कर प्रचारित बयान तथा वहां घटना के दिन के मैजिस्ट्रेट आन डियुटी आईसी मिश्रा और वहां प्रतिनियुक्त पुलिस बल के प्रभारी जेपी सिंह के बयान को रख रहे हैं जिससे उस दिन क्या हुआ था, इसकी झलक मिल सके.

लखविंदर का बयानः 23 जनवरी 1975 को चिरुडीह हादसे में घायल होने के बाद लखबिंदर सोरेन को अस्पताल में भर्ती किया गया था. उसका बयान न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष कलमबंद हुआ. उस बयान के अनुसार घटना के दिन वह शिबू सोरेन का भाषण सुनने बांकुडीह गया था. जिस वक्त सभा चल रही थी, उसी वक्त तीन बजे के करीब तरणी गांव से कुछ लोग भागते हुये आये और हल्ला किया कि मुसलमानों ने वहां आग लगा दी है. सभा स्थल से लोग भागते हुये तरणी गये. उस वक्त तक हमलावर वहां से भाग चुके थे. उसके बाद चिरुडीह गांव के करीब के मैदान में शिबू सोरेन के आदमी जमा हो गये. लखविंदर सोरेन के बयान में यह भी कहा गया कि शिबू सोरेन अपने भाषण में बोल रहे थे कि संताल अपने अधिकार के लिये लड़ रहा है तो मुसलमानों को क्या विरोध है? वे संतालों के घर में आग क्यों लगा रहे हैं? फिर वहां डुगडुगी बजने लगी. इसी बीच मुसलमानों की ओर से दो आदमी बंदूक से गोली चलाने लगे. वही गोली उसे लगी और वह बेहोश हो गया.

मैजिस्ट्रेट आन डियुटी तथा पुलिस बल के प्रभारी का संयुक्त बयानः मैजिस्ट्रेट आॅन डियुडी आईसी मिश्रा और पुलिस बल के प्रभारी जेपी सिंह के संयुक्त लिखित रिपोर्ट के आधार पर ही इस मामले का एफआइआर दर्ज हुआ था. उस बयान के मुताबिक जब दोनों घटना के दिन चिरुडीह की तरफ बढ़े तो पाया कि गांव के लोग इधर-उधर भाग रहे थे. उन्होंने उनसे पूछा तो पता चला कि लोग चिरुडीह गांव में एकत्र हैं. चिरुडीह गांव में पहुंचने पर हमने पाया कि बांसपहाड़ी और रजैया के मिलनस्थल के दोनों ओर बड़ी भारी भीड़ जमा है. वहां से गुजरती नदी के एक किनारे पर गैर आदिवासी घातक हथियारों, जिसमें अग्नेयास्त्र भी थे, के साथ जमा थे, दूसरी तरफ आदिवासियों का समूह था जो तीर धनुष और अन्य परंपरागत हथियारों से लैश थे. गैर आदिवासियों की तरफ से फायरिंग हुई जिसके प्रतिउत्तर में आदिवासी तीर चला रहे थे. हमने हस्तक्षेप किया और दोनों पक्षों को समझाया-बुझाया और कठोर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी के बाद दोनों पक्ष के लोग वापस जाने लगे. आदिवासी लोग गंगूडीह और गैर आदिवासी चिरुडीह की तरफ गये और स्थिति नियंत्रण में आ गया था.

लेकिन इसी बीच तरणी गांव की तरफ से कुछ आदिवासी दौड़ते हुये आये और चिल्ला कर कहा कि वहां तरणी वीलेज के संथाल टोला में गैर आदिवासी लोग लूट पाट कर रहे हैं और आग लगा रहे हैं. दोनों अधिकारियों के अनुसार उन्होंने संताल टोला में धुआं उठते हुये देखा. गांव में प्रवेश करने पर उन्होंने देखा कि सत्या टुडू, सालखन टुडू, रावण टुडू के गुहाल के ढेर में आग लगी हुई है. जब वे लोग आग को शांत करने की काशिश कर रहे थे तो उन्होंने चिरुडीह की तरफ से गोली चलने की आवाज सुनी. इसके बाद दोनो अधिकारी तरणी गांव से बाहर निकल आये और संथालों को चिरुडीह के विभिन्न टोलों की तरफ बढते देखा और उन्होंने चिरुडीह के भी विभिन्न टोलों से धुओं का गुबार उठते हुये देखा.

अधिकारियों के अनुसार ‘‘ हमने संतालों को चिरुडीह और रसियाबीटा के बीच के मैदान में रोका. भीड़ रसियाबीटा पर हमला करने पर अमादा थी. हमने उन्हें तितर-बितर हो जाने का आदेश दिया. लेकिन वे वहीं जमे रहे. वे नारा लगा रहे थे ‘दिकुओ को खत्म करो.’ हमारे पास फायरिंग के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इन परिस्थितियों में पुलिस को 11 चक्र गोली दस मिनट के फर्क पर चलानी पड़ी. यानि, इस कांड में मारे गये अधिकत लोग स्थिति को नियंत्रण में करने के प्रयास के दौरान पुलिस फायरिंग में मारे गये. लेकिन भाजपा के लोगों ने इस कांड के आधार पर शिबू सोरेन को मुस्लिम विरोधी करार देने का षडयंत्र किया. और इस अभियान में बाबूलाल का साथ दिया सूरज मंडल ने जो झामुमो से रिश्ता टूट जाने की वजह से खार खाये बैठे थे.

अगले अंक में हम सूरज मंडल और झामुमो के बीच के रिश्तों की पड़ताल करेंगे.