हमारे देश में हर दिन कितनी ही आत्महत्यायें होती हैं. पुलिस जांच के बाद बिना किसी नतीजे के ही उनको भुला दिया जाता है. इनके प्रति जन साधारण की कोई संवेदना भी नहीं दिखती. फिर सुशांत सिंह की आत्महत्या को मीडिया में या जांच के नाम पर इतने दिनों तक क्यों जिंदा रखा जा रहा है, यह एक प्रश्न बनता है.

तीन महीने पहले जब सुशांत सिंह राजपूत ने फांसी लगा कर प्राण त्याग दिये, तो इस खबर से उनके प्रशंसकों को दुख हुआ. क्योंकि एक युवा कलाकार सफलता की उंचाईयों को छूता हुआ अचानक कोरोना की बंदी के समय फांसी लगा कर मर जाता है. लोग तरह-तरह की अटकलें लगाते रहे. सबसे पहले तो यह बात उठी की बंदी के समय काम के अभाव में निराशा की स्थिति में अकेलेपन से घबरा कर उसने प्राण त्याग दिये.

दूसरी अटकल बाॅलीउड में चल रहे नेपोटिज्म या भाई भतीजेवाद को लेकर भी चली. कई कलाकारों ने बाॅलीवुड में स्थापित घरानों पर भाई भतीजेवाद का आरोप लगाया और मुंबई के बाहर के कलाकारों के साथ होने वाली भेदभाव को सुशांत सिंह राजपूत की मौत का कारण माना. कंगना ने उस समय सुशांत का पक्ष लेते हुए अपने को भी इस भाई भतीजेवाद का शिकार बताया.

यहां तक तो स्थितियां सामान्य थीं, महाराष्ट्र पुलिस ने अपने स्तर से इसकी जांच भी शुरु कर दी. मृत शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भी भेज दिया. लेकिन यह सामान्य स्थिति उस समय असामान्य बन गयी जब घटना के दस दिन बाद पटना में रहने वाले सुशांत के पिता ने पटना में ही एक एफआईआर दर्ज कर सुशांत की आत्महत्या को हत्या होने की शंका जाहिर की और सुशांत के बैंक से 15 करोड़ रुपये गायब करने की साजिश का दोषारोपण रिया चक्रवर्ती पर लगाया.

आनन फानन में बिहार पुलिस हरकत में आ गयी. जांच के लिए मुंबई पहुंच गयी. बिहार पुलिस की यह हरकत मुंबई पुलिस को नागवार लगी. क्वारेंटाईन के नाम पर बिहार पुलिस के आला अधिकारी को बंद कर दिया. बिहार पुलिस इस केस में अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट चली गयी. सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया. बिहार पुलिस ने इसे अपना बिजय माना और रिया चक्रवर्ती को उसकी ‘औकात’ बताने की बात कही मानों उनकी लड़ाई रिया चक्रवर्ती से है, न कि सुशांत केस की गुत्थी सुलझानी है.

अब सोचने की बात यह है कि सुशांत के पिता को क्यों लगा कि मुंबई पुलिस ठीक से जांच नहीं कर रही है? ऐसा भी सोचा जा सकता है कि बेटे की मृत्यु के बाद पिता को अपने बेटे की संपत्ति की लालसा हुई हो, या उसे वे अपना अधिकार समझते हों? रिया चक्रवर्ती के साथ अपने बेटे के संबंधों से असंतुष्ट पिता को एक मौका मिल गया हो रिया से बदला लेने का. झूठे आरोप लगा कर उनको अपराधी बनाया, यदि बेटा मानसिक रूप से बीमार था तो वे उसकी मदद के लिए क्यों नहीं वहां पहुंचे? दस दिन के बाद सोची समझी योजना के साथ वे पुलिस के पास पहुंचे.

बिहार सरकार ने आने वाले चुनावों को ध्यान में रख कर बिहार के कलाकार के प्रति जनता की सहानुभूति को अपने वोटों में तब्दील करने के लिए सुशांत के पिता का समर्थन किया और सीबीआई जांच की मांग की. अब केंद्र सरकार बिहार सरकार की मदद में जुट गयी. क्योंकि जेडीयू एनडीए की घटक पार्टी है. केंद्र सरकार महाराष्ट्र में अपने हार से बौखलायी हुई है ही, उसे एक मौका मिल गया वहां के गैर बीजेपी सरकार को परेशान करने का.

उसने अपनी तीन एजंसियों को रिया के पीछे लगा दिया. पहले इडी हर दिन दस-दस घंटे के हिसाब से पांच दिन पूछ कर भी 15 करोड़ के गबन को ढूढ नहीं पायी. तब तक सीबीआई कूद पड़ी. सीबीआई ने भी रिया सहित सुशांत के सभी मित्रों से दस-दस घंटे तक पूछ कर भी सुशांत की हत्या में रिया के हाथ का आधार नहीं ढूढ पायी. तब रंगमंच पर आती है एनसीबी, रिया तथा उसके भाई को नशीले पदार्थों के सेवन तथा उसके आपूर्ती के अपराध में दस दस घंटे पूछती रही और अंत में रिया के पास से 59 ग्राम गांजा बरामद होने की बात कही गयी. इसी के आधार पर उसने रिया को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

एक बार फिर कंगना रनावत का प्रवेश यहां होता है. उसने सुशांत से सहानुभूति रखने के बहाने खुद को लंबे समय तक सुर्खियों में बनाये रखा था. अब बीजेपी की प्रवक्ता बन कर महाराष्ट्र सरकार तथा शिव सेना के साथ ट्व्टिर युद्ध में लग गयी. भले ही उसकी सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा कवच प्रदान की हो, लेकिन सोशल मीडिया में रिया से सहानुभूति रखने वालों के हाथों भद्दे और अश्लील रूप से ट्रोल होती कंगना को वे नहीं बचा पाये.

कुल मिला कर सुशांत आत्महत्या की घटना भुला दी गयी. उसके लिए प्रदर्शित होती सहानुभूति भी खत्म हो गयी. उसके स्थान पर दो राज्यों के नेताओं की आन की लड़ाई, दो राज्यों के पुलिस की मूंछ की लड़ाई से होते हुए अब यह एक घिनौनी राजनीतिक खेल में तब्दील हो गयी, जहां केंद्रीय एजंसियां हथियार बने हुए है और रिया तथा कंगना इस खेल की दो मोहरें. रिया नहीं चाहते हुए और कंगना चाहते हुए इस गेम प्लान का हिस्सा बन गयी जो वास्तव में पितृसत्तात्मक समाज का एक भयावह चेहरा है.

इस लड़ाई में रिया और कंगना अंत में यूज एंड थ्रो की स्थिति में होंगी. जनता इस टुच्ची सहानुभूति के जंग में अपना कोरोना का डर, आर्थिक पिछड़ापन या बेरोजगारी की समस्या को भूल ही गयी.