अक्सर ऐसा होता तो नहीं है ! थापर जी तो बहुत ही विनम्रता लेकिन मजबूती के साथ अपनी बात कहने वाले पत्रकार हैं ! पिछले तीस साल से पढ़ रहा हूं उन्हें ! अगर कर्ण थापर ने सुप्रीम कोर्ट को ‘संघ के आंगन का नचैया’ कहा है तो कोई मजबूत वजह भी होगी उनके पास ऐसा कहने की ! इसी वजह को जानने का नतीजा है यह पोस्ट क्योंकि प्रशांत भूषण को दोषी ठहराना, कुणाल कामरा को कठघरे में खड़ा करना तो संघ-भाजपा के आंगन में उसके नाचने का खाली एक सबूत भर है !

अपने मौजूदा स्वरूप के बावजूद यही सुप्रीम कोर्ट अक्सर सभी मामलों में सरकार के खिलाफ ही फैसले देता आया था 2014 से पहले तक तो! एक मशहूर केस शाहबानो को गुजारा भत्ता देने का भी था ! 43 साल शादी के गठबंधन में रहने के बावजूद शाहबानों और उसके पांच बच्चों (जैसे मायके से साथ लेकर आई हो उन्हें वह) को मेहर की रकम दे कर घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया था उसके वकील पति ने ! एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद पांच सदस्यीय संवैधानिक खंडपीठ ने उसे 500 रु महीना गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया था और मेहर तथा पर्सनल लॉ की व्याख्या भी की थी !

लेकिन राजीव गांधी ने तो अपनी मां को बहुसंख्यक तुष्टीकरण के चक्कर में मूक दर्शक बने हुए देखा था! सत्ता से बेदखल होने के बाद इंदिरा जी को भी इन कांग्रेसी टोपी पहने संघियों की ताकत का अहसास तो हो ही चुका था ! 1980 में उनके दोबारा सत्ता में लौटने के बाद यह धड़ा भी कांग्रेस का सबसे मजबूत धड़ा बन गया :

• मुरादाबाद में नरंसहार हुआ, इसके बावजूद इंदिरा जी खामोश !

• केंद्रीय मंत्री अब्दुलरहमान नश्तर ने जब कांग्रेस की गलती मान ली तो उन्हें ही बर्खास्त कर दिया गया !

• असम में 1983 में हुआ नेली हत्याकांड ! जांच आयोग ने भी पुलिस को ज़िम्मेदार माना ! लेकिन इंदिरा जी मूक दर्शक बनी रहीं !

राजीव गांधी तो खैर इन्हीं निक्करधारियों के हाथ की कठपुतली थे ही। तभी तो 1984 में हुए सिखों के निर्मम नरसंहार को भी स्वाभाविक प्रतिक्रिया बताया था उन्होंने !! यही काम उन्होंने शाहबानों मामले में किया था कांग्रेस के इसी मजबूत बड़े के दबाव में आ कर ! उन्होंने संसद में बिल ला कर सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला ही बदल दिया जिसकी वजह से गृह राज्य मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने फौरन अपना इस्तीफा दे दिया ! इस केस ने देश की राजनीति की दशा और दिशा ही बदल डाली थी !

खैर, सुप्रीम कोर्ट देश की‌ एक ऐसी‌ संस्था है जिसका खुद का वजूद ही जब लोकतांत्रिक नहीं है, तो वह भला आम आदमी के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा कैसे करेगी !! यहां तो जजों की नियुक्ति भी बिना किसी चुनाव या परीक्षा के‌ हो जाती है ! पहले भी कई बार बता चुका हूं कि इस पूरी न्याय पद्धति खासकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पर अक्सर कुछेक परिवारों और एक जाति विशेष का ही कब्जा रहा है ! राजस्थान हाई कोर्ट के परिसर में 28 जुलाई,1989 को की गई मनु की प्रतिमा की स्थापना ही सारी कहानी खुद ही कह देती है कि उच्च न्यायायिक व्यवस्था तो एक कुलीनतंत्र में विश्वास रखने वाली एक मनुवादी-ब्राह्मणवादी संस्था ही है ! यही वजह है कि वरिष्ठ पत्रकार कर्ण थापर की इस टिप्पणी पर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई :

“सुप्रीम कोर्ट न्याय स्थापित करने के लिए बनाया गया था, लेकिन 2014 से ही (वह) संघ के आंगन में नाच रहा है।”

इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने विस्तार से बताया है कि कैसे सुप्रीम कोर्ट सत्य, न्याय एवं लोकतंत्र के रक्षक होने की जगह सत्ता के एक औजार के रूप में काम कर रहा है :

• वह सीबीआई के जज लोया की हत्या की जांच तक नहीं होने देता !

• राफाल सौदे की जांच की मांग पर कानों में तेल डाल लेता है !

• हद तो तब होती है जब कोरोना काल में मजदूर सड़कों पर मर रहे होते है और यह उनके मामले को सुनने से भी इंकार कर देता है !

• ईवीएम मशीन पर सुनवाई की बात तो नहीं करता लेकिन प्रशांत भूषण के ट्वीट का खुद ही संज्ञान ले लेता है !

• यहां पिछले पचास साल के रिकॉर्ड तो सुरक्षित रहते हैं लेकिन भाजपा समर्थित सांसद विजय माल्या की फ़ाइल खो जाती है !

• इसके मुताबिक किसी दलित के साथ अगर घर की चारदीवारी के अंदर गाली-गलौज की जाती है तो उसका अपमान नहीं होता और उस पर एससीएसटी एक्ट लागू नहीं होता !!

• एक ही जज दो अलग मामलों में एक ही अनुच्छेद 32 की अलग अलग व्याख्या करता है ; अर्णव गोस्वामी के मामले में अलग और सरकार की आलोचना करने वाले दूसरे सभी के मामले में अलग !

• आस्था के आधार पर बिना किसी सबूत बाबरी मस्जिद को रामजन्म भूमि घोषित कर देता है। अगर खाप पंचायत आस्था और परंपरा के नाम पर कुछ सख्ती बरतती है तो फिर उसमें गलत क्या है ?

• एक साल से कुंडली मार कर बैठा हुआ है इस सवाल पर कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जाना वैधानिक है भी या नहीं ! कई सालों से लोगों को हिरासत में सड़ रहे लोगों के मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ याचिकाओं को सुनने का वक्त भी नहीं है इससे पास। संघ-भाजपा इस बात का भरपूर राजनीतिक लाभ उठा रहे हैं।

किससे करें फरियाद हम चाक-जिगर की यारो,
यहां तो कातिल ही मिरा मुंसिफ बना बैठा है !