जब भी हम भारतीय किसान की कल्पना करते हैं तो घुटनों तक धोती पहने, सर पर गमछा बांधे, कंधों पर हल उठाये एक पुरुष की छवि उभरती है. महिलाएं हमेशा से कृषि कार्य में लगी हुई हैं, लेकिन पुरुष किसान की सहयोगिनी के रूप में ही दिखती है. हालांकि पचास के दशक में ही मदर ‘इंडिया’ सिनेमा के निर्देशक ने नर्गिस को हल का जुआ खींचते दिखा कर महिला किसान की कल्पना को एक मूर्त रूप दे दिया था. कुछ वर्ष पहले कर्नाटक के एक गांव में बैलों के अभाव में खेत जोतने में लाचार पिता को दो बेटियों ने हल का जुआ खींच कर मदद करती तस्वीरें आयी थी. यह कारुणिक तो था, लेकिन साथ ही इस तथ्य को भी उजागर कर रहा था कि महिलाएं शक्त्सिंपन्न तो हैं ही, खेती के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं. लेकिन चूंकि पुरुष सत्तात्मक समाज में जमीन का मालिक सामान्यतः पुरुष ही होता है, इसलिए किसान के रूप में भी पुरुष की ही छवि बनती है. ं.

किसान आंदोलन ने तो महिला किसान की अवधारणा को और पुष्ट किया है. सैकड़ों की संख्या में महिलाएं इस आंदोलन में अपने ट्रैक्टरों को खुद चलाते धरना स्थलों तक पहुंची और लगातार दो महीनों से आंदोलन में अपना सहयोग दे रही हैं. एक ओर रोटी बना कर लोगों को खिला रही हैं तो दूसरी और ट्रैक्टर चला कर कृषि कार्य में अपनी कुशलता का प्रदर्शन भी कर रही हैं. पत्रकारों के पूछने पर एक महिला ने बताया कि पति की मृत्यु के बाद उसने खुद अपने दो बीघे जमीन को ट्रैक्टर से जोता. बीज बोया और फसल काटी जिससे उसका जीवन यापन होता है. दूसरी महिला ने बताया कि वह भी खुद से ही खेती करती है. पराली जला कर दिल्ली तक की हवा को प्रदूषित करते पंजाब के किसानों को उसने बताया कि फसल कटने के बाद उस पर ट्रैक्टर चला दिया जाये तो पराली जमीन पर बिछ जायेंगे, जो बाद में खाद में तब्दील होकर खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ायेंगा.

ये दोनों महिलाएं किसान ही हैं. पुरुष प्रधान समाज में सारे आर्थिक क्रियाओं का केंद्र पुरुष को ही माना है. महिलाएं केवल उनकी सेविका या सहयोगिनी ही हो सकती है. लेकिन आधुनिक दौर की महिलाओं ने कृषि क्षेत्र में ही नहीं, सभी आर्थिक क्षेत्रों में अपनी कुशलता दिखायी है. सेना में जाकर हवाई जहाज उड़ाया, तो कमांडिंग अफसर बन कर युद्ध भूमि में भी लड़ी. इंजीनियर बन कर आईटी क्षेत्र में अपना डंका बजाया. बड़े-बड़े आर्थिक प्रतिष्ठानों को भी चला कर दिखाया. और खेती में तो झारखंड सहित पूरे देश में महिलाओं की अहम भूमिका रही है. जरूरत है उनकी इस पहचान को खेती के क्षेत्र में एक पूरक नहीं स्वतंत्र रूप में चिन्हित करना.