जो बाहरी लोगो एक असली झारखंडी ( झारखंड के वित्त मंत्री श्री रामेश्वर उरांव ) के वक्तव्य से आहत हो गए, उन्हें जरा एक बार दिमाग पर जोर डाल कर सोचना चाहिए कि बाहर से आये हुए लोगो का झारखंड के विकास में क्या योगदान रहा है? झारखंड के अतीत में जाकर देखे तो एक बेहद काला अध्याय छिपा हुआ है।

झारखंड 32 जनजातिय समुदायों का प्रदेश रहा है. साथ में सदियों से स्थानीय मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग, अनुसूचित जाति, ओबीसी एवं जेनरल समाज के लोग यहाँ के आबोहवा, संस्कृति, भाषा, बोली एवं यहां की संस्कृति से जुड़ कर रहते आये हैं।

स्वतंत्रता संग्राम में प्रथम विद्रोही का अगर जिक्र होता है तो सर्व प्रथम झारखंड के स्थानीय लोगो की एक लंबी लिस्ट है। बिहार का दक्षिणी क्षेत्र झारखंड में अंग्रेजो के आगमन के बाद स्थानीय लोगो पर भूमि सम्बन्धी कानून बनाकर जबरन दुगना लगान वसूला जाता था जिसे यहाँ के स्थानीय लोगो ने अस्वीकार कर दिया था।

लगान ना देने पर अंग्रेजो ने स्थानीय लोगों की जमीन की नीलामी शुरू कर दी, जिसके कारण बाहरी धनाढ्य लोगो का आगमन झारखंड में होने लगा। अंग्रेजो के द्वारा भूमि की नीलामी के कारण झारखंड की भूमि पर मारवाड़ी, बिहारी, बंगाली और यूपी के धनाढ्य लोगो का आगमन हुआ। ये वही बाहरी लोग थे जिन्होंने अंग्रेजो की कृपादृष्टि पाकर सीधे- सादे स्थानीय लोगों को लूटने ठगने का काम किया था, जिससे आहत होकर स्थानीय लोग विद्रोह करने पर मजबूर हुए। इतिहास गवाह है की जनजातियों के क्षेत्र में बाहरी लोगों का प्रवेश कठिन था, लेकिन अंग्रेजो की गलत नीतियों के कारण जनजातीय क्षेत्रो में बाहरी लोगों का हस्तक्षेप बढ़ने लगा।

अंग्रेजांे एवं बाहरी लोगों का उद्देश्य ही था लाभ कामना। उसके लिए उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ बर्बर व्यवहार किया। अत्याचार किये, शोषण किया, जिसके फलस्वरूप जन समय-समय पर विद्रोह हुआ। यह सब झारखंड के इतिहास में तारीख के साथ सब दर्ज है, इसे हमे बताने की जरूरत नही।

भारत की आजादी के 60 वर्ष उपरांत झारखंड राज्य की स्थापना हुई। मैं उन बाहरी लोगों से प्रश्न करना चाहता हूँ की झारखंड आंदोलन में उनके पुरखाओं का क्या योगदान था? झारखंड राज्य की स्थापना के 20 वर्ष पूरे हो गए। इस दरम्यान कई राजनीतिक बदलाव भी झारखंड ने देखे हैं। राज्य के सम्मानीय पद पर बैठे एक व्यक्ति के वक्तव्य पर अगर किसी बाहरी लोगों को ऐतराज है तो शौक से झारखंड का त्याग कर दें। क्या गलत बोला उन्होंने? आज झारखंड के बड़े- बड़े शहरों में किन लोगों का हस्तक्षेप रहा है । व्यापार, खनन और स्थानीय राजनीति में किसका वर्चस्व रहा है इन 20 वर्षो के दरम्यान झारखंड में?

किसकी जमीन पर राज कर रहे हैं वे लोग? ये जो बड़े आलीशान घर, बडी- बडीे दुकानें, शॉपिंग मॉल, होटल, रेस्टोरेंट आदि देख रहे हैं, जिस पर इन्होंने अपने अपने आशियाना बना रखा हैं, ये कभी किसी आदिवासी या स्थानीय लोगों की जमीन हुआ करती थी ।

फिर किस बात का इनको तकलीफ ? सत्य कड़वा होता है इसे स्वीकार करना सब के बस की बात नही।

ये वही लोग है जिन्हें यहाँ के स्थानीय रहन सहन, भाषा कल्चर, संस्कृति से दिक्कत है और अपनी बाहर की संस्कृति जबरन झारखंडियों पर थोपना चाहते हैं और थोप भी दिए हैं। वे बाहरीे लोग भूल गए हैं की झारखंड ने कई राजनीतिक परिवर्तन झेले हैं, लेकिन स्थानीय लोगो ने अपनी झारखंडी अस्मिता को बचाये रखने के लिए संघर्ष भी मिल कर किये। बात केवल एक राजनीतिक वक्तव्य का नहीं, बल्कि झारखंड के स्थानीय जनता के मान सम्मान एवं उनके अस्तित्व का है। बाहरी लोग आकर बड़ी आसानी से अपने धन बल और राजनीतिक धार्मिक शक्तियों द्वारा स्थानीय लोगों की जमीन, रोजगार उनके संसाधनों को लूटते रहे और उनके खिलाफ एक आवाज भी ना उठाये ये, तो फिर अन्याय की परिकाष्ठा होगी जो स्थानीय लोगों को मंजूर नहीं ।

जब महाराष्ट्र में राज ठाकरे बाहरियों को खदेड़ने की बात करते हैं, तो सबकी जुबान पर ताले जड़ जाते हैं। लेकिन जब झारखंड में बाहरी लोगों को उनके द्वारा किये जा रहे शोषण और अन्याय के खिलाफ कोई आवाज उठाये तो स्थानीय लोगों को आंदोलन करने की धमकी देते हैं । इस प्रकार की नीति तो केवल झारखंड में ही देखने को मिलती है किसी अन्य राज्य में नही ।

कौन स्थानीय है ? स्थानीयता के क्या मायने हैं ? स्थानीयता की पूर्ण परिभाषा क्या है ? ये क्या राजनीतिक और बाहर से आये हुए लोग तय करेंगे ?