मीडिया में राकेश टिकैत के नरम पड़ने की खबर तेजी से चलाई जा रही है । राकेश टिकैत पहले ही स्वीकार कर चुके हैं कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया था । राजनाथ सिंह के प्रति उन्हें ज्यादा भरोसा रहा है । उस रात उन्होंने भरोसा तोड़ने की बात बार-बार कही । यह स्पष्ट है कि पंजाब की धरती से जिस राजनीतिक तेवर और बौद्धिक गहराई के साथ एकाधिकार पूंजी के हमलों के खिलाफ यह लड़ाई शुरू हुई थी उसका हिस्सा राकेश टिकैत नहीं थे । बाद में संयुक्त मोर्चा की बैठक और वार्ताओं में वे शामिल हुए और अपने अनुभवों से वह ज्यादा से ज्यादा मजबूती से संयुक्त मोर्चा के साथ तीनों कृषि कानून को वापस लेने तथा एमएसपी की गारंटी का कानून बनाने की मांग करने लगे द्य उस रात के बाद इस मांग के पक्ष में उन्होंने और मजबूती से अपनी बात कही । उनका किसान यूनियन का कमान उनके बड़े भाई नरेश टिकैत के हाथ में है जिनकी भागीदारी इस आंदोलन में प्रत्यक्षतः अब तक कहीं नहीं देखी गई है। उस रात भी भारी जन दबाव के बीच छोटे भाई राकेश टिकैत के पक्ष में वह खड़ा हुए। इसलिए राकेश टिकैत तथा उनके किसान संगठन के वैचारिक तथा वर्ग आधार सत्ताधारियों के आसपास ही रहा है, इस पर कोई बहस नहीं है। प्रश्न है कि संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा कृषि कानून की वापसी और एमएसपी का कानून बनाने का मुद्दा जितना तेजी से आम किसानों के बीच जा रहा है, ऐसी स्थिति में कोई भी किसान नेता झुककर समझौता कर इस मुद्दे को समाप्त कर सकता है क्या?

यदि ऐसा हो भी गया तो अब तक के भेले झटकों की तरह , थोड़ा पीछे जाकर आम किसानों के बीच से यह फिर नये नेता और जमीन की तलाश कर लेगा। राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश के मजबूत नेता के रूप में उभर रहे हैं। विपक्ष की राजनीति में उनकी बड़ी भूमिका हो सकती है। संभवतः राजनीतिक तौर पर महत्वाकांक्षा रखने वाले राकेश टिकैत अपनी इस भूमिका को गंवाना नहीं चाहेंगे।

राकेश टिकैत यदि अपने बड़े भाई और उनके इर्द-गिर्द जमा उनके समर्थकों के दबाव में समझौता कर भी लेंगे तो यह आंदोलन समाप्त नहीं हो रहा है। कब , कहां और किस रूप में बड़े पूंजीपतियों के खिलाफ घबराए और आक्रोश से भरे छोटे उत्पादक और छोटी पूंजी के मालिक , छोटे किसान अपनी तबाही के भय से आंदोलन पर उतर आएंगे, कहना मुश्किल है। लेकिन फिलहाल राकेश टिकैत संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में मजबूती से खड़े हैं और संयुक्त किसान मोर्चा सत्ता के सामने मजबूती से खड़ा होकर राजकीय दमन को झेल रहा है। हमें किसान आंदोलन के मुद्दे तथा इस षड्यंत्र पूर्ण राजकीय दमन के खिलाफ मजबूती के साथ खड़ा होकर उनका साथ देना है।