2 फरवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने एक नोटिस जारी करते हुए भारत के सभी हाई कोर्टों से कहा कि ऐसी सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया जाये जिनमें एक समान विवाह उम्र की अपील की गयी है. इस तरह के मामलों के स्थानांतरण की याचिका भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में दी थी, जो इस मामले के प्रमुख वकील भी हैं. इस तरह की याचिका की उपयोगिता संबंधी प्रश्नों के जवाब में उन्होंने कहा कि संविधान की धाराएं 14, 15 तथा 21 से संबंधित विविध कानूनी पेंच तथा उनसे संबंधित उलझे हुए विचारों से निपटारा करना है. साथ ही लैंगिक समानता और लैंगिक न्याय के लिए भी यह जरूरी है.

उन्होंने अपनी याचिका में यह भी कहा कि भारत में विभिन्न धर्मों के अपने-अपने विवाह कानून हैं, जो लड़का तथा लड़की के विवाह उम्र को निश्चित करते हैं और जो संविधान की 14, 15 तथा 21 वीं धाराओं का उल्लंघन करते हैं. इसलिए देश के सभी युवक तथा युवतियों के विवाह की उम्र 21 वर्ष सुनिश्चित किया जाना चाहिए. स्त्री पुरुष के विवाह की उम्र एक तरह की हो, इस संबंध में याचिका में यह भी कहा गया कि स्त्री-पुरुष के उम्र के अंतर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह केवल पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष की श्रेष्ठता को बनाये रखने के लिए है. इसी याचिका के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने विवाह आयु से संबंधित अन्य अदालतों की सारी याचिकाओं को अपने पास मंगवा लिया है और सबका निपटारा एक साथ करना चाहती है.

विवाह से संबंधित उम्र को निर्धारित करते समय हमारे संविधान निर्माताओं को भी बहुत विचार मंथन करना पड़ा था, क्योंकि संविधान बनाते समय सामाजिक परंपराओं का भी ध्यान रखना पड़ता है. इस बात का बहुत विरोध हिंदू संगठनों द्वारा हुआ था कि स्त्री के विवाह की उम्र बढ़ाई जाये. विवाह से संबंधित किसी भी धर्म का कानून हो, उसमें स्त्री की उम्र पुरुष से कम ही होती है. क्योंकि धर्म चाहे जो हो, भारतीय समाज में पुरुष प्रमुख होता है और उसके विवाह की कोई उम्र नहीं होती है. स्त्री किसी भी उम्र की हो, उसे पुरुष की अनुगामिनी समझा जाता है या प्रजनन द्वारा वंश वृद्धि के लिए उपयोगी. स्त्री संबंधी सारे निर्णय पुरुष द्वारा ही लिये जाते हैं. स्त्री हिंसा को भी पुरुष ही परिभाषित करता है और उससे निबटने के उपाय भी बताता है. स्त्री के विवाह की उम्र बढ़ाने की बात पर एक नेताजी का बयान आता है कि 15 वर्ष की उम्र में ही लड़की प्रजनन के लायक बन जाती है, जबकि विज्ञान बताता है कि 18 वर्ष की उम्र के पहले लड़की के प्रजनन के अंग परिपक्व नहीं होते हैं.

अब देखना यह है कि स्त्री के विवाह की उम्र बढ़ कर पुरुष के बराबर होती है या यह भी विवादों में पड़ जायेगी. सवाल यह भी है कि क्या विवाह की उम्र बढ़ जाने से लैंगिक न्याय व समानता आ जायेगी? देखा गया है कि 18 या 21 वर्ष की उम्र निर्धारित रहते हुए भी बाल विवाह हो रहे हैं. स्त्री पुरुष के बराबर अधिकारों की बात संविधान में रहते हुए भी स्त्री मजदूर को पुरुष मजदूर के बराबर मजदूरी नहीं मिलती है. संसद में पुरुषों के बराबर स्त्रियों को आने का मौका नहीं दिया जाता है.

इसका तो अर्थ यह हुआ कि जब तक सामाजिक तथा राजनीतिक चिंतन में बदलाव नहीं आयेगा, तब तक हम लैंगिक समानता या लैंगिक न्याय की बात सोच नहीं सकते हैं. विवाह की उम्र को एक समान करने का यह सारा नाटक बीजेपी के एक राष्ट्र, एक झंडा, एक कानून का नया प्रपंच हो सकता है.