रविवार 6 अप्रैल के अखबार में दो खबरें आती हैं. पहली खबर थी - लखन नाम का 18 वर्ष का एक लड़का पुलिस की पिस्तौल छीन कर पुलिस की ही गाड़ी से कूद कर भाग रहा था, तो पुलिस ने उसे गोली मार दी. लखन तथा उसके तीन साथियों ने चैदह वर्ष की एक लड़की का बलात्कार किया था. लड़की लखन को पहचानती थी, क्योंकि वह भी उसी ट्यूशन क्लास में जाता था, जहां लड़की भी जाती थी. 3 अप्रैल के दिन शाम को लड़की ट्यूशन से नीम बेहोशी के हालत में अपने घर के दरवाजे पर आ कर गिर गयी. घर वालों को उसने लखन का नाम लेते हुए अपने बलात्कार की बात बतायी. बाद में लड़की की मृत्यु हो गयी. घर वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करायी कि लखन और उसके साथियों ने बलात्कार के बाद उनकी लड़की को जहर खिला दिया. लेकिन पुलिस कहती है कि बलात्कार के बाद लड़की ने खुद ही जहर खा लिया है. यह घटना उत्तर प्रदेश के मेरठ के पास के एक गांव की है.

दूसरी खबर उत्तर प्रदेश के ही हापुड़ की है. 31 मार्च को नोयडा के एक अस्पताल में 15 वर्ष की एक लड़की की लाश मिली थी. जांच में पाया गया कि लड़की का बलात्कार हुआ था. उसी बलात्कार का मुख्य आरोपी पांच अप्रैल को पकड़ा जाता है. 22 वर्ष का यह लड़का उस लड़की का रिश्तेदार ही था. उसने पुलिस के सामने यह स्वीकार किया कि उसने 22 मार्च को ही लड़की का अपहरण कर लिया था. उसके बाद सामूहिक बलात्कार होता रहा. लड़की की हालत बिगड़ने लगी तो उसे नोयडा के एक अस्पताल में लाया गया जहां लड़की मृत घोषित हुई. लाश का वहीं छोड़ कर वे लड़के वहां से खिसक गये. लड़की के माता पिता के द्वारा लड़की के लापता होने की शिकायत पर पुलिस लड़की की खोज करते हुए नोयडा पहुंची और वहां लड़की को मृत पाया. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में यह बताया गया कि लड़की तबियत खराब होने से नहीं, बल्कि उसे दम घोंट कर मार दिया गया था.

ये दोनों घटनाएं दिल दहला देने वाली हैं. लेकिन ये केवल अखबार की खबर बन कर रह गयी. समाज में इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखी. अभी तक हाथरस, बदायूं, कानपुर आदि जगहों के जघन्य बलात्कार कांडों को भुलाया नहीं जा सका है. निर्भया कांड के बाद बलात्कार की घटनाएं उसी रफ्तार से बढ़ रही हैं और हम उनके प्रति धीरे-धीरे संवेदनहीन होते जा रहे हैं. 2020 के अक्तूबर में एनसीआरबी की रिपोर्ट आयी, उसके अनुसार यूपी में 2016 से 2019 के बीच महिला हिंसा में 20 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2017 में 4246 बलात्कार हुए जिसमें 1560 नाबालिग लड़कियां थी. 1918 में 3946 बलात्कार हुए जिसमें 1411 नाबालिग लड़कियां थी. 2019 के 3065 बलात्कारों में से 270 नाबालिग लड़कियां थी. बलात्कार होते रहते हैं. शिकायत होने पर पुलिस हरकत में आती है. पीड़ित लड़की मार दी जाती है या मर जाती है. अपराधी भाग जाता है या पकड़ा जाता है तो कोशिश यह रहती है कि उसे सजा से बचा लिया जाये.

ऐसा क्यों हो रहा है? वास्तव में बढ़ते बलात्कारों का कारण क्यों नहीं ढ़ूढ़ा जाता है? बलात्कार को समाज में सामान्य घटना की तरह क्यों लिया जाता है? सबसे अहम सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों से भाजपा का प्रचंड शासन है. एक योगी वहां के मुख्य मंत्री हैं. एक तरह से वह राज्य भाजपा के हिसाब से ‘राम राज्य’ के सपने को साकार करता है. योगी चुनाव सभाओं में अपने राज्य के बेहतर शासन की बात बार बार कहते हैं. वैसे राज्य में महिलाओं के साथ होने वाला दुराचार की व्याख्या हम कैसे करें?