संथाल परगना के एक विधानसभा सीट मधुपुर में उप चुनाव होने वाला है. वहां संघर्ष झारखंडी जनता और कारपोरेट के बीच है. जिसमें जनता के साथ खड़े हैं हेमंत सोरेन और कारपोरेट के साथ खड़े हैं बाबूलाल. सदन में एक सीट के बढ़ने घटने से महागठबंधन की सरकार को कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला. इसके अलावा दो उपचाव इस बीच महागठबंधन पूर्व में जीत चुकी है - दुमका और बेरमो. मधुपुर का जातीय समीकरण भी झामुमो के अनुकूल है. वैसे में यह कहना कि महागठबंधन यहां से चुनाव जीत रही है, गलत नहीं होगा. बावजूद इसके भाजपा के शीर्ष नेता बाबूलाल एक बार फिर यह हवा बांधने लगे हैं कि दो मई को चुनाव परिणाम आने के बाद महागठबंधन सरकार का पतन हो जायेगा.

कैसे?

तो, वही नापाक इरादे. भाजपा यह सीट जीत जायेगी. फिर कांग्रेस में भगदड़ मचेगी. कांग्रेस के विधायक टूटेंगे. कारपोरेट के पैसे से विधायकों का खरीद फरोख्त होगा. यह सरकार अल्पमत में आ जायेगी… वगैरह, वगैरह. इस तरह का सफल प्रयोग भाजपा ने मध्यप्रदेश में कर दिखाया है. राजस्थान में भी करने की कोशिश तो हुई, लेकिन वह सफल नहीं हुई. उसके बाद से भाजपा का आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया है. और हारी हुई बाजी को वह इन तिकड़मों से जीतते की कोशिश में लगी रहती है. क्योंकि साफ सुथरे चुनावी राजनीति में चुनाव लड़ो, जीतो और फिर सरकार बनाओ से आसान यह तरीका है कि विधायकों को ही खरीद लो. और उसके लिए पैसा तो कारपोरेट देने के लिए तैयार बैठा है. बस उसे मन माफिक सरकार चाहिए.

आप पूछेंगे, मधुपुर सीट में कारपोरेट घरानों की दिलचस्पी क्या हो सकती है? तो आईये, संक्षेप में उनके निहित स्वार्थ की चर्चा करते हैं. उन बातों की चर्चा करते हैं, जिनकी भाजपा के नेता भूले से भी चर्चा नहीं करते. भाजपा कारपोरेट पोषित पार्टी बन गयी है और तीन कृषि कानूनों ने इसका पर्दाफाश कर दिया है. जिस तरह वह सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों को बेच रही है, उससे भी लोगों की आंखें खुली है. खनिज संपदा से भरपूर झारखंड में कारपोरेट घरानों की शुरु से दिलचस्पी रही है और बाबूलाल उनके पसंदीदा झारखंडी नेता, जिनके मुख्यमंत्रित्व काल में तपकारा में गोली चली और सैकड़ों एमओयू हुए. अर्जुन मुंडा और रघुवर दास ने बाबूलाल के काम को ही आगे बढ़ाया. और आज की तारीख में दो शीर्ष कारपोरेट घराने के गहरे सरोकार झारखंड में बन गये हैं. गोड्डा में अडाणी का पावर प्लांट बन रहा है. संथाल परगना में ही अंबानी ने एग्रो इंडस्ट्री के लिए 52 गांव चुने है.

अडाणी के पावर प्लांट के लिए साहेबगंज में बंदरगाह और देवघर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बन रहा है. मतलब, रांची का हवाई अड्डा अंतरराष्ट्रीय श्रेणी का बने या न बने, देवधर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनेगा. बंदरगाह इसलिए कि अस्ट्रेलिया से कोयला आये तो उसे अडाणी के पावर प्लांट तक पहुंचने में दिक्कत न हो. भले ही इससे गंगा और उस पर जीवन बसर करने वाले मछुआरे तबाह हो जायें. तुर्रा यह कि अडाणी के पावर प्लांट में बनी बिजली बांग्लादेश को जायेगी. अंबानी के एग्रो इंडस्ट्री की उपज उनके रिलायंस व अन्य माॅलों में बिकेगी. एग्रो इंडस्ट्री की आसानी के लिए तीन किसी कानून आ चुके हैं जिसमें तरफ तो मिनिमम सपोर्ट प्राईस की गारंटी खतम हो गयी और किसम किसम की सब्जियों- आलू, प्याज, टमाटर आदि के स्टोरेज की भी छूट दी जा चुकी है. अंबानी के बड़े-बड़े गोदामों की चर्चा सबों ने सुनी होगी.

खैर, महागठबंधन की सरकार जो झामुमो के नेतृत्व में चल रही है, वह कारपोरेट के मंसूबों के लिए बहुत बड़ी रुकावट बन गयी है. हेमंत राज्य में औद्योगीकरण के खिलाफ नहीं, लेकिन कारपोरेट की स्पष्ट समझ है कि जब तक झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन जिंदा हैं, वे झारखंडी जनता के हितों के खिलाफ कुछ नहीं होने देंगे. कारपोरेट को अब सरकारों से समझौता नहीं, संपूर्ण समर्पण चाहिए. यह तो भाजपा ही कर सकती है. इसलिए झारखंड की महागठबंधन सरकार उनकी आंख की किरकिरी बन चुकी है. और मधुपुर सीट एकबारगी उनके गेम प्लान का हिस्सा बन गया है. जनता से चूक हुई नहीं कि वे अपने नापाक इरादों को कामयाब करने में जुट जायेंगे. पहले उन्हें खरीदने की कोशिश होगी. फिर सीबीआई, इडी के कारिंदों से विधायकों को घेरा जायेगा. उन्हें दलबदल के लिए प्रेरित किया जायेगा. महागठबंधन सरकार को निरस्त करने की योजनाओं में वे लग जायेंगे.

तत्काल तो फायदा यह होगा कि सिर्फ एक सीट की बढ़त से भाजपा एक राज्य सभा सीट अपने लिए और सुनिश्चित कर लेगी. लेकिन क्या मधुपुर सीट पर भाजपा की जीत संभव है?

दरअसल भाजपा अब पूरे देश में एक ही चुनावी रणनीति पर काम कर रही है. वह है सांप्रदायिक, हिंदुत्ववादी भावनाएं भड़का कर हिंदू वोटों को एकजुट करना. इसके लिए जरूरी है कि मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ नफरत फैलायी जाये. छद्म राष्ट्रवाद का नारा बुलंद किया जाये. मधुपुर में हाजी हुसैन अंसारी के पुत्र हफीजुल हुसैन महागठबंधन के प्रत्याशी हैं. मधुपुर मुस्लिम- पिछड़ा बहुल क्षेत्र है. किसी जमाने में यह एससी सीट था और बगल का देवघर जेनरल सीट. लेकिन देवघर सीट से नेहरु के दौर में कांग्रेस के दिग्गज नेता विनोदानंद झा चुनाव हार गये तो उन्होंने खींज में पंडो पुजारियों के शहर देवघर को एससी सीट और मधुपुर सीट को सामान्य सीट बनवा दिया.

लेकिन सामान्य सीट होने के बावजूद मधुपुर सीट पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक बहुल सीट है और इस बार भाजपा ने एक अरबपति गंगा नारायण सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है जो इस इलाके से गरीब मजदूरों को गोवा ले जाने-लाने का काम करते हैं. उन्हें यह सीट तीन बार यहां से चुनाव जीत चुके राज पलिवार से छीन कर दिया गया है. इस उम्मीद पर की वे पैसे और दबंगई से यह चुनाव जीत सकें. लेकिन यह बहुत आसान नहीं होगा. खतरा सिर्फ इस बात का है कि भाजपा किसी भी प्रकार सांप्रदायिक तनाव पैदा करने में कामयाब न हो जाये.