कोरोना की पहली लहर का मुकाबला हम ठीक से नहीं कर सके तो बहाना यह बनाया जा सकता है कि उसकी विनाशकारी ताकत को हम समय रहते पहचान नहीं सके, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर जिस तरह पूरे देश पर कहर बरपा रही है, उसके लिए तो कोई ठोस बहाना भी नहीं, निकम्मेपन के सिवा. यह जानते हुए कि कोरोना का मुकाबला सिर्फ और सिर्फ वैक्सीन से हो सकता है, हम अब तक सिर्फ 3 फीसदी लोगों को वैक्सीन लगा सके हैं. इसकी तुलना में अमेरिका ने करीबन 36 फीसदी नागरिकों को वैक्सीन लगाने का काम पूरा कर लिया है. कहा जा सकता है कि अमेरिका व अन्य यूरोपीय देशों की आबादी कम है. तो, कुल कितने लोगों को वैक्सीन लगा, यह देख लें. चीन में कुल 38.1 करोड़ को, अमेरिका में 26.8 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाया जा चुका है, जबकि भारत में सिर्फ 18 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाया जा सका है. हमारे हुक्मरान सिर्फ और सिर्फ बड़ी-बड़ी डींगे मारने में माहिर हैं. मोदी सरकार पिछले एक वर्ष से केवल लंबी-लंबी हांकने में लगी है. भारत एक विशाल आबादी वाला देश है और अपने नागरिकों को वैक्सीन देना इस सरकार का प्राथमिक कर्तव्य था. जबकि कुल आबादी में प्रतिशत के हिसाब से देखें तो भारत सबसे निचले पायदान पर है.

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अमेरिका ने 36.6 फीसदी, ब्रिटेन ने 29 फीसदी, जर्मनी ने 10.9 फीसदी, और इजराईल जैसे देश ने तो 56.3 फीसदी नागरिकों को वैक्सीन दे दिया है. मोदी सरकार महज तीन फीसदी नागरिकों का वैक्सीनेशन करा सकी है. बस वह ढ़िढ़ोरा पीटने में आगे हैं. हम वैक्सीन बना रहे हैं, दुनिया भर को वैक्सीन सप्लाई कर रहे हैं, आदि, आदि. जबकि हकीकत यह है कि वैक्सीनेशन की तमाम घोषणाएं और कार्य योजनाएं जमीन पर औधे मुंह गिर पड़ी है. कई राज्यों ने वैक्सीन उपलब्ध नहीें होने की वजह से यह कार्यक्रम सही समय पर शुरु नहीं किया. जिन राज्यों में शुरु भी हुआ वहां वैक्सीन की किल्लत की वजह से वैक्सीनेशन कैंपों को बंद करना पड़ा है.

परिणाम यह कि चीन, जहां से कोरोना के संक्रमण की शुरुआत हुई थी, वह कोरोना से मुक्त हो चुका है. अमेरिका अब ऐलानिया कह रह है कि जिनका वैक्सीनेशन हो गया, उन्हें अब मास्क पहनने की जरूरत नहीं. जबकि भारत श्मशान बनता जा रहा है. मुर्दाधरों में लाश के अंबार लगे हैं. श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए लाईन लगाना पड़ रहा है. और तो और लाशों को गंगा में बहाया जा रहा है. हजारों लोग महज आक्सीजन के अभाव में मर चुके हैं. और सरकारें लाॅकडाउन व तरह-तरह की पाबंदियां जनता पर थोपने में लगी है.

मोदी सरकार पिछले साल भर से पांच राज्यों के चुनाव में वयस्त रही या फिर मोदी अपनी व्यक्तिगत छवि बनाने में लगे रहे. दो निजी कंपनियों ने वैक्सीन बनाया और उसमें भी भारतीय वैज्ञानिकों का कोई खास योगदान नहीं था. लेकिन मोदी और उनकी चैकड़ी पोज यह देते रहे कि उनकी मदद से दोनों कंपनियां वैक्सीन बना रही हैं, जबकि हकीकत यह है कि केंद्र सरकार ने वैक्सीन के शोध और उत्पादन में एक पैसा भी खर्च नहीं किया. फिर भूमिका यह बांधी गयी कि हम अपने देश के नागरिकों को तो वैक्सील मुफ्त में दे ही रहे हैं, कई देशों को वैक्सीन उपलब्ध करा कर मानवता की सेवा कर रहे हैं. लेकिन जब देश में वैक्सीन की कमी से लोग मरने लगे और सरकार की आलोचना होने लगी कि वह क्यों वैक्सीनों का निर्यात कर रहा है, तो उनके प्रवक्ताओं ने सफाई देनी शुरु की कि कुल निर्यात का 84 फीसदी व्यापारिक अनुबंध की वजह से दूसरे मुल्कों को भेजी गयी. यानि, मानवता की सेवा की पोल खुल गयी.

पूरी दुनियां में मोदी और उनकी सरकार की आलोचना हो रही है. उन्हें खलनायक की तरह पेश किया जा रहा है. सारी दुनियां इस बात को लेकर चिंतित है कि भारत जैसे विशाल देश में यदि कोरोना पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो पूरी दुनिया इससे प्रभावित होगी. पता नहीं भक्तों की नींद कब खुलेगी.