हेल्थ संरचना अपने आप ही हमारे देश, हमारे सूबे के लिए प्रमुख विषय बन गया है. यह उजागर हो गया है कि स्वास्थय अधिरचना में हम काफी पीछे हैं. यह उचित समय है, जब हम बिहार के स्वास्थ्य सेवा को उन्नत बनाने के बारें में कहे.ं

उत्तर प्रदेश और बिहार ही नहीं, गुजरात में करोना काल की अराजकता से यह उजागर हुआ है कि प्राथमिक स्वास्थय केंद्र तो दूर , प्रखंड, यहां तक कि जिला स्तर पर भी ऑक्सीजन सुविधा सहित बेड नहीं है. शायद भारत के एकमात्र प्रदेश केरल में प्राथमिक हेल्थ केंद्र में ऑक्सीजन कि व्यवस्था है. आम दिनों में केरल राज्य कि ऑक्सीजन जरुरत 50 मेट्रिक टन होता है. अभी 100 मेट्रिक टन खपत है. इस राज्य का उत्पादन 200 मेट्रिक टन है.

मैं बिहार पर अपनी बात रखता हूँ. यह याद रखना होगा कि आपदा प्रबंधन बिहार की स्थाई समस्या है. इसका अलग विभाग भी है और आपदा प्रबंधन की एक समिति भी है, जो मुख्यमंत्री कि अध्यक्षता में है.

माहामारियों से और महामारी की वजह से भारी संख्या में मौत से हमारे प्रदेश का वास्ता होता रहता है. जैसे, 2019 में चमकी रोग, उसके पहले डेंगू, उसके पहले कालाजर, उसके पहले मलेरिया, टीबी - टाइफाइड से होने वाली मौतें, उसके पहले प्लेग.

भारत के अच्छे उदाहरण को याद करना है, तो असम राज्य में प्रबंधन बेहतर बनाकर, करोना महामारी से बेहतर ढंग से मुकाबला किया गया था. उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार से बेहतर कुछ गरीब पूर्वी प्रदेश उड़ीसा और झारखंड तक में बिहार से बेहतर प्रबंधन रहा है. हालाँकि झारखंड में करोना से मृत्यु दर का अनुपात कम नही है.

यह अब्यावास्था कि वजह से ही है कि बिहार को 200 मेट्रिक टन से ज्यादा ऑक्सीजन भेजा गया. परन्तु यहाँ अभाव, ब्लैक मार्केट और अराजकता बरकरार है. पर केरल में ऐसा नहीं है. यह उचित समय है, जब हम बिहार के स्वास्थ्य सेवा को उन्नत बनाने के बारें में हम गंभीरता से सोंचे और सरकार की जिम्मेदारियों को याद दिलाने के लिए अभियान चलायें. पटना की दो फ्लाई ओवर परियोजना में 2,600 करोड रूपये खर्च करने का अरमान रखने वाली सरकार है. ( जिसमे एक दीघा से पटना तक के फ्लाई ओवर बनाने पर 13,000 करोड़ रू. तक की राशि खर्च हुई भी है. यही नही 700 करोड़ रू से एक अजायब घर बनाया गया. अभी राजधानी पटना के लिए ही बिहार सरकार की कई फालतू योजना चल रही है.

बिहार सरकार से हम मांग करते हैं कि बिहार के 500 के करीब प्रखंड क्षेत्रों के लिए एक एक सुपर स्पेश्येलिटी (विशिष्टता संपन्न) अस्पताल बनाये. हरेक अस्पताल पर 100 करोड रू की़ राशि खर्च की जाए.

2,000 करोड़ का कोष देकर अभी शीघ्र 100 अस्पतालों के लिए 20, 20 करोड रुपए से शुरुआत की जाए. क्रमशः 500 अस्पताल बनाएं जाएँ. इन अस्पतालों में ऑक्सीजन ट्रीटमेंट प्लांट शुरू से हो. वातावरण से साफ करके ऑक्सीजन निकालने कि ब्यवस्था भी हो.