84 वर्षीय और कई गंभीर रोगों के शिकार स्टेन स्वामी को मुंबई हाई कोर्ट के निर्देश पर तालोजा जेल से वहीं के होली स्प्रिट हास्पीटल में ले जाया गया है. वहां जांच के क्रम में पता चला है कि वे कोविड पाजिटिव हैं. उन्हें आईसीयू में रखा गया है और वे आॅक्सीजन सपोर्ट पर हैं. उन्हें 1 अक्तूबर को रांची से एक माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. जाहिर है कि जेल में रहते उनकी करोना जांच नहीं हुई थी. इस उम्र के व्यक्ति के लिए कोरोना किस कदर खतरनाक हो सकती है, यह कोई भी समझ सकता है.

हमारी न्याय व्यवस्था की मूल अवधारणा यह थी कि 99 दोषी भले छूट जायें, लेकिन एक भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए. लेकिन विधि सम्मत शासन का दंभ भरने वाली हमारी व्यवस्था से न्याय प्रणाली की यह मूल अवधारणा लुप्त होती जा रही है. अब तो आलम यह है कि भले सैकड़ों गुनहगार छुट्टा घूमत रहें, लेकिन हर बेगुनाह को किसी भी भी वक्त गुनाहगार के रूप में चिन्हित कर जेल में बंद किया जा सकता है और इसका पूरा इंतजाम और तंत्र सत्ता ने विकसित कर रखा है. एक बार उसकी गिरफ्तारी हो गयी तो अब खुद को बेगुनहगार साबित करने की जिम्मेदारी आपकी है. देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप के आरोपियों में से अधिकतर न्यायालय से दोष मुक्त करार दिये जाते हैं. हमारी जेलों में वंचित जमात के हजारो हजार लोग विचाराधीन कैदी के रूप में बंद रहते हैं. लगातार ऐसे मामले सामने आते ही रहते हैं कि वर्षों जेल की यातनाएं सहने के बाद लोग दोषमुक्त करार दिये जाते हैं. और इस बात की जवाबदेही कभी नहीं तय होती कि वर्षों निर्दोष रहने के बावजूद जेल में एक लंबा समय काट देने वालों के लिए गुनहगार कौन हैं? या फिर हमारी न्याय प्रणाली की खामियों की वजह से उम्र का एक बड़ा हिस्सा जेल की काल कोठरी मे बिता देने वाले ने जो खोया, उसकी भरपायी कैसे हो?

सामान्यतः किसी व्यक्ति को कोर्ट द्वारा दोषी करार दिये जाने के बाद ही जेल भेजा जाना चाहिए. और चूुंकि न्यायिक फैसले में कुछ समय लग सकता है, इसलिए जमानत पर सभी अभियुक्तों का हक होता है. पुलिस किसी एफआईआर के आधार पर या शक के आधार पर किसी को गिरफ्तार करती है तो 24 घंटे के भीतर उसे अभियुक्त को दंडाधिकारी के सामने प्रस्तुत किये जाने का प्रावधान है. कुछ धाराओं में थाना से जमानत देने का प्रावधान है. कुछ को मैजिस्ट्रेट सुनने के बाद जमानत देते हैं या कुछ दिनों के लिए पुलिस हिरासत में रख कर पूछ ताह का निर्देष देते हैं. प्रथम द्रष्टया कोई ठोस प्रमाण मिलने के बाद ही लगाये गये धाराओं के आधर पर अभियुक्त को जेल भेजा जा सकता है. लेकिन जमानत को बहुत दिनों तक नहीं टाला जा सकता.

इससे बचने के लिए सत्ता हर वक्त कुछ ऐसे कानून बनाने के फिराक में रहती है जिससे आजादी के मौलिक अधिकार से व्यक्ति को वंचित किया जा सके. इस क्रम में ही देशद्रोह जैसे कानून का प्रावधान अंग्रेजों ने गुलाम भारत में किया था जिसके तहत किसी को भी जमानत के अधिकार से वंचित रख जेल में बंद किया जा सकता है. इसके अलावा, टाडा, पोटा, यूएपीए जैसे कानून समय समय पर बनाये जाते रहे हैं जिनके द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित कर व्यक्ति विशेष को जेल में बंद रखा जा सकता है. सामान्यतः मुस्लिम आतंकवाद और माओवाद का हवाला देकर इस तरह के कानूनों को बनाये रखा जाता है.

इस तरह के कानूनों का उपयोग पूर्व की तमाम सरकारें करती रही हैं. भाजपा के सत्ता में आने के बाद इस तरह के कानूनों का कुछ ज्यादा ही उपयोग होने लगा है. सत्ता विरोधी हर आंदोलन को कुचलने का यह एक आसान तरीका बन गया है कि उन पर हिंसात्मक कार्रवाईयों में भाग लेने और राष्ट्र की संप्रभुता को चुनौती देने वाला आंदोलन और उसके नेताओं को राष्ट्रद्रोही बता दिया जाये और उन्हें जेल में बंद कर दिया जाये. झारखंड में पत्थलगड़ी से जुड़े आंदोलन को राष्ट्रविरोधी और उसमें शामिल या किसी भी रूप में उसका समर्थन करने वालों को देशद्रोही बता दिया गया. इसी तरह भीमाकोरे गांव मामले में दर्जनों लोगों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज किया गया और स्टेन स्वामी सहित एक दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें जेल में बंद किया गया.

अब यदि उनके खिलाफ साक्ष्य है तो कोर्ट को त्वरित गति से सुनवायी कर अभियुक्तों को सजा देनी चाहिए. लेकिन चूंकि आरोपों को साबित करने के लिए प्रर्याप्त सबूत नहीं, इसलिए मुकदमा एक तरह से अब तक शुरु भी नहीं हुआ है और शुरु होगा तो लंबा खिंचेगा. फिर उन्हें जमानत देने में क्या आपत्ति? दरअसल, सबूत और सजा से कोई विशेष मतलब अब सत्ता को नहीं रह गया है. उनकी मंशा तो इतने मात्र से पूरी हो रही है कि सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने वालों कों जेल की यातना सहने के लिए मजबूर किया जा रहा है. भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद अधिकतर लोग सीनियर सिटिजन है. स्टेन तो 84 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं. जमानत की अर्जी लगातार खारिज हो रही है. और फैसला? पता नहीं कब आयेगा. और यदि फैसला अभियुक्तों के पक्ष में भी आयेगा तो सत्ता का कुछ नहीं बिगड़ने वाला. सत्ता विरोधियों को तो जेल में सड़ा कर सजा दे ही दी सत्ता के खिलाफ बोलने की.