ममता बनर्जी ने सोमवार को गैर भाजपायी मुख्यमंत्रियों को ललकारा की जो मर गया डर गया. उसने केंद्र सरकार द्वारा बंगाल में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचाव के लिए उनसे मदद मांगने के लिए नहीं किया, बल्कि संघीय ढ़ांचे में राज्यों को मिल अधिकारों में केद्र के हसतक्षेप और उनको सिमित करने की केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध के लिए उनका आह्वान किया.

यह तो सर्वविदित है कि केंद्र सरकार गैर भाजपायी सरकार वाले राज्यों से कभी प्रसंन्न नहीं रही. किसी न किसी तरीके से उनको परेशान करने से पीदे नहीं रही. दिल्ली तथा केरल की सरकारों की परेशानियां सबों के सामने है ही. केद्र की बीजेपी सरकार में बंगाल के मुख्यमंत्री को महिला समझ कर उनको शक्तिहीन समझा चुनाव में हार जाने के बाद बदले की भावना भी उनके हार के कामों से जाहिर होता है. बीजेपी को हमेशा से ही अपने धनबल पर अपार विश्वास रहा है. धन से विपक्षी पार्टी के सदस्यों को खास कर विधायकों की खरीद फरोख्त कर विपक्षी दलों को कमजोर करने की रणनीति हमेशा से रही. बंगाल के चुनाव के समय भी तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख विधायकों को फोड़ क रवह प्रसंन्न होती रही.

लेकिन इन सब से ममता बनर्जी घबराने वाली नहीं थीं. उसने कहा कि इससे उसे धोखेबाजों से मुक्ति मिल गयी है. चुनाव प्रचार के समय उसका पैर तोड़ दिया गया. प्लाास्टर लगे पैर को लेकर उसने चुनाव प्रचार किया. यह सब इसलिए हो सका कि ममता बनर्जी भी कोई कच्ची खिलाड़ी नहंी थी. 1984 में जब वह यूथ कांग्रेस की जेनरल सेके्रेटरी बनी और उसी साल वह लोकसभा की भी सदस्य बनी. इससे भी पहले 1970 में ज बवह स्कूल में पढ़ रही थी, उसी समय वह कांग्रेस की सदस्य बन गयी थी. तीन बार लोकसभा की सदस्य बनी और कैबिनेट मंत्री भी रही, लेकिन 1998 में कांग्रेस से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अलग हो गयी और तृणमूल कांग्रेस को बनायी. 2011 से अब तक तीन बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री रह चुकी है. इतने लंबे राजनीतिक जीवन में उसने निश्चय ही राजनीति के सारे गुड़ सीख लिये होंगे. उसी में पश्चिम बंगाल में 35 वर्ष तक शासन में रहे सीपीएम सरकार को हराया. यदि वह बीजेपी के तरीके से ही उनको जवाब देती है तो वह गलत कैसे हो सकती है. और उसे कमजोर कैसे समझा जा सकता है.

उनकी विशेषताओं में प्रमुख है सादगी और ईमानदारी. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह साधारण से अपने पैतृक घर में ही रही. हमेशा सफेद साड़ी में दिखने वाली ममता बनर्जी बंगाल की दीदी हैं. उन्होंने अविवाहित रहकर बंगाल को ही अपना परिवार माना. उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे, लेकिन वे केवल चुनावी स्टंट बन कर ही रह गये. आज भी वह भारत की ईमानदार राजनीतिज्ञों में गिनी जाती हैं.

महिला शक्ति के नारे लगाने वाली बीजेपी अब आईएएस और आईपीएस अफसरों को मोहरा बना कर ममता से बदला लेना चाहती है तो शायद ममता घबरायेगी नहीं. इससे उसकी कुछ परेशानियां बढ़ सकती हैं. यदि उसको गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों का साथ मिल जायेगा तो इस बार भी इंट का जवाब वे पत्थर से ही देंगी. चतुर राजनीतिज्ञ होते हुए भी उसके लिए हमेशा प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा प्रमुख रही है.