रूपा तिर्की के बहाने आदिवासी महिलाओं को महिलाओं के न्याय के रास्ते और सरकार की संवेदनशीलता जगाने का लंबा रास्ता तय करना पड़ रहा है.

एक युवा कर्मठ प्रशासनिक अधिकारी की मौत पर राज्य सरकार ने जिस तरीके से कार्यवाही की है अब तक, उससे लगता है, झारखंड सरकार आदिवासी महिलाओं के उपर हो रही हिंसा को लेकर संवेदनशील नहीं है. झारखंड सरकार आदिवासी महिलाओं पर हो रही हिंसा को रोकने में कारगर नहीं लगती. अब आदिवासी महिलाओं को स्वयं की रक्षा का सूत्र खोजना होगा.

यह मौत ऐसे समय में हुई जब पूरे देश में कोरोना महामारी चल रहा है. पूरा देश लाॅकडाउन के दौर में है. उसी वक्त इस संदेहास्पद मौत की घटना से पर सरकार की चुप्पी झारखंड में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है.

झारखंड पलायन, डायन हत्या जैसे मसले पर घोर संकट और वेदना का शिकार है. लगातार झारखंड में घरेलु हिंसा की शिकार हो रही महिलाओं को न्याय की उम्मीद पर अंधेरा छाया हुआ है. हत्या और मानव तस्करी की शिकार महिलाओं को झारखंड में कैसे न्याय मिलेगा, यह एक चिंतनीय सवाल है. बहस में सोशल मीडिया पर यह मौत आदिवासी समाज के बीच विवाह और प्रेम की नई परिभाषा गढ़ रहीं है. आदिवासी पुरूष अपने को कमतर समझ कर आरोप लगाते हंै कि आदिवासी महिलाएं दिकू से प्रेम करने के कारण शोषण, रेप, हत्या जैसी घटना का शिकार हो रही है. बहस यह भी चल रहा है कि ‘दिकू’ से विवाह करके आदिवासी जमीन कब्जाने या देने में प्रेम विवाह ही कारण है. फिलहाल झारखंड में साहेबगंज जिला चर्चा में है. आरोप लगाया जा रहा है कि गैर आदिवासी मर्द जमीन लूटने के लिए आदिवासी लड़कियों को प्रेम प्रसंग में फंसाते हैं. इस आरोप में दम भी है. साहेबगंज में 1 हजार के आसपास पत्थर के खदान हैं जो आदिवासियों की जमीन पर हैं. उन सभी खदानों के मालिक गैर आदिवासी हैं जो इन खदानों से हर रोज लाखों की कमाई करते हैं. गैर आदिवासियों को किन आदिवासी पुरूषों ने जमीन सौंपी इस पर बहस होना शायद बाकी है.