भारत में विभिन्न धर्माें के लोग रहते हैं. हिंदू धर्म के लोगों की बहुलता है. एक स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक होने के कारण सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्म को मानने की आजादी, धार्मिक स्थलों पर जाने की तथा धार्मिक सम्मेलन करने जैसे अधिकार संविधान से प्राप्त है. इस तरह प्रत्येक धर्म के धार्मिक हितों की रक्षा होती है. फिर भी देखा गया है कि एक धर्म विशेष के लोग दूसरे धर्म के लोगों के साथ अलगाव रखते हैं और कभी-कभी उनके धार्मिक हित आपस में अकराते भी हैं. ऐसे में विभिन्न धर्म को मानने वालों की प्रवृत्तियां क्या होती हैं, उनका आपसी व्यवहार क्या होता है और किन विश्वासों से वे परिचालित होते हैं, इन मुद्दों को लेकर अमेरिका के वाशिंगटन डीसी की एक स्वयंसेवी संस्था पीईडब्लयू रिसर्च सेंटर ने भारत में एक सर्वे करवाया.

इस सर्वेक्षण से यह पता चला कि 91 प्रतिशत भारत के हिंदू यह मानते हैं कि उन्हें अपने धर्म को मानने की पूरी आजादी है. उनमें से 85 प्रतिशत का मानना है कि एक सच्चे भारतीय होने के नाते दूसरे धर्मां के प्रति आदर रखना उनका कर्तव्य है. इसके अलावा अधिकांश हिंदुओं का मानना है कि दूसरे धर्मों के प्रति संवेदनशील होना उनका नागरिक कर्तव्य ही नहीं, बल्कि उनके लिए इसका धार्मिक मूल्य भी है.

इसी तरह 89 प्रतिशत मुसलमान तथा क्रिश्चन आबादी में अपनी धार्मिक आजादी की बात को स्वीकार किया है. 82 प्रतिशत सिख, 93 प्रतिशत बौद्ध और 85 प्रतिशत जैनियों ने भी अपनी धार्मिक आजादी की बात स्वीकारी.

इसके बावजूद सभी धर्म के लोगों ने दूसरे धर्म के लोगों के साथ दोस्ती करने या अंतरधार्मिक विवाह करने या पड़ोस में रहने में अपनी संकीर्णता या अलगाववादी प्रवृत्ति को दिखाया.

इस सर्वे में यह भी पाया गया कि भारतीय होने के नाते प्रत्येक दस हिंदुओं में से तीन हिंदुओं से संपर्क रखने और हिंदी बोलने की इच्छा जाहिर की और बीजेपी को वोट देना चाहा. लेकिन इन प्रश्नों पर लोगों में भौगोलिक स्थिति के अनुसार कुछ अंतर भी देखा गया. उत्तर भारत तथा मध्य भारत के लगभग 50 प्रतिशत मतदाताओं ने उपरयुक्त बातें स्वीकार की, जबकि दक्षिण भारत के मात्र 5 प्रतिशत मतदाताओं ने इन बातों को स्वीकारा. हिंदू राष्ट्रवाद की भावना भी उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारतीयों में कम पाया गया. दक्षिण भारत के लगभग 42 प्रतिशत हिंदुओं ने ही कहा कि सच्चे भारतीय होने के लिए हिंदू होना जरूरी है.