मेरी स्नातक की पढाई पूरी हो गयी. ये तीन वर्ष कॉलेज में जो भी मैने अनुभव किया अर्थात कॉलेज कैम्पस की स्थिति, चारों ओर का दृश्य और वहां की पढाई-लिखाई की व्यवस्था- अव्यवस्था कैसी थी, उसे कुछ शब्दों में आप सबों से शेयर करना चाहती हूं. मेरी इच्छा अपनी स्मृतियों को संजों कर रखना तो है ही, साथ ही शायद कालेज में प्रवेश करने वाले छात्रों को मेरे अनुभव से कुछ लाभ भी हो.

जैसे ही मेरा इंटरमीडिएट की पढाई पुरी हुई, उसके बाद मैं स्नातक की पढ़ाई के लिए कॉलेजों का पता करना शुरु कर दिया. कुछ लोगों से जानकारी मिली कि संत जेवियर्स कॉलेज और मारवाड़ी कॉलेज वाणिज्य के लिए अच्छा है, तो फिर मैंने दोनों में सबसे अच्छा कौन है, ये पता करना शुरु किया. तो, पता चला कि दोनों ठीक है, पर संत जेवियर कॉलेज ज्यादा अच्छा रहेगा. वहॉ व्यवस्थित ढग से कक्षाएं चलती है, पर फीस ज्यादा है. कम से कम दो वर्ष में 40,000 रुपये लग जाएंगे. फीस सुनकर ही मैने इंकार कर दिया, क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति उतनी ठीक नही थी. तो, फिर मारवाड़ी कॉलेज गयी और पता किया कि वहां कितना खर्च लगेगा. तो पता चला 2000 रु. तक में हो जाएगा.

फिर जा कर वहॉ से फॉर्म ली और सारा डॉक्यूमेंट तैयार कर के साथी के साथ कॉलेज पहुॅच गयी. जैसे नजर कॉलेज कि ओर गयी, तो एक लम्बी कतार. सभी तरफ भीड़-भड़ाका. कॉलेज के अंदर प्रवेश करते ही कुछ लड़कियों से पूछा फॉम कहॉ जमा हो रहा हैं. तो बोली यही लाईन है. हम और मेरी दो साथी वही लाईन में सारा डॉक्यूमेंट पकड़ कर लग गये.

धीरे-धीरे कतारें कछुआ की चाल में जा रही थी. लगभग तीन-चार घंटे बीत चुके थें. पर ऑफिस तक पहूॅचे नही थें. एक तरफ धूप में खड़े खड़े भूख प्यास लगने लगी थी. फिर भी कतार में ही रहना पड़ा. शाम ढलते- ढलते किसी तरह फॉर्म जमा हो गया. तब जाकर साथी के साथ कुछ खाए और पानी पीये. फिर घर के लिए निकल पड़े.

लगभग एक महीना बाद लिस्ट निकला. तब कॉलेज गये. फिर से वही नजारा. लम्बी-लम्बी कतारों में खड़ा होना है. जाकर खड़े हो गये. फिर कुछ समय बाद मेरा एडमिशन हो गया.

सारा एड़मिशन पूरा हो जाने के बाद सभी को अगस्त के शुरुआती सप्ताह में क्लास बुलाया गया. मुझे लगा स्वागत या कुछ कार्यक्म होगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुवा. कॉलेज में प्रवेश करते ही सभी को के क्लास अंदर भेज दिया गया और पढ़ाई भी शुरु कर दी. उसके बाद मेरी स्नातक की पढ़ाई का सिलसिला जारी हो गया.

उसके बाद में रोज गांधी नगर से ऑटो बैठ कर रातू रोड तक जाती, उसके बाद रातू रोड़ से पैदल भीड़-भड़ाका से गुजरते महावीर चौक से रंगरेज गली होते हुवे कॉलेज जाती. इसी तरह आना जाना और पढ़ाई-लिखाई चलता रहा.

सब ठीक ही चलता था. पर कॉलेज की अव्यवस्था के कारण सभी छात्र-छात्राओं को कुछ समस्यों का सामना करना पड़ता था. जैसे कभी पंजीकरण या कोई फॉम भरना हो तो उसके लिए छात्राओं को कड़ी धूप में लम्बी-लम्बी लाईन लगना. उसमें फिर धक्का- मुक्की, इधर-उधर दौडते, फिरते अन्यथा कभी-कभी तो लाइन लगा कर दो-तीन घ्ांटा खड़ा करवा के फिर ऑफिस ही बंद कर देते थे. इसी के बीच किसी तरह कॉलेज का सफर चलता रहा.

एक वर्ष बीत जाने के बाद कॉलेज में छात्र संघ के चुनाव की प्रकिया शुरु हुई. इस चुनाव में कई छात्र-छात्राएं खडे़ हुये. सभी क्लास रुम में आकर कहते थे- मुझे वोट देना. मैं आपलोगो की सारी समस्या को दूर करुंगा. चुनाव की प्रकिया पूरी हो गयी. अब देखना था कि जो चुनाव जीता है, वह हमलोगों की समस्या का हाल निकालेगा या नहीं. जैसे, कुछ फॉर्म भराता, उस वक्त ऑफिस वाले बस लम्बी कतार बनाते और काम बहुम अव्यवस्थित ढ़ग से करते थे. तो, कुछ छात्राएं यही समस्या को ठीक करने के लिए अपील किया. तुरन्त चुनाव पक्ष के लोग कॉलेज आये और हमलोग की सारी समस्याओं को दूर कर दिये. अब पहले जैसे कड़ी धूप में कतार पर खड़ा नही होना पड़ता हैं, क्योंकि अब सारा चीज ऑनलाइन ही उपलब्ध कर दी जाती हैं.

दूसरे वर्ष कॉलेज की व्यवस्था ठीक हुई तो कोरोना महामारी आ गयी जिसके कारण उचित ढ़ंग से पढ़ाई नहीं हो पायी. ऑनलाइन क्लास भी कभी होता, तो कभी नही होता. किसी तरह ये वर्ष भी ऐसे ही बीत गया.

तीसरे वर्ष में भी वही हाल. कोरोना महामारी. एक तरफ कुछ पढाई हो नही रही थी और दूसरी तरफ फाईनल एग्जाम देना था. 2 अगस्त को नोटिस भी आ गया कि 20 अगस्त से एग्जाम शुरु होने वाला हैं. किसी तरह पढ़ाई की तैयारी खुद से ही करनी होगी. ज्यादा समय भी नहीं.

सारा दिन बीत गया. पढ़ाई भी कर ली और आज एग्जाम सुबह से. परेशान ये सोच कर कि पता नहीं पेपर कैसा आएगा. उसी रास्ता से फिर कॉलेज के लिए निकल पड़ी. ठीक समय पर कॉलेज पहुॅच गयी. उसके बाद रोल नंबर के हिसाब से क्लास रुम देखी. रुम नंबर 12 था. तीसरे बेन्च में जाकर बैठ गयी. कुछ समय बाद प्रश्न पत्र आया और लिखना शुरु किया. तीन घंटे बाद निकल गयी. इसी तरह दूसरा और तीसरा एग्जाम भी पूरा हो गया. और तीन साल का सफर, तीन दिन और तीन घंटें में ही खत्म हो गया.

आखिरी पेपर दे कर निकलते वक्त मैं कॉलेज के चारो तरफ के दृश्य को निहारती रही और सोचती रही कुछ भी कहे पर कॉलेज अच्छी आदत सी बन गयी थी. अब यहां के शिक्षक छूट जायेंगे, तीन वर्षों तक लगातार पहनने की आदत सी बन गयी ड्रेस छूट जायेगी, संगी साथी छूट जायेंगे. मन थोड़ा उदास था इस बात को लेकर की अब कॉलेज आना नही है. ठीक उसी समय साथी आ गयी और बोली ओय क्या देख रही हो? मैने कहा अरे आज के बाद नही आना पड़ेगा. वो बोली अब क्या करने आयगी. स्नातक की पढ़ाई पूरी हो गयी. अब चलो घर. तो हम दोनों गेट के बाहर निकले पड़े. मैंने निकलते वक्त उदासी मन से कॉलेज की गेट के ऊपर लिखा कॉलेज का नाम को देखती रही. और देखते देखते वे गेट छिप सा गया. अचानक ऐसा लग कुछ छूट रहा है पर फिर भी हमलोग आगे बढते़ गए. यही जिंदगी है.