यह सवाल उठाया जाता है कि जब पूर्वांचल और बिहार के किसान ज्यादा गरीब हैं, तो फिर वे आंदोलन क्यों नहीं कर रहे? इस प्रश्न का इशारा यह है कि अपेक्षाकृत संपन्न होने के बावजूद अगर पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान आंदोलन कर रहे हैं, तो यह पूर्वाग्रह से ग्रसित और राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित है.

देश में दो प्रकार के किसान हैं- विपन्न और खुशहाल किसान. बिहार, पश्चिमी पूर्वांचल और देश के अन्य कई हिस्सों में विपन्न किसान बसते हैं. हालांकि एक जमाने में यहां भी खुशहाल किसानों की अच्छी संख्या थी. लेकिन कालक्रम में कई कारणों से वे खुशहाल से विपन्न किसान में तब्दील हो गये. विपन्न किसान परिवारों की नौजवान पीढ़ी दिल्ली, मुंबई, गोवा, तमिलनाडु, केरल, पंजाब,हरियाणा इत्यादि जगहों पर जाकर मजदूरी करती है और घर के वृद्ध बची-खुची खेती -बारी संभालते हैं. इन इलाकों में न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त करने के लिए मंडिया नहीं है. इन्हों ने कभी अपने अनाज मंडियों में नहीं बेचे और न ही उसके लाभ के अभ्यस्त हुए. इसलिए आज जब एमएसपी खत्म किया जा रहा है, तो इनको कोई फर्क नहीं पड़ता. पूर्वांचल के सोनभद्र के किसानों को इस बार धान का अधिकतम मूल्य 1100रु प्रति क्विंटल के हिसाब से मिला है. इस तरह प्रति क्विंटल लगभग ₹800 का घाटा हुआ.

इन गरीब किसानों में न तो खोने का एहसास है और न ही बेहतर जीवन की आकांक्षा. इसलिए यहां के किसान आंदोलनरत नहीं है. यहां आंदोलन तभी हो सकता है जब किसान अपनी तरक्की की चेतना और संकल्प से लैस हों. भारत में 14 करोड़ किसान परिवार हैं. इनके जीवन में सुधार से ही समाज और अर्थव्यवस्था में सुधार होगा. खेती बहुत हद तक स्वायत्त, आत्मनिर्भर और आजाद क्षेत्र है. लेकिन खेती भी धीरे-धीरे खाद, बीज, कीटनाशक, उपकरण, डीजल, बिजली इत्यादि के मामले में बाजार पर निर्भर होता गया है. इनके उत्पादक इन सामानों का दाम तय करते हैं. खेती की लागत बढ़ रही है. अनाज, सब्जी, फल, दूध, मांस-मछली, जड़ी-बूटी इत्यादि का उचित दाम नहीं मिलता है, क्योंकि इसका मूल्य- निर्धारण भी किसान नहीं करते, बाजार वाले करते हैं. बाजार मुनाफाखोरों और व्यापारियों के हाथ में है. ये कानून उन पर लगे प्रतिबंधों को और कम करेंगे.

इसलिए किसान अभी खेती के क्षेत्र में जो कर रहे हैं, उससे आगे बढ़कर उन्हें उद्यमशीलता अपनानी होगी. किसान अभी सिर्फ उत्पादन करते हैं, जबकि किसानों को उत्पादन के साथ-साथ भंडारण, प्रसंस्करण, वितरण और मूल्य निर्धारण भी करना है. खेती के नए-नए तरीके ढूंढने हैं, बीजों को उन्नत बनाना है, शोध करना है, पानी की व्यवस्था करनी है, खेती की लागत को कम करना है. यह सब काम किसानों को करना है. सरकारों के भरोसे बैठे न रहे.