उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 फीसदी से 1 फीसदी ही कम यानी 49 फीसदी मत प्राप्त किया था. और इस दफा भी भाजपा को 45 फीसदी से कम वोट मिलने के आसार नहीं हैं. ऐसा कई कारणों से है और उनमें से कुछ को विस्तार से इस लेख में भी लिया गया है. भाजपा ने 2017 में तीन चैथाई से भी ज्यादा सीटें हासिल की थी और इस दफा उन्हें बहुमत ना मिले, ऐसा दावा अभी सं नहीं किया जा सकता है. बदला है कुछ तो खुद शासक दल भाजपा के अंदर समीकरण के बदलने की अनेक आशंकाएं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ से पिछले कुछ महीनों में परिस्थितियां लगातार फिसलती रहीं थीं. उनकी पार्टी बनाम योगी के बीच की लड़ाई 4 महीने पहले तक चलती रही थी. पार्टी ने परिस्थितियों के विवाद में से योगी मुख्यमंत्री पद से हटाकर दूसरा मुख्यमंत्री बनाने और उनके नेतृत्व चुनाव लड़ने के विकल्प पर ध्यान लगाया था.

हालांकि 2017 में भी योगी तीसरे नंबर के है दावेदार मुख्यमंत्री थे. चुनाव नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में लड़ा गया था. चुनाव नतीजे, बहुत स्पष्टता से भाजपा के पक्ष में गए और इसके बाद 3 नामों पर चर्चा चलने लगी. सबसे ज्यादा संभावना केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनने की थी, जो अभी उप मुख्यमंत्री हैं. 2017 के चुनाव नतीजों के बाद कुछ समय तक यह अनिश्चय बना रहा कि मुख्यमंत्री कौन होगा. यह बहुत आकस्मिक था कि एकदम अंत में अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से बात की और तीसरे नंबर के योगी आदित्यनाथ भारत के इस बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

योगी आदित्यनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती कानून और व्यवस्था की थी. बावजूद इसके कि उनके पहले अखिलेश यादव ने शासन चलाने का एक माहौल बनाया था. उत्तर प्रदेश में अधिकतर इलाकों में सरकार विहीनता का माहौल था. इस माहौल में सरकार को चलाने के लिए लौह स्तंभ जैसी दृढ़ता यानी आयरन हैंड से काम करने की जरूरत बताई गई. पुलिस को ज्यादा स्वच्छंद बनाया गया, लेकिन इसके साथ साथ अजीबोगरीब विश्रांति का वातावरण भी बनाया गया. शासन चलाने के मामले में भरम का स्रोत खुद योगी आदित्यनाथ थे. इसमें उत्तर प्रदेश के तेज विकास के नारे को भी बड़े पैमाने पर झटका लगा. उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए भाजपा की जो सूची निकली थी, उसमें बहुसंख्यक के प्रति सांप्रदायिक झुकाव का स्पष्ट संकेत दिया गया था और मुसलमानों की बड़ी आबादी वाले इस प्रदेश में भाजपा ने एक भी मुसलमान उम्मीदवार नहीं बनाया था. लेकिन आदित्यनाथ ने शुरुआत ही की थी - महिलाओं की आजादी को कम करने से. प्रश्न पूछा गया कि यदि प्रदेश की आधी आबादी को घरों में धकेल देने के लिए मजबूर किया जाएगा, तो प्रदेश का विकास किस तरह होगा. यह भी पूछा गया कि पढ़ाई लिखाई में, नौकरियों में, कारखानों और खेतों में महिलाएं आएंगी और पार्क में या घूमने फिरने में महिलाओं को रोका जाएगा तो आखिर किस तरह ?

उत्तर प्रदेश में अंतर धार्मिक विवाह या खासतौर पर उन विवाहों पर, जिनमें एक तरफ मुसलमान हों और उनमें भी ज्यादा उन विवाह पर जिनमें पुरुष मुसलमान हो और स्त्री हिंदू- शासन प्रशासन का रुख उसे परेशान करने का रहता था. इसके बाद जनसंख्या कानून बनकर तैयार हुआ जिसमें कई नुक्ते ऐसे लगाए गए जिससे खास तौर पर मुस्लिम आबादी को परेशानी हो. कोविड-19 महामारी के फेज 1 और भेज 2 मैं उत्तर प्रदेश सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां थी. अपने माइग्रेंट आबादी को प्रदेश में लाने की चुनौती और दिल्ली से पैदल या अन्य सवारियों से गुजर कर बिहार झारखंड या अन्य पूर्वी प्रदेश की ओर जा रहे प्रवासियों की भारी फौज थी. धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश ने अपने लोगों को मुंबई तक भिजवाया और अपने प्रदेश के प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाया. दिल्ली के सीमा आनंद विहार टर्मिनल पर सैकड़ों बस भेज कर प्रवासी मजदूरों की सहायता की. परंतु फेज वन में बड़े पैमाने पर हाय तौबा और विश्रांति थी. फेस टू मैं तो अराजकता भीषण हो गई. सबसे ज्यादा उसी दौर में संपन्न कराए गए पंचायती चुनाव के दौर की अराजकता थी. पंचायती चुनाव संपन्न कराने में लगाए गए हैं हजारों पारा-टीचर में से डेढ़ हजार तक की मौत की सूची शिक्षकों के एसोसिएशन ने जारी की. मौत की वजह कोविड-19 महामारी थी और शिक्षक अपने मृत साथियों के लिए मुआवजे की मांग कर रहे थे. कोविड-19 महामारी के मृतकों की संख्या इतनी ज्यादा थी की अंत तक आते-आते शवों के जलाने को लेकर बहुत अधिक लापरवाही उजागर हुई. गंगा में महामारी प्रभावित लाश डाल दी गई और बहते हुए मृत शरीरों को चैसा के आगे बक्सर तक बिहार के गंगा में देखा गया. इस समय पूरे विश्व में महामारी से मृत सैकड़ों लोगों के प्रति सामान्य व्यवस्था नहीं बनाने के लिए योगी की सरकार के खिलाफ उंगली उठी. यही समय था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खेमे में भी और भाजपा के हाई कमांड में भी यह बात चलने लगी कि योगी आदित्यनाथ की जगह मुख्यमंत्री पद पर दूसरा व्यक्ति लाया जाए. विकल्प चुनने में सबसे बड़ी बाधा यह थी कि केशव प्रसाद मौर्य खुद एक अक्षम मंत्री के रूप में राज्य में बदनाम हो रहे थे और उनकी तरफ उनके जाति समुदाय के लोग भी उंगली उठा रहे थे.

पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों की ज्यादा संख्या जीत कर आई और भाजपा समर्थित दूसरे नंबर पर रहे. इस तरह है वर्ष के मध्य तक आते उत्तर प्रदेश में यह हवा बहने लगी कि भाजपा का शासन जारी नहीं रह पाएगा और 2022 के शुरू में होने वाले विधानसभा आम चुनाव के समय में लोग समाजवादी पार्टी को बहुमत दिलाएंगे. योगी आदित्यनाथ सरकार का कोई विशेष कार्यक्रम नहीं था जिसने उत्तर प्रदेश के जनजीवन में छाप छोड़ी हो और उसके दावों की ढोल पीटी जा सके.