दंगों में जिन लोगों ने भाग लिया उनके सामने एक तस्वीर थी, बड़ी लुभावनी तस्वीर। वह तस्वीर थी हिन्दू राज्य कायम करने की। यह सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन, सोचिए तो रहस्य खुले। हिन्दू राज क्या है? उसमें सिक्ख क्यों रहेंगे, हरिजन क्यों रहेंगे, पारसी और ईसाई क्यों रहेंगे? हिंदुओं में भी किसका राज्य - मराठों का या राजपूतों का?

हिंदू राज एक धोखा है, यह सर्वनाश का रास्ता है। जो हिन्दू राज की बात करते हैं, वे हमें आपस में झगड़े में फंसाना चाहते हैं। आज हिंदोस्तान का एक छोटा-सा टुकड़ा निकल गया है, हम-आप सभी चिंतित हैं। लेकिन, तो भी एक बहुत बड़ा हिस्सा एक साथ है। अगर वह हिस्सा भी टुकड़े-टुकड़े हो गया, तो याद रखिए, हमारे सारे बलिदान निष्फल हो जायेंगे। हमारे शहीद आसमान से आंखों में आंसू भरकर हमारी और देखेंगे और हमें अभिशाप देंगे - हमने, ओ कपूतो, क्या इसी के लिए अपनी जान की कुर्बानी की? तिरंगे झंडे की छाया में हमने गोली खाई, डंडे खाये, हम मिट गयेय लेकिन, उसकी शान नहीं मिटने दी कि समूचे देश में इस तिरंगे के नीचे एक राज्य कायम हो, पूर्ण स्वराज कायम हो। और, तुम ऐसे नालायक निकले कि हमारे देश को टुकड़ों में बंटवा दिया! अब भगवा झंडा ले के क्या इस बड़े टुकड़े को तार-तार कर देना चाहते हो? बताइये, अपने शहीदों की इस उक्ति का हम क्या जवाब देंगे?

याद रखिये, हिन्दू साम्प्रदायिकता एक बर्रे का छत्ता है, जहर का खोता है, उसे खोदकर मत उकसाइयेय नहीं तो, आप हम कहीं के नहीं रह जायेंगे। आज कांग्रेस की हुकूमत है, राष्ट्रीय सरकार है, तो भी हमारे प्रांत में क्या हो रहा है? राजपूत, भूमिहार, कायस्थ, यादव, कुरमी आदि जातों की पार्टियां बन रही हैं। आपस की फूट है, तू-तू मैं-मैं है, लोग तबाह हैं। फिर जब हिंदुत्व के नाम पर आप राज्य कायम करेंगे, तो उसमें कितने भेद-भाव होंगे, कितनी परीशानियां होंगी - आप सोच सकते हैं।

मुझे सुनने में आया है, हमारे बहुत से नौजवान भाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भर्ती हो रहे हैं। मैं साफ कहूं, यह आप गलत कर रहे हैं, आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं। आज मुसलमान समझने लगे हैं कि जिन्ना का रास्ता नाश का रास्ता है। किंतु, कितना बड़ा अफसोस कि हमारे भोले-भाले उत्साही नौजवानों को उसी नाश के रास्ते पर ले जाया जा रहा है! मैं अपने उन नौजवान साथियों से कहता हूं कि मैं आपका साथी हूं, आपका सेवक हूं। आपसे मैं पूछता हूं कि वह कौन-सी तस्वीर थी हमारे सामने, जिसने हमें घर की माया-ममता से खींचकर बलिदान के रास्ते पर ला खड़ा किया था? हमारा क्या उद्देश्य था हजारों तरह की मुसीबतें झेलकर आगे बढ़ने में? क्या आप लोगों ने उन दिनों यह सुना था कि आजादी की लड़ाई हिंदू राज्य कायम करने के लिए लड़ी जा रही है? क्या हमारे शहीदों के सामने यह हिंदू या सिक्ख राज्य था? 1942 की क्रांति में जो नौजवान जंगल-जंगल घूमते रहे य जो नौजवान देश के बाहर नेताजी की फौज में शामिल हुए, क्या उनके दिमाग में हिंदू राज था, मुस्लिम राज की तस्वीर थी? आजादी की लड़ाई इसलिए लड़ी गई थी कि हमारे गरीब देश के लोगों को भरपेट भोजन मिले, कपड़ा मिले। हमारे लाखों भाई आज सड़कों के किनारे बाल-बच्चों को लेकर जिंदगी गुजार रहे हैं। हम आजादी इसलिए चाहते थे कि सबके पास अच्छा घर हो और घर के अंदर अच्छी गृहस्थी। एक अकाल आता है और लाखों आदमी मर जाते हैं। बंगाल के अकाल में 35 लाख आदमी मर गये। हम आजादी इसलिए चाहते थे कि एक ऐसा हिंदोस्तान बनायें, जिसमें अकाल न हो, बीमारी न हो, गरीबी न हो। अस्पताल बने, स्कूल बने! हम अपने लोगों को सभ्य बनायें, सुसंस्कृत बनायें। समाज में घोर अन्याय है, जो मेहनत करते हैं, एड़ी-चोटी का पसीना एक करते हैं, वे भूखों मरते हैं और जो कोई काम नहीं करते, ऐश करते हैं। हम आजादी इसलिए चाहते थे कि इस अन्याय को दूर करें, उस प्रथा को हटायें, जिसके चलते ऐसे अन्याय होते हैं, न कि हिंदू राज, खालिस्तान या द्रविड़िस्तान कायम करने के लिए।

हिंदू राज की बातें करके जो लोग हमारे नौजवानों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भर्ती करते हैं, उनसे पूछिये - क्या हिंदू राज पहले नहीं था और आज भी नहीं है? नेपाल में तो हिंदू ही राजा है, वहां का क्या हाल है, आप जानते हैं? मैं वहां जेल में कैद था, वहां के बारे में कुछ जानकारी रखता हूं। हमारे देश में जब विदेशी राजा था, तो भी हम उस राज्य की आलोचना कर सकते थे - अखबार निकालते थे, सभा करते थे, उससे लड़ने के लिए संगठन करते थे। लेकिन नेपाल के आपके हिंदू राज में वहां के शासकों के खिलाफ आप जबान भी नहीं हिला सकते। यदि ऐसी गुस्ताखी आप करें, आप का जबान खींच ली जाय, आपका सिर उतार लिया जाय। सिक्ख भाई जरा पटियाला जाकर देखें, सिक्ख राज कैसा होता है? मैसूर में हिंदू राज्य है, जो हिंदू प्रजा पर गोलियां चलवाने में नहीं हिचकता। त्रावनकोर का हिंदू दीवान पाकिस्तान से दोस्ती गांठने चला था। इन हिंदू राज्यों में एक राजा है, उसके आसपास सैकड़ों जागीरदार हैं, वे जनता को लूटते हैं, बीसों रानियां रखते हैं, तरह-तरह के दुराचार करते हैं। ऐसे राज्यों और राजाओं के दिन लद गये। आज जनता का जमाना है। हम एक ऐसी दुनिया देखना चाहते हैं, जिसमें कोई राजमुकुट पहननेवाला न रहे। जो लोग हिंदू राज की बात करते हैं, वे प्रतिक्रियावादी हैं, वे देश को सैकड़ों वर्ष पीछे ले जाना चाहते हैं।

दिल्ली में एक सज्जन मेरे पास आये और बोले कि हमारा हिंदू राज से मतलब है, रामराज्य से। मैंने उनसे कहा - रामराज्य की शकल में जो राज्य कायम करना चाहेगा, वह पड़ोसियों के घर में आग नहीं लगावेगा, लूटमार नहीं करेगा, परायी औरतों की इज्जत नहीं लूटेगा, बच्चों को कत्ल नहीं करेगा। आग लगाकर, बलात्कार करके, कत्लेआम करके रामराज्य नहीं कायम किया जा सकता। वह तो जानवरों का राज होगा, डकैतों का राज होगा, लठैतों का राज होगा। आप रामराज्य कायम करना चाहते हैं, तो हिंदोस्तान में एक ही व्यक्ति है, जिसके चरणों के नीचे आपको बैठना होगा, जिसके चरण-चिन्हों पर चलना होगा। वही एक व्यक्ति है, जो देश को रामराज्य की ओर ले जाना चाहता है, उसी की तपस्या ने हमें आजादी दिलाई है, उसीके तपोबल से हमारा बूढ़ा देश संसार के देशों के सामने सिर ऊंचा करके खड़ा हुआ है। उसीके उपदेशों और आदेशों पर चलकर हम रामराज्य कायम कर सकते हैं, बाकी लोग तो हमें धोखा देना चाहते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंदर गरीब नौजवान, स्कूल-कालेज के विद्यार्थी और छोटे-छोटे रोजगारियों और व्यापारियों के बच्चे शामिल हो रहे हैं। उन बेचारों को यह पता भी नहीं है कि इस संघ के पीछे कौन-सी ताकत काम कर रही है। देश की आजादी के लिए किसी एक भी राजा ने काम नहीं किया - वे अंगरेजों के जूते चाटते रहे। जमींदार और सेठ-साहूकार भी अंगरेजों के ही खीमे में रहे। उनमें से सिर्फ चंद इने-गिने लोगों ने देश का साथ दिया। बाकी लोग जिस समय देश जीवन-मरण के बीच में था, चोर बाजारी और मुनाफाखोरी से जेब गर्म कर रहे थे।

गांधीजी ने पिछली लड़ाई में अंगरेजों को कोई मदद न करने को कहा। न एक पाई, न एक भाई - यह था राष्ट्र का नारा। लेकिन, ये जमींदार और साहूकार राष्ट्र की पुकार सुन सके? जेल से निकलकर मैंने भी इनसे बार-बार अपीलें कीय लेकिन, कौन सुनता है! वे तो लड़ाई में लखपति से करोड़पति बनते रहे। हिंदू सभा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी उन दिनों कहां थे? जब फांसी और गोली के मौके थे, तो ये बिलों में घुसे रहे। लेकिन आज आजादी मिलते ही बाहर आये हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पीछे करोड़पति हैं, राजे-महाराजे हैं, उनका रुपया है, उनका हाथ है। उनके छिपे हुए मतलब को समझना कोई मुश्किल नहीं है। इन राजों-महाराजों, जमींदारों-साहूकारों को हिंदोस्तान की जनता से खतरा है। आजादी के बाद खतरा बढ़ गया है। वे देख रहे हैं - एक तूफान, एक आंधी आ रही है। यह तूफान राजमुकुटों को सरों से गिराकर सात समुद्र पार फेंक देगा। यह आंधी तिजोरियों से नोटों के पुलिन्दों को उड़ाकर भुखमरों और भिखमंगों में बांट देगी। वे उस आंधी-तूफान को रोकना चाहते हैंय किंतु, रोकें तो कैसे? अब अंगरेजों की तोपें कोई काम कर न सकीं, तो फिर इनकी क्या बिसात, तब उन्होंने एक नई चाल चली है। इनकी नई चाल यह है कि जनता को ही पथभ्रष्ट कर दें, देश की प्रगतिशील शक्तियों को दूसरे रुख पर मोड़ दें। ऐसा समां पैदा कर दें कि मजदूर राज, किसान राज की बात हवा में उड़ जाय और हिंदू राज्य के भूल-भुलैया में सब लोग पड़ जायं य तिरंगे को लोग भूल जायं और भगवे झंडे के नीचे सारी प्रगतिशील शक्तियां एकत्र होकर प्रतिक्रिया के पथ की ओर मुड़ जायं। यह भगवा झंडा देश के लिए खतरा है, गरीबों के लिए खतरा है, आपके लिए खतरा हैं हम इस खतरे का सामना करें। हम साफ बातें अपने नौजवानों से कहें। हमारे नौजवानों का हृदय साफ है। क्रांति और प्रगतिशीलता उनकी नसों में है, वे बहकावे में नहीं आ सकते और जो फंस गये हैं, वे भी इस माया-जाल को छोड़कर निकल जायेंगे।

साम्प्रदायिकता आजादी पाने के पहले भी हमारा दुश्मन थी। अंगरेजों ने इसको पाला-पोसा, इसकी मदद ली। फिरकापरस्ती के चलते ही देश दो टुकड़ों में बंटा। हमने अंगरेजों पर विजय प्राप्त कीय पर, पूरी नहीं। कितने दुःख की बात है, आज भी साम्प्रदायिकता हमारा दुश्मन बनी हुई है। कल उसके शिकार मुसलमान थे, आज हिंदू होने जा रहे हैं। यह फिर हममें झगड़ा पैदा कर रही है। एक बार हम आपस में लड़े, डेढ़ सौ वर्षों तक गुलाम रहे। यदि हमने फिर वही गलती की, तो हमारे देश पर क्या आफत आयेगी, इसकी कलपना से ही मैं घबरा जाता हूं।