कर्नाटका में कांग्रेस की शानदार जीत ने पार्टी में जोश तो भर दिया है, साथ ही सारे विरोधी दलों में भी एक नई आशा का संचार हुआ है. जब कर्नाटक में बीजेपी के धुरंधर प्रचार कर रहे थे, और रोड शो कर रहे थे, तो उसमें उमड़ती भीड और मोदी- मोदी के नारों से उनका जो स्वागत हो रहा था, उस समय कल्पना में भी यह बात नहीं आई कि बीजेपी को इतनी बड़ी हार झेलना पड़ेगा.

दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष खड़गे के साथ प्रचार कार्य में केवल सोनिया गांधी, राहुल गाँधी तथा प्रियंका गांधी ही दिखे. उनकी सभाओं और रोड शो में भी वैसी भीड़ भी नही दिखी. फिर कौन सा ऐसा चमत्कार हुआ कि कांग्रेस कर्नाटक में पूर्ण बहुमत पाकर विजयी हुई. इस बात का विश्लेषण होना आवश्यक है. कर्नाटक में कांग्रेस के विजय का श्रेय केवल कांग्रेस के पोजेटिक स्ट्रेटेजी को ही नहीं है, बल्कि बीजेपी का कांग्रेस के प्रति नकारात्मक रुख और उसकी आलोचना का भी यह परिणाम है.

आज कल चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दल प्रचार का अर्थ अपने शासन की उपलब्धियों को बताना और चुनाव में जीतने पर शासन का क्या तरीका होगा और लोगोे की किन समस्याओं का समाधान वे करेंगें, इसकी चर्चा न कर केवल विरोधी पार्टी की आलोचना कर, उसका मजाक उड़ा कर ही जनता को आकर्षित करना चाहते हैं. कर्नाटक के चुनाव में बीजेपी ने ठीक यही काम किया. मोदी जी सहित सारे नेताओं ने कांग्रेस की अलोचना करना ही अपना मुख्य लक्ष्य बनाया. सभा में उपस्थित लोगों को तत्काल इन भाषणों में मजा तो आया होगा, लेकिन इसका प्रभाव नकारात्मक ही रहा. मत देते समय लोगों के सामने बीजेपी को समर्थन देने का एक कारण भी नहीं था. दूसरी ओर कांग्रेस प्रचार में अपने मुद्दों को लेकर चल रही थी और जीत के बाद वह किस तरह के बदलाव की योजना बना रही है, इसका उल्लेख करती रही जो उनकी सकारात्मक सोच को दर्शाती थी. उन्होंने साफ कहा था किं वे गरीबों, किसानों के साथ खड़े हैं और उनके कल्याण की योजनाएँ ही उनके पास है.

कांग्रेस की विशेषता यह रही कि उन्होंने अपने प्रचार में धर्म को आधार नही बनाया, न किसी धर्म की आलोचना की. उन्होंने अपनी जीत के बाद समाज मे अराजकता फैलाने वाले संगठन, जैसे बजरंग दल, पीटीएफ जैसे संगठनों पर बैन लगाने की घोषणा की. चूँकि बजरंग दल हिन्दू समर्थक दल है, इसलिए बीजेपी ने इसे हिन्दू धर्म का विरोध बताया और बजरंग बलि का अपमान बताया. अपनी सभाओं में उन्होंने ‘जय बजरंग बलि’ का नारा देना शुरू किया. लेकिन यह काम उनके प्रचार पर विपरीत प्रभाव ही डाला. कर्नाटका में बजरंग दल की अपेक्षा श्री राम सेना ज्यादा आक्रामक है और समाज में धार्मिक भेदभाव कर अराजकता फैलाने में आगे है. वैसे, कर्नाटक में महावीर को बजरंगबलि नहीं, बल्कि हनुमंत या आंजनेया नाम से ज्यादा जाना जाता है और उनकी पूजा सारे हिन्दू करते हैं. वहाँ के लोगों को बजरंग बलि के अपमान की बात समझ में ही नहीं आई.

बीजेपी को बहुत विश्वास था कि उनकी विजय लिंगायत तथ ओकलिंगा के लोगों पर निर्भर है. इस लिए चुनाव के समय बीजेपी उनके तुष्टीकरण में लग गई. उसने गरीब मुसलमानों को दिये जाने वाले चार प्रतिशत आरक्षण को समाप्त कर उसे लिंगायत तथा ओकलिंगा को दो - दो प्रतिशत अधिक आरक्षण देने की बात कही. यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव में इस पर रोक लगा दिया. इसलिए बीजेपी आगे प्रचार कार्य में इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल पाई. काग्रेस ने गरीब और किसान की बात की. उनके कल्याण की बात कही. गरीब तथा किसान लिंगायत तथ ओकलिंगा में हैं और वे कांग्रेस के इस मुद्दे से प्रभावित हुए.

उत्तर भारत में जाति की राजनीति करने वाली बीजेपी कर्नाटका में लिंगायत तथा ओकलिंगा को जाति समझ उनके ध्रवीकरण की कोशिश की. वास्तव में उत्तर भारत की तरह कर्नाटक मंे लोग ब्राह्मण, राजपूल, वैश्य तथा शूद्र जातियों में बंटे हुए होते हुए भी उनकी पहचान जाति से नहीं, बल्कि लिंगायत और ओकलिंगा के रूप में होती है. वे सभी जातियां लिंगायत भी हो सकती हैं और ओकलिंगा भी.

ओकलिंगा किसी धर्म से जुड़ी उपजाति नहीं, बल्कि कृषिकार्य में लगे लोग ओकलिंगा कहलाये हैं. ये छोटे बड़े किसान तथा जमींदार भी होते हैं. उनका इतिहास बताता है कि वे पहले अपने क्षेत्र में राज भी करते थे. प्रारम्भ में ये जैनी थे. बाद में हिन्दू धर्म के प्रभाव में आकर उसे स्वीकार कर लिया. लेकिन अपना पेशा कृषि कार्य के कारण ये ओकलिंगा कहलाये. दूसरी ओर लिंगायत धर्म पर निर्भर उपजाति है. लिंगायत लोग शैव होते हैं. शिव की उपासना करने के कारण ये लोग लिंगायत कहलाये. किसी भी जाति का व्यक्ति लिंगायत हो सकता है. कुछ ओकलिंगा भी लिंगायत से प्रभावित होकर उसे स्वीकार किया. इस तरह लिंगायत तथा ओकलिंगा समुदायों में बंटे इन लोगों को प्रभावित करने की कोशिश कांग्रेस से नहीं की. उसने सभी समुदायों के लोगों में से गरीबों की बात कही, जिनका समर्थन कांग्रेस को मिला.

इसके अलावा परिवार की एक महिला तथा बेरोजगार युवकों को मासिक भत्ते की बात कह कर उनका समर्थन हासिल किया. प्रत्येक परिवार को प्रति माह 200 यूनिट मुफ्त बिजली तथा गरीबी रेखा से नीचे के प्रत्येक परिवार को 10 किलो मुफ्त चावल देने का वादा कर उनका भी दिल जीता. महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा का भी वादा किया. इन पांच वादों ने भी कांग्रेस के विजय की संभावना पर सकारात्मक प्रभाव डाला.

इस तरह प्रभावकारी तरीके से चुनाव काय में लगी कांग्रेस को बड़ी सफलता मिली. आशा की जाती है कि अपनी पुरानी परंपराओं और तौर तरीकों को त्याग करं कांग्रेस कर्नाटक मे सुशासन लाने की कोशिश करेगी.