हमारे समाज मे सभी आदिवासियों के बारे जानने के लिए उत्साहित रहते हैं. उसकी जीवन शैली को किताबांे में छापते हैं. देश विदेश में झारखंड में आदिवासियों की पहचान ही अलग है. लेकिन वे यह ठीक से कभी नहीं जानते या जानना चाहते हैं कि उन्हें चिकित्सा के नाम पर किस बेरहमी से उन्हें लूटा जा रहा है.

पिछले महीने 9 मई से यहां के एक अस्पताल का चक्कर लगाते लगाते यह समझ आ गया कि वहाँ किस तरह गरीबों का शोषण हो रहा है. इस अस्पताल का नाम है जेनेटिक सुपरस्पेशलिटी अस्पताल जो कृष्णा नगर, बूटी रोड, पानीटंकी के पास, विजय नगर, बरियातू, रांची, में अवस्थित है. यहाँ पर एम्बुलेंस में यह भी लिखा है कि सर्वोत्तम इलाज कम खर्च में. मेरी बस्ती के लोग इससे प्रभावित हो कर एक प्रौढ़ा स्त्री को गिर कर बेहोश होने के बाद इस अस्पताल में ले गये. समस्या तो तब आती है जब मरीज हॉस्पिटल में प्रवेश करता है. इस हॉस्पिटल के बारे किसी को पता नही फिर भी सभी गरीबों को एम्बुलेंस वाला रिम्स की जगह यहाँ ले जाता है, क्योंकि उसे मरीज ले जाने का कमीशन मिलता है.

लेकिन इस कमीशन की वजह से वह मरीज को ऐसे अस्पताल में पहुंचा देता है जहां से निकलने के क्रम में भोले भाले आदिवासियों को अपना जमीन तक बंधक रख देना पड़ता है. मरीज हॉस्पिटल पहुँचता हैं और उसे जल्दी से आईसीयू में ले जाया जाता है. फिर मरीज को निकालने का कोई उपाय नही बचता और न ही वो लोग निकलने देते हैं. उसके बाद इलाज शुरू होता नहीं की बिल बनाना शुरू हो जाता है. आईसीयू का एक दिन का चार्ज पैतालीस हजार. अब गरीब आदमी कहा से लाये इतना पैसा और कितना दिन तक आईसीयू में रखे. कहां यह जाता है कि यदि आयुष्मान कार्ड है तो चिंता क्यों करते हो, तुम्हारा पैसा अंत में लौट जायेगा.

मेरे बस्ती के लोगों को भी लगा कि मां को बचाना है तो ऐसी स्थिति में लड़ झगड़ कर अब कहां ले जायें? इसी दुविधा के बीच इलाज चलता रहा और बिल बनता जाता है. किसी तरह लोग पैसा चुकाते जाते है. एक सहारा आयुष्मान कार्ड का होता है. इस योजना के तहद स्वास्थ्य बीमा में 5 लाख तक मुफ्त इलाज की सुविधा मिलती हैं. इसमें भी सारा डॉक्यूमेंट में सही सही सबकुछ होना चाहिए, तभी इलाज हो सकता है. नही तो हॉस्पिटल वाले उससे इलाज नही करते. उसे सुधार करवाने के लिए कचहरी या आयुष्मान ऑफिस दौड़ते रहते है. वहां भी छोटे मोटे सुधार के नाम पर उससे पैसा ऐंठा जाता है. इस बीच बिल का मीटर चालू रहता है. वह जानना चाहता है कि कितना खर्च हुआ, कितने दिन आईसीयू या अस्पताल में रहना पड़ेगा तो डॉक्टर कहते है अब कोई चिंता नहीं. इससे इलाज हो जायेगा.

मरीज का इलाज ऐसे तो चलता रहता है लेकिन वहाँ एक एक मरीज को 1 से 2 महीना तक रख देते हैं. यानि, उस मरीज को तब तक रखते हैं जब तक कि वीमा की सारी रकम खत्म न हो जाये. इस बीच जरूरी दवायें या खर्च के नाम पर मरीज को अपनी जेब से भी पैसा खर्च करना पड़ता है और वह इस उम्मीद पर खर्च भी करता जाता है कि अंत में हिसाब किताब होगा तो खर्च किया पैसा वापस हो जायेगा. ऐसा ही मेरी बस्ती के उक्त मरीज के परिजनों के साथ भी हुआ और उन्हें अपनी जमीन बंधक रखनी पड़ी.

लेकिन अंत में हुआ क्या? मरीज के डिस्चार्ज के बाद आयुष्मान ऑफिस से कॉल आता है कि आपका कार्ड का अनुमति हो गया है. आप हॉस्पिटल जाकर अपना पैसा ले लीजिए. 2 जून को मरीज के परिजन 4 बजे हॉस्पिटल गए. रिसेप्शन के पास कहा कि डायरेक्टर सर से मिलना है. आधा घंटा वेट कराने के बाद उन्हें ‘डायरेक्टर सर’ से मिलने के लिए भेज दिया गया. कमरे में प्रवेश किए. हॉस्पिटल के डायरेक्टर और दो लोग बैठे हुए थे जो कि डॉक्टर जैसा लग ही नही रहे थे. परिजनों ने कहा कि पैसा के लिए आए हैं. हमारा हिसाब कर दीजिये. कितना खर्च हुआ यह बताईये और जितना हमारा खर्च हुआ, वह लौटाईये.

उन लोगों ने कहा कि आयुष्मान कार्ड से इलाज हो रहा है तो तुम लोग का पैसा वापस हो जाएगा, ऐसा हमने नहीं कहा था. डायरेक्टर ने बगल में बैठे आदमी को कहा- यह गरीब लोग को 10 या 15 हजार दे दो. बगल में बैठा आदमी ने कहा कि रुकिए पूछते हैं कि आपका आयुष्मान कार्ड अप्रूव हुआ या नहीं. उसने किसी को फोन किया और पूछा इसका कार्ड अप्रूव हो गया है या नहीं?

उसके बाद हम लोग नीचे आ गए. फिर आयुष्मान ऑफिस में कॉल करके पूछे- सर, हम लोग का अप्रूव हुआ है या नहीं. आयुष्मान ऑफिस वाले बोले कि आपका अप्रूव हो गया है. इधर-उधर पूछते -पूछते 3 घंटा बीत गया. उसके बाद उन लोगों ने एक आदमी से कहा- सर बहुत लेट हो रहा है थोड़ा जल्दी कीजिए. तो वह आदमी ऑफिस के अंदर ले गया और कागज में एप्लीकेशन लिखा और उसमें सिग्नेचर करके ₹10000 हाथ में दे दिया. उसके साथ उन्होंने फोटो भी लिया कागज का. उसमें यह लिखा हुआ था कि हॉस्पिटल में जितना भी मरीज से पैसा लिया गया था, वह वापस कर दिया जा रहा हैं. हॉस्पिटल का खर्च 10,000 हजार लिखा गया था, लेकिन मरीज का 60000 का खर्च हुआ था और दीदी से यह भी बोला गया था कि कहीं से कॉल आएगा तो आप बोलिएगा कि हम लोगों को पैसा वापस कर दिया गया है. और तो और हॉस्पिटल वाले इतना चलाक की मरीज का कितना खर्च हुआ वह बिल भी नहीं दिये.

बस्ती वालों को पता नहीं कि उनके वीमा राशि से कितना खर्च हुआ और कितना बचा है? यह भी नहीं पता कि अस्पताल का कुल बिल कितने का हुआ? मरीज होश में तो है, लेकिन अभी भी बेड पर है. कहां जायें? किससे पता करें? किससे लड़े गरीब आदिवासी? पूरा सिस्टम भ्रष्ट है.